समर्पित अभिषेक
क्या खोया क्या पाया इस बात पर हर रोज क्या विचार करे, विरह वेदना झेल रहा जो वो मिलन की कैसे बात करे। नित नूतन कलियाँ जब पुष्प बने तो पौधें क्यूँ अभिमान करे, माली के हाथों पुष्पित हो अजनबियों का क्यूँ मान करे। काँटो का झेले दंश फिर भी खिलकर सुमन क्यों मुस्कराये, जग हँसे या रोये पर हर दशा मे क्यों कुसुम आगे आये। अरमानों की बलिवेदी पर कब तब अभिषेक समर्पित होगा, हृदय में सबके क्या फ़िर मानवता का बीज अंकुरित होगा।