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Showing posts from May, 2021

राजा टोडरमल

लेख:- ' राजस्व विभाग के जनक राजा टोडरमल '   इतिहास की पुस्तक अपने आप मे बहुत कुछ समेटे हुये है। इसमे ज्ञान और तिथियों पर अंकित पराक्रम,शौर्यगाथा के अतिरिक्त कुछ ऐसे बुद्धिजीवी,मनीषी और नवोन्मेशी पुरोधा भी है, जिनके प्रयास,प्रयोगों और खोज ने हमारे वर्तमान को उनके अतीत से जोड़ते हुये, मानव जीवन को एक नयी दिशा दी। भारत मे कई ऐतिहासिक स्थल है जो अतुलनीय है।  उत्तर प्रदेश का जनपद सीतापुर भी उस क्रम मे अपना शीर्ष स्थान स्थापित किये हुये है। यहाँ पर जन्में लोगों ने अपने कर्म और शौर्य से अपने साथ अपनी जन्मभूमि सीतापुर का नाम भी पूरे विश्व पटल पर स्वर्ण अक्षरों मे अंकित कर दिया। राजा टोडरमल इस कड़ी मे अपना शीर्ष स्थान रखते है।   राजा टोडरमल एक योद्धा, एक योग्य प्रशासक और एक अनुकरणीय वित्त मंत्री थे। राजा टोडरमल को भू राजस्व (राजस्व विभाग) का जनक माना है। इन्हे टकसाल प्रबंधन मे महारथ हासिल थी। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के जनपद सीतापुर की तहसील लहरपुर स्थित तारापुर नामक ग्राम मे सन 1500 मे हुआ था।टोडरमल खत्री जाति के थे और उनका वास्तविक नाम 'अल्ल टण्डन' था।  ये अकबर के नवरत्नों मे से

महाकवि नरोत्तमदास

लेख:- महाकवि नरोत्तमदास  हिन्दी साहित्य इतना विस्तृत और अनन्त है कि इसमे ज्ञान की पराकाष्ठा और अनन्त गूढ़ता का पार पाना सम्भव ही नही लगता है किन्तु हिन्दी साहित्य में ऐसे लोग विरले ही हैं जिन्होंने मात्र एक या दो रचनाओं के आधार पर हिन्दी साहित्य में अपना स्थान सुनिश्चित किया है। एक ऐसे ही कवि हैं, जिनका एकमात्र खण्ड-काव्य ‘सुदामा चरित’ (ब्रजभाषा में) मिलता है जो हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर मानी जाती है। हम सुदामा चरित के रचयिता, ब्रजभाषा के महाकवि नरोत्तमदास जी की बात कर रहे है। नरोत्तमदास जी जन्म कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार मे उत्तर प्रदेश के जिला सीतापुर में तहसील सिधौली के ग्राम बाड़ी में हुआ था। इनकी जन्म और मृत्यु तिथि विवादास्पद है, इसके सम्बन्ध मे कोई भी प्रमाणित स्त्रोत उपलब्ध नही है।  साहित्य और अन्य कुछ प्रमाणों के आधार पर अलग- अलग तिथियों के बारे मे लोग दावा करते है। विद्वानों के गहन अध्ययन और प्रमाणों के आधार पर इनका जन्म 1550 ई. और मृत्यु 1605 ई. के लगभग माना जाता है।  'सुदामा चरित्र' के अतिरिक्त इनकी अन्य रचनाओं ‘विचार माला’ तथा ‘ध्रुव-चरित’ और ‘नाम-संकीर्तन’ क

आचार्य नरेंद्र देव

लेख:- 'सीतापुर के आचार्य नरेंद्र देव'   आचार्य नरेंद्र देव भारत के प्रमुख स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, पत्रकार, साहित्यकार एवं शिक्षाविद थे। वे कांग्रेस समाजवादी दल के प्रमुख सिद्धान्तकार थे। देश को स्वतंत्र कराने का जुनून उन्हें स्वतंत्रता आन्दोलन में खींच लाया और भारत की आर्थिक दशा व गरीबों की दुर्दशा ने उन्हें समाजवादी बना दिया। समाजवाद के पितामह आचार्य नरेंद्र देव का जन्म 31अक्टूबर, 1889 ई. को सीतापुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनके पिता का नाम बलदेव प्रसाद था, जो एक प्रसिद्ध वकील थे। नरेन्द्र जी के बचपन का नाम अविनाशी लाल था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा पैतृक जनपद फैज़ाबाद मे हुयी। इन्हें संस्कृत, हिन्दी के आलावा  कई भाषाओँ का ज्ञान था। जिसमे अंग्रेज़ी, उर्दू, फ़ारसी, पाली, बंगला, फ़्रेंच और अन्य भाषाएँ भी शामिल हैं। इन्होने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. की डिग्री प्राप्त की और पुरातत्व के अध्ययन के लिए काशी के क्वींस कालेज चले गए और सन 1913 में  एम.ए. संस्कृत से किया। अपने पिताजी की इच्छा पर इन्होने वकालत की पढ़ायी की। इसके बाद सन 1915 से लेकर 1920 तक फैजाबाद में रहकर वकालत की।

शचीन्द्रनाथ सान्याल

लेख:- ' शचीन्द्रनाथ सान्याल '   सैकड़ों ऐसे क्रांतिकारी हैं, जिनको इतिहास से निकाल दिया जाए तो जिन बड़े चेहरों को आप जानते हैं, पूजते हैं उनका भी अस्तित्व शायद ही होता। देश में आज से 92 साल पहले राइट टू रिकॉल का आइडिया कानपुर शहर में बैठकर कई क्रांतिकारियों के बीच बनाया था। जी हाँ, आज हम बात कर रहे है आजादी के मतवाले महान क्रांतिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल की। शचीन्द्रनाथ सान्याल भारत की आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाले प्रसिद्ध क्रांतिकारियों में से एक थे। वे राष्ट्रीय व क्रांतिकारी आंदोलनों में सक्रिय भागीदार होने के साथ ही क्रान्तिकारियों की नई पीढ़ी के प्रतिनिधि भी थे। उनका जन्म 1893 में वाराणसी में हुआ था।शचीन्द्रनाथ सान्याल के पिता का नाम हरिनाथ सान्याल और माता का नाम वासिनी देवी था। शचीन्द्रनाथ के अन्य भाइयों के नाम रविन्द्रनाथ, जितेन्द्रनाथ और भूपेन्द्रनाथ थे। शचीन्द्रनाथ का शुरुआती जीवन देश की राष्ट्रवादी आंदोलनों की परिस्थितियों में बीता। 1905 में "बंगाल विभाजन" के बाद खड़ी हुई ब्रिटिश साम्राज्यवाद विरोधी लहर ने उस समय के बच्चों और नवयुवकों को राष्ट्रवाद की शिक्ष

बैशाख पूर्णिमा

शीर्षक:- वैशाख पूर्णिमा  वैशाख पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। इस दिन किसी भी पवित्र नदी में स्नान किया जाता है। इसके बाद श्री हरि विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन धर्मराज की पूजा करने की भी मान्यता है। यह मान्यता हैं कि सत्यविनायक व्रत से धर्मराज खुश होते हैं। धर्मराज मृत्यु के देवता हैं, इसलिए उनके प्रसन्‍न होने से अकाल मौत का डर कम हो जाता है। यह भी मान्यता है कि पूर्णिमा के दिन तिल और चीनी का दान शुभ होता है। इस दिन चीनी और तिल दान करने से अनजान में हुए पापों से भी मुक्ति मिलती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, पूर्णिमा तिथि का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से मनुष्य के मन और शरीर पर पड़ता है। ज्योतिष में चंद्रमा को मन और द्रव्य पदार्थों का कारक माना जाता है। क्योंकि इस दिन चंद्रमा अपने पूर्ण रूप में होता है। इसलिए आज के दिन व्यक्ति के मन पर पूर्णिमा का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। वहीं मनुष्य के शरीर में लगभग 80 फीसदी द्रव्य पदार्थ है।  अतः पूर्णिमा को चंद्र ग्रह की पूजा का विधान है, ताकि मन और शरीर पर चंद्रमा का शुभ प्रभाव पड़े। इसे बुद्ध पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। बुद