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Showing posts from August, 2020

नई शिक्षा नीति 2020

शीर्षक:- 'नई शिक्षा नीति दूरदर्शिता व दृढ़ संकल्प आधारित' भारत देश के लाखों छात्रों,शिक्षकों,अभिभावकों, शिक्षाविदो,जनप्रतिनिधियों व लगभग एक लाख पच्चीस हजार ग्राम समितियों से विचार-विमर्श के उपरांत नई शिक्षा नीति तैयार की गयी। इस नीति को शैक्षिक सत्र 2021-22 में लागू किया जा सकता है। नई शिक्षा नीति 5+3+3+4 के प्रारूप पर तैयार की गयी है। जिसमें आर.टी.ई. के दायरे को बढ़ाकर 3 से 18 आयु वर्ग के छात्रों को शामिल किया गया है। *1.* पहले,5 वर्ष को फाउंडेशन स्टेज माना गया है। इसमें 3 साल प्री- प्राइमरी व शेष 2 साल कक्षा 1 व 2 के लिये है।इसमें बच्चों की मजबूत नींव तैयार की जायेगी।शिक्षा मातृभाषा,स्थानीय भाषा व राष्ट्रभाषा में दी जायेगी। अंग्रेजी में पढ़ायी की अनिवार्यता खत्म होगी। अंग्रेजी मात्र एक विषय के रूप मे पढ़ायी जायेगी। इस स्टेज को 3 से 8 आयु वर्ग के बच्चों के लिये तैयार किया गया है। यह पूर्णरूप से 'खेलो,कूदो और पढ़ो' के सिद्धान्त पर आधारित है। *2.* इसके बाद के 3 साल में कक्षा 3 से 5 के बच्चों का भविष्य तैयार किया जायेगा। इसमें 8 से 11 वर्ष के बच्चों का परिचय विज्ञान,गणित,

बाबा का स्कूल

बचपन की बात है, जब मैं लगभग नौ वर्ष का था। मैं और मेरा छोटा भाई अभिजीत बाबा के साथ उनकी साइकिल पर बैठकर उनके स्कूल को गये। मेरे बाबा श्री चतुर्भुज शुक्ला जी सरकारी प्राथमिक विद्यालय बीबीपुर दहेलिया में प्रधानाध्यापक पद पर कार्यरत थे। हम शहर में पढ़ते थे। उस दिन अपने गाँव बण्डिया में होने के कारण हमें भी बाबा के स्कूल जाने का अवसर मिला।   बाबा जी से रास्ते भर हम दोनों खूब बातें करते हुये गये। जब बाबा के विद्यालय पहुँचे तो सब बच्चें हमें घूर रहे थे। उन लोगों ने बाबा से गुरुजी नमस्ते करते हुये पूँछा, " ये दोनों कौन है ?" बाबा ने उन्हे हमारे बारें में बताया। प्रार्थना सभा के उपरान्त सब बच्चें अपनी कक्षाओं में चले गये। बाबा के साथी शिक्षकों ने हमसे खूब कवितायें सुनी। हमारी तारीफ़ भी हुयी।  बाबा भी हम पर बहुत खुश हो गये। हम लोगो को खेल खेलने की अनुमति मिल गयी। विद्यालय के बच्चों के साथ हमनें खूब मज़े किये। तभी वहाँ थोड़ी बारिश होने लगी। हम सब बहुत खुश थे।  उस दिन शिक्षक दिवस भी था। बारिश होने के कारण सभी बच्चें बरामदें में एक साथ बैठे। एक मेज पर श्री सर्वपल्ली राधाकृष्णन व ज्ञान की द

एक देश,एक परीक्षा

करोड़ो युवा प्रतिभागी परीक्षाओं की तैयारी में इस आशा से लगे रहते है कि उन्हें एक अच्छी सरकारी नौकरी मिल जाये। वे विभिन्न परीक्षाओं की अलग- अलग तैयारी करते है। जिसके लिये अलग- अलग पाठ्यक्रम होने की वजह से ढ़ेर सारी किताबें खरीदनी और पढ़नी पड़ती है। उनके लिये अब कुछ राहत की खबर लेकर आयी है राष्ट्रीय भर्ती एजेन्सी। जो युवा बैंक, रेलवे और एस.एस.सी की तैयारी कर रहे है, उनके लिये खुशी की खबर है।  लगभग तीन करोड़ युवा इन परीक्षाओं की तैयारी में जुटे रहते है। इस तरह की परीक्षाओं का अब तक आयोजन देश मे लगभग 20 एजेन्सियों द्वारा कराया जाता रहा है। राष्ट्रीय भर्ती एजेन्सी द्वारा अब रेलवे, बैंक और एस.एस.सी. की प्रारम्भिक परीक्षा का आयोजन सम्मिलित रूप से हो गया। मतलब इनकी प्रारम्भिक परीक्षा अलग- अलग न होकर एक ही होगी। अब छात्रों को इनके लिये अलग- अलग आवेदन से भी छुटकारा मिलेगा। अब इन तीनों भर्ती के लिये एक ही आवेदन करना होगा। इस परीक्षा को कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट का नाम दिया गया है। इस परीक्षा में प्राप्त अंको के आधार पर ही छात्र रेलवे, बैंक और एस.एस.सी की मुख्य परीक्षा दे सकेंगे। इस परीक्षा में प्राप्

रद्दी

अनमोल थे मेरे विचार!  फ़िर ... अखबार में छपें और रद्दी हो गये।  बेशकीमती थे हम हम उनके लिये!  फ़िर ...इश्क़ हुआ  और हम बेकार हो गये।।

हम तो बड़े आदमी हो गये

लेख :- 'हम तो बड़े आदमी हो गये'  आज आपकों ले चलता हूँ आपके बचपन की ओर,जहाँ न कोई चिन्ता थी और न ही कुण्ठा। जीवन में उमंग,जोश,खुशियाँ और बस शरारतें थी।  कितना प्यारा था बचपन! तनिक- सी बात पर रूठना और फिर खुश हो जाना। अपने दोस्तों संग खेलना- कूदना और स्कूल जाना। अपनी नयी साईकिल पर दोस्तों को घुमाना और चिल्लर से ही पार्टी हो जाना। मिल बाँटकर हर चीज़ भाई- बहनों और दोस्तों के साथ खाना। झगड़ा और सुलह तो दिन में पचास बार होना। साल भर गर्मियों की छुट्टियों का इंतजार करना और फिर नानी और बुआ के घर जाना। सभी से यथोचित अभिवादन,न ईर्ष्या और न ही द्वेष की भावना का होना। हमारी भी नाव पानी में चलती थी। हमारा हवाई जहाज भी हवा में उड़ता था। कागज़ के थे तो क्या हुआ। अपने घर के बड़े से आँगन में खेल खेलना। होली पर नये कपड़े पहनकर घर- घर जाना। दीपावली पर संग मिलकर दीप जलाना। कितना याद आता है बचपन! उम्र के साथ- साथ सब कुछ परिवर्तित हो गया है या हम बदल गये है? ये विचारणीय है। कुछ भी हो किन्तु पर अब हम बड़े आदमी हो गये है।   हम भले ही सरकारी, प्राइवेट या मल्टी-नेशनल कम्पनी में काम करके अच्छी तनख्वाह पा रह

चिराग

चिरागों से कह दो थोड़ा फुर्सत में रहे अब कुछ अँधेरे भी अच्छे हैं।  लोगों के चेहरे पर चेहरा है यहाँ और उनमें राज भी बहुत गहरें है।

लेख:- शिक्षक,शिक्षार्थी और ऑनलाइन शिक्षण

शीर्षक :- 'शिक्षक,शिक्षार्थी और ऑनलाइन शिक्षण' शिक्षा ही जीवन का आधार है।इसीलिये शिक्षक देशकाल,वातावरण व समय के अनुरूप अपनी शिक्षण विधाओं में भी परिवर्तन करते रहते है, ताकि प्रभावी शिक्षण के माध्यम से बच्चों को लाभान्वित कर सके।शिक्षक सुदृढ़ समाज के निर्माण हेतु सदैव तत्पर व वचनबद्ध रहते है। इसकी जीती जागती तस्वीर इस समय कोरोना जैसी महामारी के काल में भी देखी जा सकती है।शिक्षक ऑनलाइन शिक्षण द्वारा बच्चों तक ज्ञान की गंगा प्रवाहित कर प्रफुल्लित हो रहे है। इन विकट परिस्थितियों में जब विद्यालय बन्द है, तब ऑनलाइन शिक्षा ही एकमात्र विकल्प है।किन्तु ऑनलाइन शिक्षण से न ही शिक्षक संतुष्ट है और न ही शिक्षार्थी और अभिभावक। ऑनलाइन शिक्षण के माध्यम से शिक्षक विषयवस्तु को अपने शिक्षण के माध्यम से बच्चों तक प्रेषित अवश्य कर रहे है किन्तु वह स्वीकार करते है कि उनका शिक्षण इस दशा में इतना प्रभावी नही हो पाता जितना कि विद्यालय की एक कक्षा में होता है। दूसरी तरफ, बच्चों को भी ऑनलाइन शिक्षण एक जटिल प्रक्रिया लगती है। उन्हे भी विषयवस्तु को समझने मे कठिनाई का अनुभव होता है। बच्चों को कई घण्टो तक इस

कुछ लिख पाऊँ

"प्रभु! सूरदास सम दृष्टि देना मैं आपके दर्शन कर पाऊँ, 'सूरसागर' में अपनी सब मैं अभिलाषा लिख पाऊँ।  कृपा से आपकी तुलसीदास-सा मैं बैरागी बन जाऊँ,  "मानस" की रचना कर 'मानस' को मानस कर पाऊँ।  जीवन की सत्यता का मैं भी घर- घर दीप जलाऊँ,  कागज़ कलम छुएं बिना मैं ज्ञानी कबीर बन जाऊँ।  जब भी प्रभु अवतार धरो संग सखा बनकर आऊँ,  आप बनो कृष्ण- कन्हैया मैं सुदामा बन जाऊँ।  प्रभु आपका वात्सल्य मिले तो भक्त हनुमान बन जाऊँ,  माता सीता की सुधि लेकर लंका दहन मैं कर आऊँ।  प्रभु दो वरदान कि अपनी लेखनी से मैं कुछ लिख पाऊँ,  आपकी स्तुति कर मैं अपना जीवन सफल कर जाऊँ।" रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला  शिक्षक,विचारक,साहित्य साधक सीतापुर,उत्तर प्रदेश 

मैं हूँ सुदामा तो मैं ही कृष्ण हूँ

मेरा मित्र सखा तो मैं ही स्वयं हूँ ,  मैं हूँ सुदामा तो मैं ही कृष्ण हूँ।  मैं ही सुख- दुख का संयोग हूँ,  मैं हूँ मिलन तो मैं ही वियोग हूँ।  मैं माँ की ममता- सा शान्त हूँ,  मैं ही द्रोपदी का अटूट विश्वास हूँ।  मैं प्रलय का अन्तिम अहंकार हूँ,  मैं ही भूत,भविष्य और वर्तमान हूँ।  मैं नित्य ही प्रभु का वन्दन करता हूँ,  परिश्रम से स्वेद को चंदन करता हूँ।  विपरीत परिस्थितियों में हिम्मत रखता हूँ,  जुनून से अपने उनका सामना करता हूँ।  जब कभी कुण्ठा अत्यधिक व्याप्त होती है,  अन्तर्मन में सुदामा से मुलाकात होती है।  स्वयं ही स्वयं से स्वयं का आकलन करता हूँ ,  स्वयं सुदामा बन कृष्ण का अभिनंदन करता हूँ।  अपनी परिस्थितियों का मैं ही कर्णधार हूँ,  मैं हूँ पुष्प तो मैं ही तीक्ष्ण तलवार हूँ।  मेरा मित्र सखा तो मैं ही स्वयं हूँ।  मैं हूँ सुदामा तो मैं ही कृष्ण हूँ।। रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर' समाजसेवी व साहित्य साधक