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Showing posts from September, 2020

मीना मंच

लेख-  यूनीसेफ़ परिकल्पना: मीना की दुनिया यूनीसेफ की एक परियोजना के तहत देश के कई राज्‍यों में पहले उच्च प्राथमिक फिर प्राथमिक विद्यालयों में मीना मंच की स्‍थापना की गई है। इसका उद्देश्‍य बालिका शिक्षा को प्रोत्‍साहित करना है। मीना को केन्‍द्रीय पात्र बनाकर कई कहानियों तथा फिल्‍मों की रचना भी की गई है। मीना मंच का गठन कैसे? मीना मंच में 20 छात्राएं सदस्य होती हैं। जिसमें से पांच छात्राओं की कार्यकारिणी समिति गठित होती है। उसी में से एक अध्यक्ष, एक सचिव, एक कोषाध्यक्ष एवं दो सदस्य होते हैं। कार्यकारिणी समिति का कार्यकाल एक वर्ष का होता है। अब प्रश्न यह  उठता है कि मीना कौन है?? बालिकाओं के मुद्दों को सरल एवं सहज रूप से समझने के लिए मीना नाम की लड़की का एक काल्पनिक चरित्र बनाया गया है। प्रत्येक वर्ग एवं समाज की बालिकाएं स्वयं का इससे जुड़ा महसूस कर सकती है। मीना एक उत्साही और विचारवान किशोरी है। जिसमें उमंग,उल्लास,सामाजिक बाधाओं के विरुद्ध लड़ने का जज्बा रखती है और समस्या समाधान हेतु किसी से बातचीत करने में हिचकिचाती नही है। मीना अपने माता-पिता, दादी, भाई राजू और बहन रानी के साथ रहती है। मि

सूचना- शिकायत में अन्तर समझे

लेख:- सूचना और शिकायत में अन्तर समझे  सूचना के माध्यम से आँकड़ो का एकत्रीकरण करके उन्हे सम्बंधित संस्था, प्राधिकारी और सरकार तक प्रेषित किया जाता है, ताकि आपके सेवारत क्षेत्र को अधिक कार्यकुशल व प्रभावी बनाया जा सके। सूचनाओं का आदान- प्रदान एक नियत व्यवस्था के तहत सम्पादित होता है। सूचनाओं के संकलन के लिये संस्था,विभाग,सरकार या अधिकारी द्वारा किसी कर्मचारी को नियत किया जाता है। जिसका कार्य अपने कार्यरत विभाग,क्षेत्र या प्रदत्त सूचनाओं का संग्रहण कर उन्हे संबंधित प्राधिकारी तक प्रेषित करना होता है। जो सूचनाये उसे अपने सहकर्मियों तथा संबंधित क्षेत्र के व्यक्तियों द्वारा उपलब्ध करायी जाती है। वह सभी प्रदत्त सूचनायें सम्बंधित प्राधिकारी को तुरंत उपलब्ध करा देता है। परन्तु कुछ लोग सूचना प्रदान करने में लापरवाही करते है। विभाग या संस्था द्वारा माँगी गयी सूचना को नामित व्यक्ति तक भेजते ही नही है। कभी- कभी सूचना देने में अति विलम्ब कर देते है। जिससे विभागीय कार्यों में बांधा भी उत्पन्न होती है। कुछ कर्मचारी लापरवाही और उदासीनता दिखाते हुये स्वयं सूचनाएँ उपलब्ध नही कराते है और इसी के साथ सूचना स

हिन्दी क्यों पढ़ते है

शीर्षक:- हिन्दी क्यों पढ़ते है  हिन्दी मात्र भाषा नही बल्कि सभी भाषाओं की धड़कन है। हिन्दी ने सभी भाषाओं को अंगीकार करके उनका मान बढ़ाया है। हिन्दी समाज को दिशा देने का कार्य करती है। हिन्दी वैज्ञानिक भाषा है जो शरीर के विभिन्न अंगो कण्ठ,मूर्धन्य,तालव्य,ओष्ठय और दन्त आदि का प्रयोग करके बोली जाती है। जो अंगो की क्रियाशीलता के साथ उच्चारण को भी स्पष्ट बनाती है। रस और अलंकार हिन्दी को जीवन्त और भावपूर्ण बनाते है। इस भाषा की एक विशेष बात है कि इसे जैसा लिखा जाता है, वैसा पढ़ा भी जाता है। हिन्दी भारत मे एक विषय के रूप मे पढ़ायी जाती है। जैसे कि अन्य विषय भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान ,गणित और अन्य विषय आदि। जब हम किसी विषय को पढ़ते है तो उसका एक निश्चित उद्देश्य होता है। जीव विज्ञान ठीक से पढ़ लो तो डॉक्टर बन जाओगे और भौतिक विज्ञान व गणित पढ़ लो तो अभियन्ता बन जाओगे। हमें यह बताया जाता है। यह ज्वलन्त प्रश्न है और उसका उत्तर भी हमें ही खोजना है कि हिन्दी क्यों पढ़ायी जाती है? हिन्दी का पढ़ाने का उद्देश्य इतना सीमित नही है कि उसे परिभाषित नही किया जा सकता। हिन्दी मानवीय गुणों का विकास क

मैं प्रतिमा हूँ

शीर्षक:- मै प्रतिमा हूँ   सरल,सौम्य,निश्चल और अनन्त प्रेम की धार हूँ,  संशय,भय और अन्धकार में तीक्ष्ण तलवार हूँ।  दया और ममता की जीती जागती प्रतिमा हूँ,  सृष्टि के प्रारंभ और अनन्त की अविरल कविता हूँ। परिवार,समाज और देश की सच्ची पतवार हूँ,  मैं नारी हूँ इस ब्रम्हाण्ड का सच्चा श्रृंगार हूँ।  मैं पीर का पर्वत और सुखों का संसार हूँ,  मैं इस सम्पूर्ण संसार की सच्ची खेवनहार हूँ।  मैं हूँ उमा तो मैं ही काली का अवतार हूँ।  मैं नारी हूँ, मैं जीवन की सच्ची पतवार हूँ।  रचनाकार:  अभिषेक कुमार शुक्ला  सीतापुर,उत्तर प्रदेश

दीक्षा ऐप

दीक्षा ऐप बहुत गुणकारी इसमें ज्ञान की दुनिया सारी।  शिक्षक- शिक्षार्थी दोनो हेतु यह है अत्यन्त लाभकारी।   सभी राज्यों द्वारा संचालित पाठ्यक्रम का संग्रह न्यारा।  क्यूआर कोड के माध्यम से पाठ्यवस्तु पढ़ना लगता है प्यारा। सभी विषयों और भाषाओं का इसमें है समुचित सरल ज्ञान। इसमें सभी भाषाओं संग मातृभाषा को मिलता है मान।   शिक्षकों हेतु विभिन्न विषयों के उपलब्ध है सारे प्रशिक्षण।  जो सहायक सिद्ध होते है और उपयोगी बनाते है कक्षा शिक्षण। इसमें खेल आधारित गतिविधियों से सम्बंधित वीडियो है सारी। बच्चे देखकर है सीखते और उन्हे यह सब लगती है बहुत प्यारी। दीक्षा ऐप बहुत गुणकारी इसमें ज्ञान की दुनिया सारी।  शिक्षक-शिक्षार्थी दोनो हेतु यह है अत्यन्त लाभकारी।।

जरा ! देख के चलो

लेख - 'जरा! देख के चलो'  प्राचीनकाल में मानव स्वयं के विवेक के अनुसार जंगलो के बीच से रास्ते खोजकर अपनी मंजिल तक पहुँचता था। धीरे-धीरे कच्चें रास्ते बने और हमारे पुरखे उन पर पैदल,साइकिल और बैलगाड़ी से चलने लगे। विकास का पहिया घूमा और फिर सड़को का निर्माण हुआ। समय परिवर्तित हुआ फिर फर्राटे भरते हुये अत्य- आधुनिक गाड़ियो का जमाना आ गया। दुर्घटनाएं भी बढ़ने लगनी जिसके कारण सरकार द्वारा यातायात के कुछ नियम बनाये गये ताकि सभी सुरक्षित रहे। हम सबको पता है कि हमें सड़क पर बायी ओर चलना चाहिये। वाहन की गति कम रखनी चाहिये और यातायात के अन्य सभी नियमो, सड़क के किनारे बोर्ड पर दर्शाये गये संकेतो और यातायात पुलिस के दिशा निर्देशों को हमे अवश्य ही पालन करना चाहिये। दुपहिया वाहन चलाते समय हेलमेट व चार पहिया वाहन का प्रयोग करते हुये सीट बेल्ट का प्रयोग अवश्य ही करे। वाहनों का प्रयोग करने से सम्बंधित यातायात के नियमों से आप सब भलीभाँति परिचित है। यातायात के नियम पैदल चलने वालों के लिये भी है। जिस सड़क पर डिवाइडर बने हुये वहाँ पर आप सड़क के बायी ओर चले। जहाँ तक सम्भव हो फूटपाथ का ही प्रयोग करे।जिस सड़क

शिक्षक कैसे होने चाहिये

लेख- 'शिक्षक कैसे होने चाहिये' युग निर्माता,छात्रों का भाग्य विधाता और उनके उज्ज्वल भविष्य को सुदृढ़ सरंचना प्रदान करने वाला शिक्षक ही होता है। शिक्षाविदों और मनीषियों ने शिक्षक की बहुत सी मान्य परिभाषायें दी है किन्तु ईश्वर,माँ और शिक्षक को कोई भी विद्धान परिभाषित नही कर सकता और न ही इन्हें शब्दों में बांधकर इनको सीमित किया जा सकता है। इनकी महिमा का सिर्फ हम बखान कर सकते है। जो किसी के जीवन की गाथा स्वयं लिखता है उसे नये आयाम प्रदान करता हो, इसलिये शिक्षक वन्दनीय और उनका पथ अनुकरणीय होता है। शिक्षक सच्चा पथप्रदर्शक होता है। समाज शिक्षक से बहुत- सी आशायें रखता है। जिनकी पूर्ति सिर्फ शिक्षा के माध्यम से शिक्षक ही कर सकता है। संस्कारयुक्त समाज की स्थापना केवल शिक्षक के प्रयासों से ही सम्भव है। समाज इस बात को स्वीकार भी करता है। इसलिये वह अपेक्षा  करता है कि शिक्षक कैसे होने चाहिये? शिक्षक सिर्फ शिक्षा ही नही देते अपितु वे अपने किरदार को जीते है। इसलिये शिक्षक सदाचारी,कर्तव्यनिष्ठ व समय का पाबंद होना चाहिये। देशकाल,वातावरण व वैश्विक सम्बन्धों में निरंतर परिवर्तन हो रहे है।

जागो अभिभावक जागो

*जागो अभिभावक जागो*  शिक्षा जीवन का आधार होती है। शिक्षा हमें जीवन जीने की कला प्रदान करती है। शिक्षाविदों ने शिक्षा को अलग-अलग तरह से परिभाषित किया। लेकिन सबने स्वीकार किया कि शिक्षा बालक का शारीरिक,मानसिक और अध्यात्मिक विकास करती है और उसे भविष्य के लिये तैयार करती है। जब बात शिक्षा की आती है,तो हमें शिक्षक,शिक्षार्थी,पाठ्यक्रम,स्कूल और कक्षा याद आती है। जिसमें प्रमुख स्थान शिक्षक का होता है। शिक्षक अपने छात्रों को सभी विषयों का ज्ञान प्रदान करते है और उन्हें सुनहरे भविष्य के लिये गढ़ने का कार्य करते है। जान डीवी ने शिक्षा को त्रिमुखी प्रक्रिया कहा था,जिसमें शिक्षक,शिक्षार्थी और पाठ्यक्रम को स्थान दिया। पाठ्यक्रम का महत्व है किन्तु शिक्षा सिर्फ ज्ञान प्रदान करना ही नही है। ज्ञान तो कई माध्यमों से प्राप्त किया जा सकता है। विषयवस्तु तो किताबों,गूगल और समाचार पत्रों,पत्रिकाओं में भरी पड़ी है। शिक्षा का उद्देश्य सर्वांगीण विकास है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भी शिक्षा त्रिमुखी प्रक्रिया ही है यह बात मैं स्वीकार करता हूँ। मेरे अनुसार शिक्षा की प्रक्रिया के प्रमुख अंग शिक्षक,शिक्षार्थी और अभिभ