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Showing posts from May, 2019

उदन्त मार्तण्ड

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'उदंत मार्तण्ड' है हिन्दी पत्रकारिता की आधारशिला, 'प्रथम हिन्दी समाचार पत्र' होने का इसको मान मिला। पण्डित युगुल किशोर शुक्ल ने था इसको प्रारंभ किया, अपनी प्रतिभा व निजी संसाधनो से इसका सम्मान किया। '30 मई 1826' को इसका प्रथम अंक प्रकाशित हुआ, इसमे 'मध्यदेशीय भाषा' का ओज प्रस्फुटित हुआ। यह पत्र 'पुस्तकाकार' मे कलकत्ता से छपता था, पूरे देश मे लगभग 500 प्रतियों मे बिकता था। डेढ़ वर्ष मे 'उदंत मार्तण्ड' के 79 अंको का प्रकाशन हुआ, यह पत्रकारिता क्षेत्र मे 'मील का पत्थर' साबित हुआ। 'उदंत मार्तण्ड' के कारण पण्डित युगुल किशोर शुक्ल याद किये जाते है, '30 मई' को हम सब मिलकर 'हिन्दी पत्रकारिता दिवस' मनाते है।" आप सभी को 'हिन्दी पत्रकारिता दिवस' की हार्दिक शुभकामनाएं... रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

चौधरी चरण सिंह-'द रियल जाट'

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23 दिसम्बर 1902 को 'चौधरी चरण सिंह' का जन्म हुआ, जिला गाज़ियाबाद संग देश को सच्चा सिरमौर 'जाट' मिला।  पिता श्री मीर सिंह ने इनको नैतिक मूल्यों का ज्ञान दिया,  गरीब किसानो के शोषण के खिलाफ आपने आवाज उठाई, इसीलिये 'किसानो के मसीहा' के रूप मे दुनिया मे पहचान पाई। हिंडन नदी पर नमक बना 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' मे साथ दिया,  उत्तर प्रदेश के बन मुख्यमन्त्री 'लेखपाल' पद का सृजन किया।  केंद्र सरकार मे बन गृहमंत्री 'मंडल और अल्पसंख्यक आयोग' की स्थापना की,  भारत के बन वित्तमंत्री और उप प्रधानमंत्री 'नाबार्ड' की स्थापना की।  जुलाई 1979 मे इस 'यशस्वी जाट' ने प्रधानमंत्री पद को सुशोभित किया,  जिस कार्य मे मिलकर कांग्रेस(यू) और समाजवादी पार्टियो ने साथ दिया।  '29 मई' को उनकी पुण्यतिथि पर हम सब उन्हे स्मरण करते है, उस 'धरापुत्र' को हम भारतवासी मिलकर कुसुम अर्पित करते है। रचनाकार:-  अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'  (अच्छा लगे तो शेयर भी करे)

विनायक दामोदर सावरकर

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भारतवासियों के लिए आज भी सच्चे प्रेरणास्रोत, अपनी देश सेवा से किया सबको ओतप्रोत।  देश की आजादी के लिए कई क्रांतिकारी गतिविधि चलायी,  अपने चिन्तन और लेखन से ब्रिटिश शासन की जड़े हिलायी। हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद के विस्तारक है माने जाते,  विनायक दामोदर सावरकर इसीलिये है पूजे जाते।  नासिक षणयंत्र मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई,  ब्रिटिश सरकार ने काला पानी की सजा सुनाई। धर्मांतरण के खिलाफ सबसे पहले आवाज उठाई, आपने 'हिन्दू नास्तिक' के रूप मे थी पहचान पाई। आपने 'अभिनव भारत' नामक क्रांतिकारी संगठन बनाया,  अपने प्रयास से आजादी का अलख जगाया।  बम्बई के प्रसिद्ध 'पतित पावन मन्दिर' के संस्थापक आप ही है माने जाते,  'द इन्डियन वार ऑफ इंडिपेंडेंस' पुस्तक से हम इतिहास की जानकारी है पाते।  रचनाकार:-  अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

चुनाव परिणाम

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राजनीति के चक्कर मे न जाने कितने आपस मे रूठ गये, दल-दलो के दलदली रणनीति से अपने भी कुछ दूर हुये।  चुनाव परिणाम आते ही नेता तो गठबंधन कर लेगे,  कुर्सी के चक्कर मे मिलकर अपना काम सब कर लेंगे।  मौका मिला तो इस दल से उस दल मे परिवर्तन कर लेंगे,  पाँच साल बैठकर वह फिर सत्ता का सब सुख लेंगे।  तुम भी नेताओं की तरह कुछ तो समझदार बन जाओ,  सब राग द्वेष भूलकर अपनो के गले फिर लग जाओ।। रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

कैसे समर्पित कर दूँ

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आप लिखते खूब हो पर कभी गाते नही हो, मंच पर सबकी तरह नजर आप आते नही हो।  आपकी रचनाओं मे जीवन की सारी सच्चाई दिखती है,  हर पाठक को उसमे अपनी ही परछायी दिखती है।  आप कभी-कभी कड़वी बात भी लिख देते हो,  लोगों को दर्पण मे उनका अक्स दिखा देते हो।  कुछ लोग आपसे अन्दर ही अन्दर जलते है,  पीठ पीछे आपकी खूब अलोचना करते है।  पाठक से इतने सवाल सुनकर मुझे अच्छा लगा,  फिर हर एक बात का मै भी जवाब देने लगा।  मै जीवन की कड़वी सच्चाई शान से लिखता हूँ,  इसीलिये कुछ लोगों की आँखों को खलता हूँ। जो जलते है मुझसे वो बराबरी कर सकते है, है हुनर तो वो भी चंद पंक्तियाँ लिख सकते है। शायद जीवन की डगर बहुत टेढ़ी-मेढ़ी होती है,  अगले पल क्या होगा ये बात हमे न पता होती है।  बोलो ऐसी अनिश्चितता को किस तरह लयबद्ध कर दूँ ,  और अपनी अधूरी छवि को कैसे मंच को समर्पित कर दूँ!!  रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

क्या अपने बन पायेंगे?

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वही है चाँद पर अब उससे ख्वाहिशे बदल गयी,जिन्दगी ने लिए इतने मोड़ कि मायने बदल गये।  बचपन में जिस चाँद को मामा कहते थे,अब महबूब की सूरत मे उसको ढूँढने लगे।  जिन पगडंडियो पर आवाजें लगाकर चलते थे,आज उन्हे छोड़ शहर की ओर चल दिये।  अब कोई बड़ा बुजुर्ग गलती पर डांटता नही,क्योंकि हम खुद को बहुत बड़ा समझने लगे।  छुट्टियों मे अपनी टोली संग खूब धूम मचाते थे,पर अब हम चहारदीवारी मे रहने लगे।  नानी,बुआ और मौसी के वहाँ अब न आना जाना होता है,हम तो अब खुद मे व्यस्त रहने लगे।  जो रूठ जाता था सब मिलकर उसे मनाते थे,बड़ी सादगी से सारे रिश्ते नाते निभाते थे।  अब अगर गलती से भी कोई हमसे रूठ गया,तो पक्का मानो उससे रिश्ता नाता टूट गया।  अब फुर्सत ही नही मिलती कि सबकी फिक्र कर सके,कुछ अपनी कहे और दूसरों की भी सुन सके।  हम सब अपनी मस्ती मे रहते है,उसे फिक्र नही,तो मुझे क्या?बस यही सोचते रहते है।  हमने खुद को एक दायरे मे समेट लिया,जो न चल सका साथ उसे हमने छोड़ दिया।  बचपन सा प्यारा मन अब हम कहाँ से लायेगे?क्या रिश्तों की कीमत हम सब समझ पायेंगे?  क्या फलक पर चांद तारे सज पायेंगे,जो है अपने क्य

गाँव की मिट्टी

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गाँव की मिट्टी मे सौंधी सी खुशबू आती है,  रिश्तों मे अपनेपन का एहसास कराती है।  चलती हुई पावन पवन मन को छू जाती है,  नीम और बरगद की छाया पास बुलाती है।  अपने घर आँगन की तो बात ही निराली है,  गूलर के पेड़ पर बैठ कोयल गाती मतवाली है।  पानी और गुड़ से स्वागत की शान निराली है,  सभी मेहमानों को इसकी मधुरता खूब भाती है।  कोल्हू से गन्ने का रस पीकर हम मौज मनाते है,  हम गाँववाले कुछ इस तरह गर्मी भगाते है।  हप्ते मे हम दो दिन ही गाँव की बाज़ार जाते है,  हरी सब्जियां और आवश्यक सामान घर लाते है। जोड़,घटाना,गुणा,भाग मे हम थोड़े कच्चे होते है,  लेकिन रिश्तों को निभाने मे एकदम पक्के होते है।  रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'