कैसे समर्पित कर दूँ
आप लिखते खूब हो पर कभी गाते नही हो,
मंच पर सबकी तरह नजर आप आते नही हो।
आपकी रचनाओं मे जीवन की सारी सच्चाई दिखती है,
हर पाठक को उसमे अपनी ही परछायी दिखती है।
आप कभी-कभी कड़वी बात भी लिख देते हो,
लोगों को दर्पण मे उनका अक्स दिखा देते हो।
कुछ लोग आपसे अन्दर ही अन्दर जलते है,
पीठ पीछे आपकी खूब अलोचना करते है।
पाठक से इतने सवाल सुनकर मुझे अच्छा लगा,
फिर हर एक बात का मै भी जवाब देने लगा।
मै जीवन की कड़वी सच्चाई शान से लिखता हूँ,
इसीलिये कुछ लोगों की आँखों को खलता हूँ।
जो जलते है मुझसे वो बराबरी कर सकते है,
है हुनर तो वो भी चंद पंक्तियाँ लिख सकते है।
शायद जीवन की डगर बहुत टेढ़ी-मेढ़ी होती है,
जो जलते है मुझसे वो बराबरी कर सकते है,
है हुनर तो वो भी चंद पंक्तियाँ लिख सकते है।
शायद जीवन की डगर बहुत टेढ़ी-मेढ़ी होती है,
अगले पल क्या होगा ये बात हमे न पता होती है।
बोलो ऐसी अनिश्चितता को किस तरह लयबद्ध कर दूँ ,
और अपनी अधूरी छवि को कैसे मंच को समर्पित कर दूँ!!
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