फ़ीते

लघुकथा:- फ़ीतें

शशि नाम की लड़की बन्डिया गाँव  मे रहती थी। वह बहुत बुद्धिमान किन्तु शरारती थी। उसकी छोटी बहन निशा सीधी-सादी थी। शशि और निशा के पिताजी प्राइमरी स्कूल में अध्यापक थे। स्कूल के पास मेले से उनके पिताजी ने लाल और हरे रंग के चार फीतें खरीदे। उन्होंने सोचा कि दो लाल रंग के फ़ीतें बड़ी बिटिया शशि को दे देंगे और दो हरे रंग के फ़ीतें छोटी बिटिया निशा को दे देंगे। दोपहर मे जब वह घर पहुंचे तो निशा सो रही थी बड़ी बिटिया शशि झूला झूल रही थी। अपने पिताजी को आते देख उनके पास गई और बोली पिताजी! मेरे लिए मेला से क्या लाए हो? पिताजी चारो फ़ीते उसे देते हुये बोले कि लाल वाले दो फ़ीतें तुम्हारे हैं और हरे वाले दो फ़ीतें तुम्हारी छोटी बहन निशा के है।
शशि ने मन में सोचा कि कुछ ऐसा करूँ कि चारों फ़ीतें मुझे मिल जाए। दोपहर के बाद गांव  की बाजार जाने के लिए शशि तैयार हुई और साथ में अपनी छोटी बहन निशा को भी ले गई। दोनों बाजार पहुंची बाजार में चाट  व मिठाई खाई। उसके बाद शशि हार्दिक शुभकामनाएं व बधाई अपनी बहन निशा को लेकर नाई की दुकान पर पहुंच गई। उसने नाई से कहा कि- "नाई चाचा! मेरी छोटी बहन के बाल काट दो।" जब निशा ने मना किया तो शशि ने कहा कि मम्मी ने कहा था कि तुम्हारे बाल कटवा दूँ। नाई ने निशा के बाल छोटे-छोटे काट दिए। जब दोनों बहने बाजार से घर पहुंची तो उनके मां और पापा निशा के छोटे बालों को देखकर हैरान रह गए। उन्होंने पूछा कि यह किसने किया, तो निशा ने रोते हुए सारी बात बताई। 
पिताजी ने शशि को डांटते हुए कहा- "तुमने ऐसा क्यों किया?" पिताजी की डांट से शशि ने रोते-रोते कहा कि पिताजी मेरे मन में लालच आ गया था कि मुझे चारों फ़ीतें मिल जाए। इसलिए मैंने निशा के बाल कटवा दिए। उसके पिताजी ने उसे समझाते हुए कहा- "मैं तुम्हारे लिए और फीते ला देता। तुम्हे ऐसा नही करना चाहिए था। अपने से छोटे के प्रति स्नेह भाव रखना चाहिए।" 
जब शशि को अपनी शरारत व गलती का एहसास हुआ तो उसने अपने माता-पिता से माफी मांगी। उसने अपनी छोटी बहन निशा को उसके फ़ीतें देते हुए बोली- "बहन! जब तुम्हारे बाल बड़े हो जाए, तब इन फ़ीतों को बांध लिया करना।" शशि की यह बात सुनकर निशा उसके गले से लग गई।

लेखक:-
अभिषेक शुक्ला
सीतापुर,उत्तर प्रदेश

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