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Showing posts from May, 2020

सुर - असुर

किसने कितना फ़र्ज निभाया,  किसने कितने पत्थर फेंके...  हमने इस कठिनाई के दौर में,  लोगों के असली चेहरे देखे... डॉक्टर,पुलिस और सफ़ाईकर्मियों में,   जीवन्त मानवता के लक्षण देखे...   इस बुरे वक्त के अविस्मरणीय पलों में, हमने सुर-असुरों में भेद है देखे....!!  

सच कहता हूँ

आया 'कोरोना वायरस' सबसे ज्यादा हम बेहाल हुये,  सच कहता हूँ,हम मजदूरों के बहुत ही बुरे हाल हुये।  छूटा रोजगार तो दाल रोटी के लाले हो गये,  मकान मालिक भी किराये के तलाशी हो गये।  हम मजदूर,मजबूर,बेबस व लाचार बन गये,  उठा झोला परिवार संग घर की ओर चल दिये।  न ट्रेन,न ही मोटरकार और न ही कोई बस मिली,  पैदल ही चले क्योंकि न कोई और आशा दिखी।  हम गिरे,गिरकर फिर उठे,चल दिये,चलते गये,  खुद रोये,खुद चुप हो गये,आगे बढ़े,बढ़ते गये।  भूख,प्यास से हम जूझते गये फिर भी आगे बढ़ते गये,  पैरों के छालों की ना फ़िक्र की,हम आगे चलते गये।  जो आयी विपदा उसके हम गरीब न जिम्मेदार है,  जो रईस आये विदेश से वही असली कर्णधार है।  तुम 'एअरपोर्ट' पर अच्छे से उनकी जाँच करते,  होते लक्षण तो उन्हे वही ही क्वारेंनटाईन करते।  न फैलता वायरस और हम सब सुरक्षित बच जाते,  चन्द रईसों के चक्कर मे यूँ न हम दर-दर की ठोकर खाते।  करनी इनकी थी पर बदनाम हम गरीब मजदूर हो गये,  इन पासपोर्ट्स के चक्कर मे राशनकार्ड के चिथड़े उड़ गये।"

मजदूर हूँ

मजदूर हूँ  पैदल चल पड़ा  घर की ओर विपदा आयी सबने छोड़ दिया मौत की ओर आशावादी हूँ  खुद ही जीत लूँगा यह युद्ध भी तुम कौन हो? समाज या शासन बोलो खुद ही बन निष्ठुर हमे ढ़केल दिया  काल की ओर...!!'

सुनो गाँव!अब परदेश न जाना

आयी विपदा न कोई सहाय हुआ छूटा रोजगार बहुत बुरा हाल हुआ तुम्हारा कष्ट भी किसी ने न जाना पसीने से सींचा जिन शहरों को... किसी ने तनिक एहसान न माना सुनो लला!अब परदेश न जाना।। छोड़ आये थे तुम जिसे एक दिन आयी फिर उस गाँव-घर की याद पश्चाताप की इस कठिन घड़ी में  न ही तेरा कोई हुआ सहाय गाँव का सफ़र पैदल पड़ा नापना सुनो लला!अब परदेश न जाना।। तुम गाँव मे रहकर मेहनत खूब कर लेना परिवार का भरण पोषण भी कर लेना मन हो भ्रमित तो याद फिर... खूब उन विपदा के पलों को कर लेना सुनो लला!अब परदेश न जाना।। सुनो गाँव !अब परदेश न जाना।।