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पत्रकार

कुछ रोटियों पर बिक गए... कुछ नशे और नोटों पर बिक गये ! ईमान की कलम थामी जिसने... उसके हजार दुश्मन पल मे बन गये !!

जल है जीवन

शीर्षक:- जल है जीवन  जल है जीवन  जल है पावन जल से सारा संसार चले। जीव- जन्तु और पेड़-पौधें, इससे ही पले बड़े होते। लगता है जग सब हरा-भरा, सुन्दर-सुन्दर सब वसुन्धरा। तुम तनिक समझ लो महत्व इसका, जल बिन जीवन सम्भव न किसी का। पीने योग्य सीमित ही जल है, जल है तब ही निश्चित कल है। जल संरक्षण से ही भविष्य हमारा, कर लो मन मे यह प्रण प्यारा। आओं मिलकर जल को बचाये, इसे निरर्थक हम कभी न बहाये। मिलकर देते है हम यह सन्देश, जल संरक्षण कर बनाओ सुन्दर देश। जल है जीवन,जल है पावन,जल से ही सारा संसार चले। हर नागरिक दायित्व समझकर जल संरक्षण की राह चले।। रचनाकार:- अभिषेक कुमार शुक्ला सीतापुर,उत्तर प्रदेश

फ़ीते

लघुकथा:- फ़ीतें शशि नाम की लड़की बन्डिया गाँव  मे रहती थी। वह बहुत बुद्धिमान किन्तु शरारती थी। उसकी छोटी बहन निशा सीधी-सादी थी। शशि और निशा के पिताजी प्राइमरी स्कूल में अध्यापक थे। स्कूल के पास मेले से उनके पिताजी ने लाल और हरे रंग के चार फीतें खरीदे। उन्होंने सोचा कि दो लाल रंग के फ़ीतें बड़ी बिटिया शशि को दे देंगे और दो हरे रंग के फ़ीतें छोटी बिटिया निशा को दे देंगे। दोपहर मे जब वह घर पहुंचे तो निशा सो रही थी बड़ी बिटिया शशि झूला झूल रही थी। अपने पिताजी को आते देख उनके पास गई और बोली पिताजी! मेरे लिए मेला से क्या लाए हो? पिताजी चारो फ़ीते उसे देते हुये बोले कि लाल वाले दो फ़ीतें तुम्हारे हैं और हरे वाले दो फ़ीतें तुम्हारी छोटी बहन निशा के है। शशि ने मन में सोचा कि कुछ ऐसा करूँ कि चारों फ़ीतें मुझे मिल जाए। दोपहर के बाद गांव  की बाजार जाने के लिए शशि तैयार हुई और साथ में अपनी छोटी बहन निशा को भी ले गई। दोनों बाजार पहुंची बाजार में चाट  व मिठाई खाई। उसके बाद शशि हार्दिक शुभकामनाएं व बधाई अपनी बहन निशा को लेकर नाई की दुकान पर पहुंच गई। उसने नाई से कहा कि- "नाई चाचा! मेरी छोटी बहन के बाल का

शरीफ़

शरीफ़ के लिए राजनीति नही। राजनीति मे कोई शरीफ़ नही।

शिक्षा की उड़ान

शीर्षक:- शिक्षा की उड़ान  तितली हूँ, मैं तितली हूँ आसमान मे उड़ती हूँ, रंग-बिरंगे फूलों से सतरंगी सपनें बुनती हूँ। इन्द्रधनुष-सी दुनिया मेरे ख्वाबों मे अब पलती है, झंझावत के काले मेघों मे दामिनी  बन सजती हूँ। लड़की हूँ,मैं लड़की हूँ,मैं भी तो पढ़ सकती हूँ, शिक्षा से सफ़लता की नई परिभाषा लिख सकती हूँ। बेटा- बेटी मे फ़र्क नही,यह पूरी दुनिया कहती है, सरकारी विद्यालय मे अच्छी शिक्षा मिलती है। पापा! नामांकन करा दो मेरा,मैं आपसे वादा करती हूँ, भईया की तरह मै भी आपका नाम रोशन कर सकती हूँ। रंग- बिरंगे फूलों से सतरंगी सपने बुनती हूँ। लड़की हूँ,मैं लड़की हूँ नए प्रतिमान गढ़ सकती हूँ। रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला  सीतापुर,उत्तर प्रदेश

ट्रेन हमारी

बाल गीत- ट्रेन हमारी छुक-छुक चलती ट्रेन हमारी, लगती है यह सबको प्यारी। दूर-दूर तक सैर कराती, हमकों सारी दुनिया दिखलाती।। रचनाकार- अभिषेक शुक्ला सीतापुर,उत्तर प्रदेश

कलयुग

शीर्षक:- कलयुग भावना शून्य हो गई,शीर्ष पर अभिमान है, कलयुग की कली पुष्पित होने को तैयार है। रिश्तों की मर्यादा शून्य, आत्म केंद्रित विचार है, बूढ़े मातु-पिता हेतु अब तो वृद्धाश्रम तैयार है। समाज गूँगा हुआ और बहरी हुई  दीवार है, झूठ,छल,प्रपंच की माया अब तो अपरम्पार है। हर शक्स आभासी दुनिया मे जोड़े मित्र हज़ार है, पर मुसीबत मे अकेले ही कूटता छाती बारम्बार है। पुरुष घर- बाहर पुरुष उत्पीडन है झेल रहा, मर्द को दर्द नही इस दम्भ मे मुंह न खोल रहा। झूठी शान- शौकत की खातिर मर्यादा तार-तार हुई, देखो! कलयुग की माया किस तरह विस्तार हुई।   कलयुग मे कलि रूप मे आकर,अब प्रभु अवतार धरो, जनमानस के अभिषेक की खातिर यह प्रार्थना स्वीकार करो। रचनाकार- अभिषेक शुक्ला सीतापुर,उत्तर प्रदेश