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Showing posts from July, 2020

पितृसत्तात्मक समाज

पितृसत्तात्मक समाज पर चर्चा के पूर्व यह समझ लेना अत्यन्त ही आवश्यक है कि पितृसत्ता क्या होती है? पितृसत्ता अंग्रेजी के पैट्रियार्की (Patriarchy)का हिन्दी रूपांतर है।पैट्रियार्की शब्द दो यूनानी शब्दो पैटर (Pater) और आर्के (Arche) से मिलकर बना है।जिनका अर्थ क्रमशः पिता और शासन है।अत:पैट्रियार्की का अर्थ पितृसत्ता होता है। इसलिये जो समाज पितृ यानि पुरुष के दिशा निर्देश व नियन्त्रण मे रहता है उसे पितृसत्तात्मक समाज कहते है। कुछ विचारक व पितृसत्तात्मक समाज को महिला विरोधी मानते है।उनका कहना है इस समाज मे महिलाओं को दूसरे पायदान पर रखा जाता है और उनका शोषण किया है। इन्ही कुण्ठित विचारो का नाजायज फायदा उठाकर कई महिला संगठन समाज की शान्ति को भंग करके उसे असंतुलित कर रहे है। इतिहास साक्षी है कि हमारे देश मे हमेशा से ही नारी पूजनीय रही है,उन्हे देवी का रूप माना जाता है।पुरुष और महिलायें हर क्षेत्र मे हमेशा से ही कन्धे से कन्धा मिलाकर विकास की ओर अग्रसर रहे है। पितृसत्तात्मक समाज,प्रथम दृष्टा शोषणयुक्त भले ही लगता हो परन्तु इसके संचालन मे समाज अनुशासित रहता है व तीव्र गति से विकास को प्राप्

जीवन का लें संकल्प, आत्महत्या नही है विकल्प

लेख:- आत्महत्या यानी खुद ही खुद की हत्या कर लेना।अपने आप ही अपने प्राण ले लेना अर्थात् आत्महत्या कर लेना उचित नही है। आत्महत्या एक जघन्य अपराध है।ईश्वर के द्वारा दिये गये अनमोल जीवन की लीला समाप्त कर लेना,एक अनुचित कार्य है। सभी के जीवन में ऐसी परिस्थितियाँ कभी न कभी अवश्य उत्पन्न हो जाती है,जब व्यक्ति को उन समस्याओं से निकलने का कोई भी मार्ग दिखायी नही देता।वह कुंठाग्रस्त होकर मानसिक तनाव भी सहन करता है।परन्तु तब उसका धैर्य व शिक्षा ही उसे जीवन का मार्ग दिखाते है। वर्तमान आर्थिक युग में बहुत सी समस्यायें हमने खुद भी तैयार कर ली।पश्चिमी सभ्यता के अनुसरण,दिखावे के प्रचलन और झूठी प्रतिस्पर्धा के कारण हम नित नवीन समस्याओ में उलझ जाते है। आज की जिन्दगी मे कुछ भी स्थिर नही है।विश्वासघात,राजनीति और रिश्तों की अस्थिरता हमारे जीवन का अंग बन चुके है।कभी रोजगार मे उच्च लक्ष्य प्राप्ति,ज्यादा मुनाफ़ा की चाह भी हमे चिंताग्रस्त करती है। कभी पारिवारिक कलह भी हमे बहुत कष्ट देती है।आज प्रत्येक व्यक्ति स्वंतंत्र रहना चाहता है तथा अपने हिसाब से अपना जीवन जीने की चाह रखता है।किसी का तनिक भी हस्त

वहम

सबने अपने किरदार पर पर्दे डाल रखे है।  फैसला मेरा करेगे...  यह वहम भी पाल रखे है।।

नासमझ

जो अपनी खुद की पहचान छिपाये बैठे है।  वो नासमझ मेरे वजूद पर शर्त लगाये बैठे है।।

शर्म करो

 "लज्जा नही आती जब देश के खिलाफ़ बोलते हो,  जिस थाली में खाते हो उसी में छेद करते हो।  इसी देश मे जन्मे यही पले और बड़े हुये,  बोले दुश्मन के जैसे क्यों शब्द तुम्हारे तीक्ष्ण हुये।  इसी धरा पर न जाने कितने देशभक्तों ने जन्म लिया,  जन्मभूमि की खातिर अपने प्राणों का बलिदान दिया। देशद्रोहियों!रोटी खाते हो यहाँ की और गुण दुश्मन के गाते हो, आती न तुमको तनिक भी लाज अपने कुकर्मो पर इठलाते हो। अपनी तुच्छ भाषा शैली पर देशद्रोहियों कुछ तो तुम शर्म करो।  रह गयी हो थोड़ी भी लाज तो चुल्ली भर पानी मे डूब मरो।।"