पितृसत्तात्मक समाज
पितृसत्तात्मक समाज पर चर्चा के पूर्व यह समझ लेना अत्यन्त ही आवश्यक है कि पितृसत्ता क्या होती है?
पितृसत्ता अंग्रेजी के पैट्रियार्की (Patriarchy)का हिन्दी रूपांतर है।पैट्रियार्की शब्द दो यूनानी शब्दो पैटर (Pater) और आर्के (Arche) से मिलकर बना है।जिनका अर्थ क्रमशः पिता और शासन है।अत:पैट्रियार्की का अर्थ पितृसत्ता होता है।
इसलिये जो समाज पितृ यानि पुरुष के दिशा निर्देश व नियन्त्रण मे रहता है उसे पितृसत्तात्मक समाज कहते है।
कुछ विचारक व पितृसत्तात्मक समाज को महिला विरोधी मानते है।उनका कहना है इस समाज मे महिलाओं को दूसरे पायदान पर रखा जाता है और उनका शोषण किया है।
इन्ही कुण्ठित विचारो का नाजायज फायदा उठाकर कई महिला संगठन समाज की शान्ति को भंग करके उसे असंतुलित कर रहे है।
इतिहास साक्षी है कि हमारे देश मे हमेशा से ही नारी पूजनीय रही है,उन्हे देवी का रूप माना जाता है।पुरुष और महिलायें हर क्षेत्र मे हमेशा से ही कन्धे से कन्धा मिलाकर विकास की ओर अग्रसर रहे है।
पितृसत्तात्मक समाज,प्रथम दृष्टा शोषणयुक्त भले ही लगता हो परन्तु इसके संचालन मे समाज अनुशासित रहता है व तीव्र गति से विकास को प्राप्त करता है।
पितृसत्तात्मक समाज मे ही महिलाये सुरक्षित होकर सभी क्षेत्रों मे आदिकाल से अपना परचम फहरा रही है।
गार्गी,अपाला,दुर्गवती व रानी लक्ष्मीबाई ने जहां अपनी गौरवगाथा को इतिहास के रूप मे प्रकट किया है।वही दूसरी ओर इन्दिरा गाँधी,रीता फारिया,कल्पना चावला,सरोजनी नायडू व अन्य ने वर्तमान को प्रस्तुत किया है।
सरकार द्वारा वर्तमान मे चलाई जा रही 'बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ' योजना भी पितृसत्तात्मक समाज के सहयोग से ही सफल हुई है।
आज लडके और लड़की मे अन्तर समाज मे नही माना जाता।दोनो को समान शिक्षा के अधिकार प्राप्त है।अब माता- पिता एक पुत्री के जन्म पर भी खुशी प्रकट करते है।परिवार नियोजन का पालन करते हुये आज समाज एक या दो बच्चों पर ही नियन्त्रित रहता है।पुत्र प्राप्ति को मोक्ष का साधन मानकर जनसंख्या वृद्धि नही करते।
यह सब केवल पितृसत्तात्मक समाज के सहयोग से ही सम्भव हो सका है।
पितृसत्तात्मक समाज मे सब सुरक्षित रहते हुये,सभी क्षेत्रों मे समान रूप से विकास के नये कीर्तिमान स्थापित करने के लिए अग्रसर रहते है।
विचार द्वारा:-
अभिषेक शुक्ला
पितृसत्ता अंग्रेजी के पैट्रियार्की (Patriarchy)का हिन्दी रूपांतर है।पैट्रियार्की शब्द दो यूनानी शब्दो पैटर (Pater) और आर्के (Arche) से मिलकर बना है।जिनका अर्थ क्रमशः पिता और शासन है।अत:पैट्रियार्की का अर्थ पितृसत्ता होता है।
इसलिये जो समाज पितृ यानि पुरुष के दिशा निर्देश व नियन्त्रण मे रहता है उसे पितृसत्तात्मक समाज कहते है।
कुछ विचारक व पितृसत्तात्मक समाज को महिला विरोधी मानते है।उनका कहना है इस समाज मे महिलाओं को दूसरे पायदान पर रखा जाता है और उनका शोषण किया है।
इन्ही कुण्ठित विचारो का नाजायज फायदा उठाकर कई महिला संगठन समाज की शान्ति को भंग करके उसे असंतुलित कर रहे है।
इतिहास साक्षी है कि हमारे देश मे हमेशा से ही नारी पूजनीय रही है,उन्हे देवी का रूप माना जाता है।पुरुष और महिलायें हर क्षेत्र मे हमेशा से ही कन्धे से कन्धा मिलाकर विकास की ओर अग्रसर रहे है।
पितृसत्तात्मक समाज,प्रथम दृष्टा शोषणयुक्त भले ही लगता हो परन्तु इसके संचालन मे समाज अनुशासित रहता है व तीव्र गति से विकास को प्राप्त करता है।
पितृसत्तात्मक समाज मे ही महिलाये सुरक्षित होकर सभी क्षेत्रों मे आदिकाल से अपना परचम फहरा रही है।
गार्गी,अपाला,दुर्गवती व रानी लक्ष्मीबाई ने जहां अपनी गौरवगाथा को इतिहास के रूप मे प्रकट किया है।वही दूसरी ओर इन्दिरा गाँधी,रीता फारिया,कल्पना चावला,सरोजनी नायडू व अन्य ने वर्तमान को प्रस्तुत किया है।
सरकार द्वारा वर्तमान मे चलाई जा रही 'बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ' योजना भी पितृसत्तात्मक समाज के सहयोग से ही सफल हुई है।
आज लडके और लड़की मे अन्तर समाज मे नही माना जाता।दोनो को समान शिक्षा के अधिकार प्राप्त है।अब माता- पिता एक पुत्री के जन्म पर भी खुशी प्रकट करते है।परिवार नियोजन का पालन करते हुये आज समाज एक या दो बच्चों पर ही नियन्त्रित रहता है।पुत्र प्राप्ति को मोक्ष का साधन मानकर जनसंख्या वृद्धि नही करते।
यह सब केवल पितृसत्तात्मक समाज के सहयोग से ही सम्भव हो सका है।
पितृसत्तात्मक समाज मे सब सुरक्षित रहते हुये,सभी क्षेत्रों मे समान रूप से विकास के नये कीर्तिमान स्थापित करने के लिए अग्रसर रहते है।
विचार द्वारा:-
अभिषेक शुक्ला
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