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Showing posts from April, 2019

विश्वासघाती

तुम धन,वैभव,संस्कार व ऐश्वर्य की झूठी प्रतिमा बने बैठे हो, चेहरे पर दम्भ,छल,प्रपंच की विजय मुस्कान लिए बैठे हो।  सोचते होंगे कि तुम नील सिंघासन पर मनमोहन बने बैठे हो,  किन्तु साक्षी है दुनिया कि तुम रजनी मे चोर बने बैठे हो,  हरी-भरी बगिया मे तुम बेर के लालच मे बबूल लगा बैठे हो,  अब तो तुम अपने साथ हर माली पर भी प्रश्न चिन्ह लगा बैठे हो। जिस दरख्त को मिलकर खून पसीने से सींचा था सबने, विश्वासघाती!आज तुम स्वार्थ मे उसकी जड़े हिला बैठे हो।

बावरी है वो

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"थोड़ी बावरी थोड़ी सी सावरी है वो, थोड़ी नटखट थोड़ी सी नकचढ़ी है वो।  गुड़िया जैसी सौम्य पर थोड़ी सी पागल वो,  मेरी ख्वाबों की दुनिया की सोन परी है वो।  लड़ती है पर मुझसे बहुत प्यार करती है वो,  उलझन मे भी सबका ख्याल रखती है वो।  नम हो आँखें फिर भी चेहरे पर मुस्कान रखती है वो,  दर्द हो कितना फिर भी कभी न जाहिर करती है वो।  मुझे पागल,दीवाना और न जाने क्या-क्या समझती है वो,  जिन्दगी है मेरी और मेरे दिल की हर धड़कन मे बसती है वो।" रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

बेशर्म आदमी

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बेशर्म आदमी!हो तुम,आज यह भी दुनिया ने बोल दिया, ऐतबार था जिन पर मुझे उन्होने भी राज अपना खोल दिया। नज़ाकत से कहते है कि सबकी तरह तुम चुप क्यों नही रहते,  निज स्वार्थ मे सबकी तरह मस्त तुम क्यूँ नही रहते? सच्चाई का आईना तुम सबको क्यों दिखाते हो? जानते हो?इसीलिये तुम पीठ पीछे बहुत कोसे जाते हो। छोड़ दो जिन्दगी की सच्चाई और यह वसूलो पर चलना,  खाली हाथ रह जाओगे तुम्हे कुछ भी न है फिर मिलना।  सुनता रहा,सहता रहता और अन्त मे सबसे यह कह उठा,  राजा हो या रंक अन्त मे यह भी मिटा और वह भी मिटा। रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

कड़वाहट

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दुनिया मे जो है कड़वाहट वह मिर्च पर भारी है, मेरे जीने का हुनर मेरी मौत पर अब भारी है।  दिन भर मजदूरी करके अपना परिवार पालता हूँ,  इस तरह आराम पर मेरी मेहनत बहुत भारी है।  सुख की अनुभूति हो इतनी कभी फुरसत ही नही मिलती,  सुकून नही मिलता क्योंकि मुझ पर जिम्मेदारियां बहत भारी है। मुझे आराम के लिए घर या मुलायम बिस्तर नही चाहिये,  तुम्हारे चैन,सुकून पर मेरी बेपरवाह नींद बहुत भारी है।  उम्र है ढ़लान पर फिर भी अजीब सा जूनून रखता हूँ,  ये दुनियावालो तुम्हारी जवानी पर मेरा बुढ़ापा बहुत भारी है।  रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

इश्क़ के किस्से

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प्यार,इश्क़,मोहब्बत और अफ़साने, तो अमीरों के चोचले है,साहब!  हमें तो रोटी कमाने से ही फुरसत नही मिलती।  हम जुटे रहते है जिन्दगी की जद्दोजहद मे,साहब!  इसीलिये हमारी कोई मुमताज नही होती।  और गरीबों का इश्क़ भी पूरा कहाँ होता है,साहब!  क्योंकि हमारी ताजमहल बनाने की औकात नही होती।  हम मिट्टी मे जन्में है,मिट्टी मे पलते हैं और एक दिन मिट्टी मे ही मिल जायेगे।  हम जैसों के इश्क़ के किस्से भी कहाँ बनते है,साहब!!  रचनाकार:-  अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'