कड़वाहट

दुनिया मे जो है कड़वाहट वह मिर्च पर भारी है,
मेरे जीने का हुनर मेरी मौत पर अब भारी है। 
दिन भर मजदूरी करके अपना परिवार पालता हूँ, 
इस तरह आराम पर मेरी मेहनत बहुत भारी है। 
सुख की अनुभूति हो इतनी कभी फुरसत ही नही मिलती, 
सुकून नही मिलता क्योंकि मुझ पर जिम्मेदारियां बहत भारी है। मुझे आराम के लिए घर या मुलायम बिस्तर नही चाहिये, 
तुम्हारे चैन,सुकून पर मेरी बेपरवाह नींद बहुत भारी है। 
उम्र है ढ़लान पर फिर भी अजीब सा जूनून रखता हूँ, 
ये दुनियावालो तुम्हारी जवानी पर मेरा बुढ़ापा बहुत भारी है। 

रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

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