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Showing posts from 2019

पत्थर दिल

जनाब! अपने दिल को सम्हाल कर रखिये, दुनिया से आप इसको जरा बचा कर रखिये। असर हुआ है अगर इस पर किसी की बात का, तो अपने दिल को पत्थर-सा का बना कर रखिये।

कुल्हड़

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दिल को अपने जलाकर भी इश्क़ करता है। बावरा कुल्हड़ है जो गर्म चाय पर मरता है।।

इश्क़

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ढ़लते दिसंबर के साथ इश्क़ भी तेरा ढ़ल गया। तू तो कहता था कि बिना मेरे  तेरा मन कही नही लगता.... अब तू बता कि वो तेरा प्यार कहाँ गया?

अंजाम

जब प्यार से ज्यादा लड़ाईयां हो, जब मिलन से ज्यादा तन्हाईयां हो। ऐसे रिश्तो का न कोई वजूद होता है, टूटना ही इनका अन्तिम अंजाम होता है।।

बेवफाई

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ये दोस्त! देखो आखिर लग ही गयी तुम्हे बेवफाई की ठण्ड।  कितना कहा था कि मेरे प्यार की चादर ठीक से ओढ़कर रखना। 

सवालात

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आया हूँ तेरे शहर मे पल भर की ही सही पर मुलाकात हो जाये।  बैठकर आमने-सामने कुछ बीते हुये लम्हों के सवालात हो जाये।।

मन

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प्रभु! जो हो तेरी कृपा तो सबका जीवन धन्य हो जाये।  आपके आशीष से मेरा मन भी पानी-सा सौम्य हो जाये।।

महफिल

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संवर कर आऊँगा जब तुम्हारी महफिल मे,  निगाहें तुम्हारी सिर्फ मुझ पर ठहर जायेगी।   देखेंगे जब सब तुम्हारे होठो पर हल्की-सी हँसी,  महफ़िल मे हमारी मोहब्बत ही चर्चा बन जायेगी।।

कोर्ट

मोमबत्ती जलाने से अब कुछ न होगा,  कोर्ट के चक्कर लगाने से कुछ न होगा।  बलात्कारियो को एक बार जिन्दा जलाकर तो देखो.....  फिर किसी 'निर्भया' और 'आसिफा' का बलात्कार नही होगा।।

आरज़ू

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आरज़ू नही रखता कि पूरी कायनात मे मशहूर हो शक्सियत मेरी।  जनाब! आप जितना जानते हो बस उतनी ही है पहचान है मेरी।।

जुगनू

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गरीब की कब्र पर कहाँ कब दीप जलते है, रेगिस्तान मे आसानी से कहाँ फूल खिलते है। चांद-तारो की ख्वाहिश तो महल वाले रखते है, हम जुगनू है अपनी फिज़ाओ के....हम तो खुद से ही खुद को रोशन रखते है।।

मुकर गये हो तुम

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जरूरत पड़ने पर आज मुकर गये हो तुम, जमाने की तरह कितना बदल गये हो तुम।  दोस्त!ये मंजर भी गुजर जायेंगे किसी तरह से, पर आज चुप रहकर बहुत दर्द दे गये हो तुम।।

याद आती है

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छिपे हुये दर्द को आज ताज़ा किया है उसने, दिल को बहुत बेकरार फिर से किया है उसने। याद उसकी आती है हर पल तो आने दो यारो... कसम देकर अपनी मजबूर भी तो किया है उसने।।

मेहनतकश औरत

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खुशियाँ किसी तख्तोताज की मोहताज़ नही होती, धन दौलत ही खुशियों का प्रतिमान नही होती।  होठों पर मुस्कान गरीब के भी सज सकती है,  खुशियाँ सिर्फ अमीरो की जागीर नही होती।  मेहनतकश औरत के चेहरे पर पसीना भी जंचता है,  खूबसूरती सिर्फ पाउडर और लिपिस्टिक मे नही होती।  सुनहरे ख्वाबों के समन्दर बसते है चमकीली आँखो मे,  बह न जाये इसी डर से बेवक़्त इनसे बरसात नही होती।  पसीने की बूंदे सजती है ललाट की लालिमा बनकर,  माथे की बिन्दिया ही केवल सच्चा श्रृंगार नही होती। खुशियाँ किसी तख्तोताज की मोहताज नही होती।।

लगुकथा:मिनी पैट्रोल पम्प

समर अपनी नयी बाइक से फर्राटे भरते हुये घर से निकला।वह अपनी किराने की दुकान का सामान लेने लालपुर जा रहा था।रास्ते मे उसकी बाइक का पैट्रोल खत्म हो गया।वहाँ कोई पैट्रोल पम्प नही था।पूछने पर पता चला कि यही धरमपुर मे गुप्ता जी के वहाँ पैट्रोल मिल जाता है। फिर क्या था?समर अपनी बाइक घसीटता हुआ पहुँचा और आवाज लगायी,गुप्ता जी!पैट्रोल दे देना। तभी गुप्ता जी की लड़की मिनी आयी और समर से बोली,पिता जी घर पर नही है?आपको कितना पैट्रोल चाहिये? मिनी बहुत ही सुन्दर व आकर्षक थी।समर उसे निहारता ही रह गया।उसकी सांवरी सूरत देखकर वह सब कुछ भूल सा गया।और अचानक पूँछ बैठा,क्या नाम है आपका?क्या करती हो? मिनी ने कहा पैट्रोल कितना लेगे? समर बोला,दो लीटर दे दीजिये। मिनी आयी और पैट्रोल बाइक मे डालकर चल दी। समर ने कहा,मैने आपसे कुछ पूछा था?मिनी ने कहा,मै मिनी हूँ और सिविल एग्ज़ाम की तैयारी कर रही हूँ।समर ने भी अपना परिचय दिया और चल दिया। समय बीतता रहा और समर जानबूझकर गुप्ता जी के वहाँ पैट्रोल लेने जाता रहा ताकि वह मिनी को देख सके। समर हर पल मिनी के ख्वाबों मे ही खोया रहता था।लेकिन वह अपने प्यार का इज़हार करने से डरत

बाल गीत:-'भारत देश हमारा है'

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यह भारत देश हमारा है, हमे प्राणो से भी प्यारा है। हम तो नन्हे मुन्ने बच्चे है, हम मन के बड़े सच्चे है। हम मिल जुलकर रहते है, हम देश की गाथा कहते है। यह भारत देश हमारा है, हमे प्राणो से भी प्यारा है।।

कितना बदल गये हो तुम

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इंतजार किया जी भर कर उनसे मिलने की कोशिश भी की, कहाँ रह गये वो जिन्होने हर वादा निभाने की कसम भी ली। आसान भी तो नही है सूर्य की किरणों की तरह बिखर जाना, खुद की खुशियों को न्यौछावर कर दूसरो को खुशी दे जाना। माना बहुत व्यस्त है जिन्दगी की उलझनों मे वह आजकल, पर कहाँ रह गये जो मुझे याद करते थे हर दिन हर पल। शायद खुशी मिलती होगी तुम्हे मुझे यूं तड़पता हुआ देखकर, मेरा क्या?तुम खुश रह लो मुझे दुनिया मे तन्हा छोड़कर। बोलो मिट गयी है यादे या भुलाने की कोशिश मे लगे हो तुम, क्या?अब भी न मनोगे कि कितना ज्यादा बदल गये हो तुम। रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

दीदार

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बहुत तारीफ़ सुनकर आया हूँ मै तेरे शहर में .... सुना है दिन मे भी यहाँ चांद का दीदार होता है।

मुलाकात

मुलाकातो के दौर अब कुछ कम पड़ गये है। मेरे दोस्त!दुनियादारी मे व्यस्त हो गये है।।

One liner

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बहुत मशहूर है तुम्हारे शहर का शोरगुल।  साहब!कही इसमे तुम हो न जाना गुम।।

लघुकथा-'प्रतियोगी प्रेम'

आज उसका फोन आया।उधर से आवाज आयी कि बाबू बहुत याद आ रही है।समर ने बड़े प्यार से अपनी प्रेयसी प्रतिमा से बात की और बाद मे फोन रखते हुये,समर सोचने लगा कि आज कई दिनो बाद प्रतिमा ने उससे बात की। जो दिन-रात उससे बातें करती थी,साथ घूमती फिरती थी और हर पल उसे ही याद करती थी।आज तनिक-सी बात पर गुस्सा होकर कई दिनो तक बातें नही करती है।                                 शायद...वह बदल गयी थी या समय या फिर खुद मै? प्रतिमा भूगोल प्रवक्ता पद पर चयनित होकर अपने भैय्या और भाभी के साथ लालपुर मे रहने लगी थी।जिसके कारण वह समर को टाईम नही दे पाती थी।समर आज भी दिल्ली मे रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था। इस कारण जब उसे टाईम मिलता तब वह फोन प्रतिमा को करता था।पर वह कभी कभी ठीक से बात न करती और आये दिन उस पर उल्टा गुस्सा भी हो जाती थी।  समर घर से कोचिंग के लिए बाइक से निकला और फिर सोचने लगा कि वह प्रतिमा से इतना प्यार करता है।उसे तो समझना चाहिये कि उसका समर बेरोजगार है,दिन-रात पढ़ायी करता है।इसलिये उसे तनिक सा टाईम दे देना चाहिये ताकि मै भी जिन्दगी की सारी उलझने थोड़ी देर के लिए भूलकर तनिक खुश हो

अभिषेक

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'हाँ हम स्कूल चलेंगे जहाँ हम खूब पढेंगे।' अपनी इन पंक्तियों से पीलीभीत जिले के अमरिया ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय लदपुरा मे शिक्षा की अलख जगाने वाले मूलरूप से तहसील महोली के ग्राम अल्लीपुर बंडिया के निवासी अभिषेक कुमार कर्मठ शिक्षक व लेखक है। जिन्होने अपनी स्वरचित कविताओं से 'स्कूल चलो अभियान' मे अपना पूर्ण सहयोग किया है।इसी के साथ बच्चों को स्वास्थ्य,स्वच्छता व शिक्षा के प्रति अपनी कविताओं से जागरुक किया है तथा देश प्रेम की भावना को जाग्रत किया है। आपने अंग्रेजी वर्णमाला का सरलता से ज्ञान कराने के लिए व लूडो के माध्यम से विटामिन की जानकारी से सम्बंधित खेल शिक्षण विधि पर आधारित नवाचारों को भी बनाया और अपनाया है।इससे आपने बाल केंद्रित शिक्षा को साकार किया है। आप द्वारा नवाचार के रूप मे एक 'मैजिकल बैग' भी बनाया गया है,जिसमे विषय वस्तु से जुड़ी हुई चीजे कक्षा मे लेकर बच्चे कौतूहलपूर्वक देखने लगते है और धीरे-धीरे जब थैले से वस्तुयें निकालकर आप पढ़ाना चालू करते है तब बच्चे आसानी से कठिन से कठिन विषय को आसानी से समझ जाते है। आप द्वारा महीने मे शत-प्रतिशत उपस्थित रहने वा

पीछे क्या हटना?

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मंच भी बदल जायेंगे,किरदार भी बदल जायेंगे,  वक्त के साथ चलते रहो,मंजर भी बदल जायेंगे।  हमेशा अपनी हिम्मत और हुनर पर भरोसा रखना,  जो ठीक लगे दिल को वही काम जूनून से करना।  हाथ की लकीरें का क्या?बनती है और बिगड़ जाती है,  कर्म हो अच्छे तो भाग्य भी खुद ही सुधर जाती है।  बेफिक्र होकर हमेशा बुलंदियों पर निगाह रखना,  उठ गये जो कदम तो अब पीछे क्या हटना।।

प्यारे बच्चों!आओ मेरे पास

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प्यारे बच्चों,प्यारे बच्चों आओ मेरे पास,  दूर वहाँ क्यो बैठो हो तुम हो क्यो इतने उदास?  आओ मिलकर पाठ पढ़ो कुछ सीखे नयी बात,  मिल जुलकर सब साथ रहो और मन में हो विश्वास।  प्यारे बच्चों,प्यारे बच्चों आओ मेरे पास,  दूर वहाँ क्यो बैठो हो तुम हो क्यो इतने उदास?  सुबह उठो जल्दी से तुम और बोलो सबको 'शुभ प्रभात',  बस्ता लेकर स्कूल चलो तुम सब ले हाथों मे हाथ।  प्यारे बच्चों,प्यारे बच्चों आओ मेरे पास,  दूर वहाँ क्यो बैठो हो तुम हो क्यो इतने उदास?  नित्य कर ईश्वर की प्रार्थना कर्त्तव्य मार्ग पर डटे रहो,  कोई भी कठिनाई आये पर तुम पीछे न कभी हटो।  प्यारे बच्चों,प्यारे बच्चों आओ मेरे पास,  दूर वहाँ क्यो बैठो हो तुम हो क्यो इतने उदास?  पढ़ लिखकर रोज ही सीखो अच्छी-अच्छी बात,  जीवन मे खूब आगे बढ़ो तुम सच्चाई के साथ।  प्यारे बच्चों,प्यारे बच्चों आओ मेरे पास,  दूर वहाँ क्यो बैठो हो तुम हो क्यो इतने उदास? 

ऐटिट्यूड

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मै भीड़ मे नही हूँ शामिल,मेरा जिन्दगी जीने का अन्दाज़ निराला है।  मुझे दुनिया के दिखावे से कही ज्यादा अपना 'ऐटिट्यूड' प्यारा है।।

बेशर्म

जिसने तुमको जन्म दिया,जिसने तुमको प्यार से पाला,  बेशर्म!तूने उनको अपने कुकर्मो से कलंकित कर डाला।  प्यार किया था,प्रेम विवाह भी तुम कर लेती,  चुपचाप खुशी से अपने पति संग रह लेती।  तुमने तो अपने पिता की सामाजिक हत्या कर दी,  सरे बाज़ार उनकी इज्जत ही नीलाम कर दी।  दुनिया के आगे घड़ियाली आंसू तुम बहाती हो,  पिता से है जान का खतरा यह सबसे बताती हो।  वो तुम्हे क्या मारेगा,जिसे जीते जी तुमने मार दिया,  अपने कुल की मर्यादा को कालिख से तुमने पोत दिया।  तू!अपने माँ-बाप की न हुई,पति की क्या हो पायेगी!  दुनिया होगी साक्षी एक दिन तू दर-दर ठोकर खायेगी।

किरदार

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जो मिले किरदार उसे बखूबी निभाते रहिये।  सफ़र है जिन्दगी का हँसकर बिताते चलिये।

आवारा बादल

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आपकी नजरों मे.... मै क्या?  मेरा वजूद क्या?  मेरे जज्बात क्या?  चलो छोड़ो!!  ख्याल रखना अपनो का जरा सलीके से.... मै तो आवारा बादल हूँ ...  मेरा प्रेम क्या?  मेरा स्नेह क्या? रिश्ता क्या?  चलो छोड़ो!!

समझदार 2 liner

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जब से अपनी नज़र मे बेहिसाब-सा मैं लापरवाह हो गया हूँ,  सबको लगता है कि अब मै बहुत समझदार-सा हो गया हूँ।।

अरमान

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हुनर रखता हूँ दर्द-ए-दिल छिपाने का पर मेरे अरमान मचल रहे है, मेरे अश्क़ो पर बारिश की बूंदे भी अब तो बेअसर से दिख रहे है। उनसे मिलने को अब तो हम उन्ही से फरियाद कर रहे है। देखो!अब तो खतरे के निशान के ऊपर मेरे जज्बात बह रहे है।।

अच्छा नही लगता

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खुद से भी मिलते रहिये जनाब! कभी-कभी वक़्त बेवक़्त, इस कदर दुनियादारी मे हर वक़्त रहना लाजमी नही लगता।  खुद को भूल बैठे हो कभी तो यह भी जान जाओगे तुम,  पर ताने दे इस बात का दुनिया तो यह अच्छा नही लगता।  जज्बा है जवानी का तो हुनर को भी सभी सलाम कर लेगे,  लेकिन उम्र की ढ़लान का इश्क़ किसी को अच्छा नही लगता।  जी लो जी भरकर जिन्दगी खुद ही खुद से यह वादा कर लो,  जवानी मे जूनून से मुंह मोड़ लेना बिल्कुल अच्छा नही लगता।  उम्र है अभी तो थोड़ी सी कभी कुछ शरारत भी कर लो,  बुढ़ापे में अखबार मे छपे किस्सा तो अच्छा नही लगता।

मिशन शिक्षण संवाद

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'मिशन शिक्षण संवाद' ने किया है बेसिक शिक्षा का उत्थान,  कर्मठ शिक्षकों को इस मंच से मिला है उचित सम्मान।  नवाचारों का सब कर प्रयोग बढ़ाते है बच्चों का ज्ञान,  बेसिक शिक्षा को सबके प्रयास से मिली है नयी पहचान।  शिक्षक अपने नवाचारों को 'मिशन' से साझा करते है,  जिन्हे अन्य सभी शिक्षक अपने स्कूल मे लागू करते है। पाठ्यसहगामी क्रियाओं को भी 'मिशन' ने अपनाया है,  योग व खेल क्षेत्र मे बच्चों को निपुण बनाया है।  कुछ शिक्षक पाठ्यक्रम पर अधारित कविताये लिखते है,  जिन्हे मिशन के 'काव्यान्जलि' स्तम्भ को समर्पित करते है।  बच्चे लयबद्ध रचनाओ से विषयवस्तु का ज्ञान सब पाते है,  'मिशन शिक्षण संवाद' की सफलता 'अभिषेक' सभी को बताते है।

चाहे या न चाहे

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मत करो मिन्नते हजार बार  जाने दो उसे जो जाना चाहे,  अगर तुम बिन वह खुश रह लेगा  तो रहने दो जैसे वह रहना चाहे।  इंतजार कर लेना वापस आने का  आवाज न देना चाहे दिल चाहे,  उन्हे याद आयेगा प्यार जिस दिन  तडप कर आयेंगे चाहे या न चाहे।।

पता न था

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कुछ अरमान लेकर घर से निकल पड़े, पर कैसी है जिन्दगी कुछ यह पता न था।  सफ़र मे मिले वो और दिल मे बस गये,  वही हो जायेंगे जुदा मुझसे यह पता न था।  उन्होनें न ली खबर कि कैसा हूँ आजकल,  वो हो जायेंगे इतने बेखबर यह पता न था।  उनकी याद मे ही खोये रहते है हम हर पल,  वो इस कदर भूल जायेंगे मुझको यह पता न था।  दुआ है कि उनको मिले सारे जहां की खुशियाँ,  पर उन बिन हम रोयेंगे इतना यह पता न था।। *अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'*

अभागिन माँ की वेदना#justice 4 twinkle

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'सुन लो अभागिन माँ की वेदना!क्यों मर गयी सबकी संवेदना? जिस गुड़िया को कभी न डांटा,गलती से भी न मारा चाटा। उसे दरिन्दो ने नोच लिया,अंग भंग करके तेज़ाब से जला दिया,  इस पर भी जालिमो का मन ना भरा तो कुत्तों के आगे फेक दिया। ऐसे नर पिशाचों को बोलो क्या दंड दिया जाये?  क्या इस कुकृत्य के लिए उन्हे यूं ही छोड़ दिया जाये? समाज,सरकार और प्रशासन क्या अब भी यूं ही मौन रहेगा?  दुष्ट दुराचारियो को फिर बेटियों को नोचने का अवसर देगा?  समझ नही आता क्यो कुछ लोग इनके बचाव मे आगे आते है? फिर क्यो मिल सब 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' का नारा लगाते है? प्यारी ट्विंकल बिटिया रानी!अब तुम वापस जुल्मी संसार मे न आना।  सुन लो अभागिन माँ की वेदना!क्यो मर गयी सबकी संवेदना?'  Plz share it #justice 4 Twinkle  👉गुनहगारों को फाँसी दो,फाँसी दो।

रोटी के तमाशे

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ये उम्र,ये मजबूरियाँ और रोटी के तमाशे, फिर लेकर निकला हूँ पानी के बताशे।  बाज़ार के एक कोने मे दुकान सजा ली,  बिकेंगे खूब बताशे ये मैने आस लगा ली।  सबको अच्छे लगते है ये खट्टे और चटपटे बताशे,  इन्ही पर टिका है मेरा जीवन और उसकी आशायें।  बेचकर इन्हे दो जून की रोटी का जुगाड हो जाता है,  इसी कदर जिन्दगी का एक-एक दिन पार हो जाता है।  अपने लड़खड़ाते कदमों पर चलकर स्वाद बेचता हूँ,  इस तरह भूख और जिन्दगी का रोज खेल देखता हूँ।  रचनाकार:-  अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

उदन्त मार्तण्ड

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'उदंत मार्तण्ड' है हिन्दी पत्रकारिता की आधारशिला, 'प्रथम हिन्दी समाचार पत्र' होने का इसको मान मिला। पण्डित युगुल किशोर शुक्ल ने था इसको प्रारंभ किया, अपनी प्रतिभा व निजी संसाधनो से इसका सम्मान किया। '30 मई 1826' को इसका प्रथम अंक प्रकाशित हुआ, इसमे 'मध्यदेशीय भाषा' का ओज प्रस्फुटित हुआ। यह पत्र 'पुस्तकाकार' मे कलकत्ता से छपता था, पूरे देश मे लगभग 500 प्रतियों मे बिकता था। डेढ़ वर्ष मे 'उदंत मार्तण्ड' के 79 अंको का प्रकाशन हुआ, यह पत्रकारिता क्षेत्र मे 'मील का पत्थर' साबित हुआ। 'उदंत मार्तण्ड' के कारण पण्डित युगुल किशोर शुक्ल याद किये जाते है, '30 मई' को हम सब मिलकर 'हिन्दी पत्रकारिता दिवस' मनाते है।" आप सभी को 'हिन्दी पत्रकारिता दिवस' की हार्दिक शुभकामनाएं... रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

चौधरी चरण सिंह-'द रियल जाट'

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23 दिसम्बर 1902 को 'चौधरी चरण सिंह' का जन्म हुआ, जिला गाज़ियाबाद संग देश को सच्चा सिरमौर 'जाट' मिला।  पिता श्री मीर सिंह ने इनको नैतिक मूल्यों का ज्ञान दिया,  गरीब किसानो के शोषण के खिलाफ आपने आवाज उठाई, इसीलिये 'किसानो के मसीहा' के रूप मे दुनिया मे पहचान पाई। हिंडन नदी पर नमक बना 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' मे साथ दिया,  उत्तर प्रदेश के बन मुख्यमन्त्री 'लेखपाल' पद का सृजन किया।  केंद्र सरकार मे बन गृहमंत्री 'मंडल और अल्पसंख्यक आयोग' की स्थापना की,  भारत के बन वित्तमंत्री और उप प्रधानमंत्री 'नाबार्ड' की स्थापना की।  जुलाई 1979 मे इस 'यशस्वी जाट' ने प्रधानमंत्री पद को सुशोभित किया,  जिस कार्य मे मिलकर कांग्रेस(यू) और समाजवादी पार्टियो ने साथ दिया।  '29 मई' को उनकी पुण्यतिथि पर हम सब उन्हे स्मरण करते है, उस 'धरापुत्र' को हम भारतवासी मिलकर कुसुम अर्पित करते है। रचनाकार:-  अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'  (अच्छा लगे तो शेयर भी करे)

विनायक दामोदर सावरकर

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भारतवासियों के लिए आज भी सच्चे प्रेरणास्रोत, अपनी देश सेवा से किया सबको ओतप्रोत।  देश की आजादी के लिए कई क्रांतिकारी गतिविधि चलायी,  अपने चिन्तन और लेखन से ब्रिटिश शासन की जड़े हिलायी। हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद के विस्तारक है माने जाते,  विनायक दामोदर सावरकर इसीलिये है पूजे जाते।  नासिक षणयंत्र मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई,  ब्रिटिश सरकार ने काला पानी की सजा सुनाई। धर्मांतरण के खिलाफ सबसे पहले आवाज उठाई, आपने 'हिन्दू नास्तिक' के रूप मे थी पहचान पाई। आपने 'अभिनव भारत' नामक क्रांतिकारी संगठन बनाया,  अपने प्रयास से आजादी का अलख जगाया।  बम्बई के प्रसिद्ध 'पतित पावन मन्दिर' के संस्थापक आप ही है माने जाते,  'द इन्डियन वार ऑफ इंडिपेंडेंस' पुस्तक से हम इतिहास की जानकारी है पाते।  रचनाकार:-  अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

चुनाव परिणाम

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राजनीति के चक्कर मे न जाने कितने आपस मे रूठ गये, दल-दलो के दलदली रणनीति से अपने भी कुछ दूर हुये।  चुनाव परिणाम आते ही नेता तो गठबंधन कर लेगे,  कुर्सी के चक्कर मे मिलकर अपना काम सब कर लेंगे।  मौका मिला तो इस दल से उस दल मे परिवर्तन कर लेंगे,  पाँच साल बैठकर वह फिर सत्ता का सब सुख लेंगे।  तुम भी नेताओं की तरह कुछ तो समझदार बन जाओ,  सब राग द्वेष भूलकर अपनो के गले फिर लग जाओ।। रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

कैसे समर्पित कर दूँ

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आप लिखते खूब हो पर कभी गाते नही हो, मंच पर सबकी तरह नजर आप आते नही हो।  आपकी रचनाओं मे जीवन की सारी सच्चाई दिखती है,  हर पाठक को उसमे अपनी ही परछायी दिखती है।  आप कभी-कभी कड़वी बात भी लिख देते हो,  लोगों को दर्पण मे उनका अक्स दिखा देते हो।  कुछ लोग आपसे अन्दर ही अन्दर जलते है,  पीठ पीछे आपकी खूब अलोचना करते है।  पाठक से इतने सवाल सुनकर मुझे अच्छा लगा,  फिर हर एक बात का मै भी जवाब देने लगा।  मै जीवन की कड़वी सच्चाई शान से लिखता हूँ,  इसीलिये कुछ लोगों की आँखों को खलता हूँ। जो जलते है मुझसे वो बराबरी कर सकते है, है हुनर तो वो भी चंद पंक्तियाँ लिख सकते है। शायद जीवन की डगर बहुत टेढ़ी-मेढ़ी होती है,  अगले पल क्या होगा ये बात हमे न पता होती है।  बोलो ऐसी अनिश्चितता को किस तरह लयबद्ध कर दूँ ,  और अपनी अधूरी छवि को कैसे मंच को समर्पित कर दूँ!!  रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

क्या अपने बन पायेंगे?

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वही है चाँद पर अब उससे ख्वाहिशे बदल गयी,जिन्दगी ने लिए इतने मोड़ कि मायने बदल गये।  बचपन में जिस चाँद को मामा कहते थे,अब महबूब की सूरत मे उसको ढूँढने लगे।  जिन पगडंडियो पर आवाजें लगाकर चलते थे,आज उन्हे छोड़ शहर की ओर चल दिये।  अब कोई बड़ा बुजुर्ग गलती पर डांटता नही,क्योंकि हम खुद को बहुत बड़ा समझने लगे।  छुट्टियों मे अपनी टोली संग खूब धूम मचाते थे,पर अब हम चहारदीवारी मे रहने लगे।  नानी,बुआ और मौसी के वहाँ अब न आना जाना होता है,हम तो अब खुद मे व्यस्त रहने लगे।  जो रूठ जाता था सब मिलकर उसे मनाते थे,बड़ी सादगी से सारे रिश्ते नाते निभाते थे।  अब अगर गलती से भी कोई हमसे रूठ गया,तो पक्का मानो उससे रिश्ता नाता टूट गया।  अब फुर्सत ही नही मिलती कि सबकी फिक्र कर सके,कुछ अपनी कहे और दूसरों की भी सुन सके।  हम सब अपनी मस्ती मे रहते है,उसे फिक्र नही,तो मुझे क्या?बस यही सोचते रहते है।  हमने खुद को एक दायरे मे समेट लिया,जो न चल सका साथ उसे हमने छोड़ दिया।  बचपन सा प्यारा मन अब हम कहाँ से लायेगे?क्या रिश्तों की कीमत हम सब समझ पायेंगे?  क्या फलक पर चांद तारे सज पायेंगे,जो है अपने क्य

गाँव की मिट्टी

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गाँव की मिट्टी मे सौंधी सी खुशबू आती है,  रिश्तों मे अपनेपन का एहसास कराती है।  चलती हुई पावन पवन मन को छू जाती है,  नीम और बरगद की छाया पास बुलाती है।  अपने घर आँगन की तो बात ही निराली है,  गूलर के पेड़ पर बैठ कोयल गाती मतवाली है।  पानी और गुड़ से स्वागत की शान निराली है,  सभी मेहमानों को इसकी मधुरता खूब भाती है।  कोल्हू से गन्ने का रस पीकर हम मौज मनाते है,  हम गाँववाले कुछ इस तरह गर्मी भगाते है।  हप्ते मे हम दो दिन ही गाँव की बाज़ार जाते है,  हरी सब्जियां और आवश्यक सामान घर लाते है। जोड़,घटाना,गुणा,भाग मे हम थोड़े कच्चे होते है,  लेकिन रिश्तों को निभाने मे एकदम पक्के होते है।  रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

विश्वासघाती

तुम धन,वैभव,संस्कार व ऐश्वर्य की झूठी प्रतिमा बने बैठे हो, चेहरे पर दम्भ,छल,प्रपंच की विजय मुस्कान लिए बैठे हो।  सोचते होंगे कि तुम नील सिंघासन पर मनमोहन बने बैठे हो,  किन्तु साक्षी है दुनिया कि तुम रजनी मे चोर बने बैठे हो,  हरी-भरी बगिया मे तुम बेर के लालच मे बबूल लगा बैठे हो,  अब तो तुम अपने साथ हर माली पर भी प्रश्न चिन्ह लगा बैठे हो। जिस दरख्त को मिलकर खून पसीने से सींचा था सबने, विश्वासघाती!आज तुम स्वार्थ मे उसकी जड़े हिला बैठे हो।

बावरी है वो

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"थोड़ी बावरी थोड़ी सी सावरी है वो, थोड़ी नटखट थोड़ी सी नकचढ़ी है वो।  गुड़िया जैसी सौम्य पर थोड़ी सी पागल वो,  मेरी ख्वाबों की दुनिया की सोन परी है वो।  लड़ती है पर मुझसे बहुत प्यार करती है वो,  उलझन मे भी सबका ख्याल रखती है वो।  नम हो आँखें फिर भी चेहरे पर मुस्कान रखती है वो,  दर्द हो कितना फिर भी कभी न जाहिर करती है वो।  मुझे पागल,दीवाना और न जाने क्या-क्या समझती है वो,  जिन्दगी है मेरी और मेरे दिल की हर धड़कन मे बसती है वो।" रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

बेशर्म आदमी

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बेशर्म आदमी!हो तुम,आज यह भी दुनिया ने बोल दिया, ऐतबार था जिन पर मुझे उन्होने भी राज अपना खोल दिया। नज़ाकत से कहते है कि सबकी तरह तुम चुप क्यों नही रहते,  निज स्वार्थ मे सबकी तरह मस्त तुम क्यूँ नही रहते? सच्चाई का आईना तुम सबको क्यों दिखाते हो? जानते हो?इसीलिये तुम पीठ पीछे बहुत कोसे जाते हो। छोड़ दो जिन्दगी की सच्चाई और यह वसूलो पर चलना,  खाली हाथ रह जाओगे तुम्हे कुछ भी न है फिर मिलना।  सुनता रहा,सहता रहता और अन्त मे सबसे यह कह उठा,  राजा हो या रंक अन्त मे यह भी मिटा और वह भी मिटा। रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

कड़वाहट

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दुनिया मे जो है कड़वाहट वह मिर्च पर भारी है, मेरे जीने का हुनर मेरी मौत पर अब भारी है।  दिन भर मजदूरी करके अपना परिवार पालता हूँ,  इस तरह आराम पर मेरी मेहनत बहुत भारी है।  सुख की अनुभूति हो इतनी कभी फुरसत ही नही मिलती,  सुकून नही मिलता क्योंकि मुझ पर जिम्मेदारियां बहत भारी है। मुझे आराम के लिए घर या मुलायम बिस्तर नही चाहिये,  तुम्हारे चैन,सुकून पर मेरी बेपरवाह नींद बहुत भारी है।  उम्र है ढ़लान पर फिर भी अजीब सा जूनून रखता हूँ,  ये दुनियावालो तुम्हारी जवानी पर मेरा बुढ़ापा बहुत भारी है।  रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

इश्क़ के किस्से

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प्यार,इश्क़,मोहब्बत और अफ़साने, तो अमीरों के चोचले है,साहब!  हमें तो रोटी कमाने से ही फुरसत नही मिलती।  हम जुटे रहते है जिन्दगी की जद्दोजहद मे,साहब!  इसीलिये हमारी कोई मुमताज नही होती।  और गरीबों का इश्क़ भी पूरा कहाँ होता है,साहब!  क्योंकि हमारी ताजमहल बनाने की औकात नही होती।  हम मिट्टी मे जन्में है,मिट्टी मे पलते हैं और एक दिन मिट्टी मे ही मिल जायेगे।  हम जैसों के इश्क़ के किस्से भी कहाँ बनते है,साहब!!  रचनाकार:-  अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

चाय पर चर्चा

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दूध के सारे दाँत समय से पहले ही टूट गये,  जिन्दगी की शुरुआत मे ही विधाता रूठ गये।  मजबूरियों ने हाथ मे चाय की केतली क्या पकडाई,  मैने करीब से देखी अपने बचपन की अंगडाई।  चाय की चुश्कियों मे अभिषेक अब मिलावट हो गयी,  आडी तिरछी जिन्दगी की सारी लिखावट हो गयी।  चाय से ज्यादा अब चाय पर चर्चा हो रही है,  इसकी बिक्री मे भी भारी गिरावट हो गयी है।  जरूरी नही हर एक चाय बेचने वाला चौकीदार बने, क्योंकि गरीब के बचपन पर भारी इसकी गर्माहट हो गयी है।  रचनाकार:-  अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

हौसला

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'बिन मेहनत के रोटी नही मिलती,गरीब के घर मे खुशियाँ नही सजती। हौसलों के पंख से उड़ान कितनी भी भर लो,पर पेट की भूख नही मिटती।  फौलादी इरादों से साँसो का दामन थाम रखा है,वरना यहाँ मौत भी आसान नही मिलती।  सुना है सारा संसार रंगोत्सव मना रहा है,पर यहाँ कोरी किस्मते कहाँ रंगती।  जद्दोजहद है जिन्दगी मे कि किसी दिन सुकून मिलेगा,उसी दिन सतरंगी यह चेहरा भी सजेगा।  मजबूरी मे मजदूरी कर मजबूरी से निपटते है,हम गरीब होली पर भी पसीने से ही रंगते है।'  रचनाकार:-  अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

हाँ,मै भी बेरोजगार हूं।

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सब सो जाते है पर मुझे रात मे भी नीद आती नही है, मेरे बेचेंन मन को कोई भी बात अब भाती नही है।  साहब!बता दूँ सबको कि मै कोई चौकीदार नही हूं,  मै पढ़ा लिखा,डिग्रीधारी एक बेरोजगार हूं। बूढ़े माँ बाप की हर पल चिन्ता सताती रहती है,  भाई बहनों की जिम्मेदारी भी याद आती रहती है।  जब भी कोई नौकरी की आशा की किरण जगती है,  वही भर्ती हमेशा अन्त मे कोर्ट मे जाकर फसती है।  चार पैसे कमाने के बारे मे दिन रात सोचा करता हूं,  पर इन्ही परिस्थितियों मे भी मन लगाकर पढ़ता हूं।  कभी खुद की,कभी घर की चिन्ता मे डूबा रहता हूं,  इसीलिए शायद आजकल मै रातो को जागा करता हूं।  साहब! बता दूँ सबको कि मै कोई चौकीदार नही हूं।  मै पढ़ा लिखा,डिग्रीधारी एक बेरोजगार हूं।। शेयर करे। रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

होली मनाऊंगा

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'चलो तुम संग नही खेलते रंग और गुलाल,न ही हम करेंगे इस बात का कोई मलाल। जरा तुम भी स्मरण कर लेना,जब कोई और हाथ बढाये रंगने को तुम्हारे गाल। सतरंगी रंगो को बिना छुए रह लूँगा,तुम बिन बेरंग से पल भी किसी तरह जी लूँगा।  होली खेलेंगे जब सब मिलकर,तब मै तुम्हारी खुशबू से खुद को रंग लूँगा।  जब सब मीठी गुझियां खायेंगे,तब मै तुम संग बिताये मीठे पलों मे खो जाऊंगा।  सब रंग बिरंगे नए कपड़े पहन सज जायेंगे,मै भी तेरे सतरंगी सपनो मे खो जाऊंगा।  मै प्यार के रंग से इस त्यौहार के रंग मे रंग जाऊंगा,प्रेम मे सराबोर हो मै तो होली मनाऊंगा।  चाहे कोरी रहे सारी दुनिया,पर मै तो तितलियों सा रंग मे रंग जाऊंगा।'  होली की हार्दिक शुभकामनाएं.... रचनाकार:-  *अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'*

रोटी और जिगर

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'सदियां गुजर गयी,सारी रियासतें सिमट गयी, शान शौकत की बात पर तलवारें निकल गयी। सब कुछ मिटा,मिट रहा है और मिट जायेगा, पर रोटी का मामला कभी सुलझ न पायेगा।  मजबूरियाँ है किस कदर कोई क्या समझेगा? जीवन यापन की समस्या से कैसे कोई निपटेगा? रोटी की खातिर न जाने क्या-क्या आजमाना पड़ता है, जिगर के टुकड़े को भी कभी-कभी दांव पर लगाना पड़ता है।' रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

पत्थर और प्रेम

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हर इन्सान अकेले मे पत्थर बना बैठा है,  खुद की नजर मे वह भगवान बना बैठा है।  बड़ी चतुराई से वह खुद को तराश बैठा है,  मिट्टी का पुतला खुद को सयाना समझ बैठा है।  अपनी अक्लमंदी से सब रिश्ते बिगाड़ बैठा है,  खुद ही सब कुछ है यह गलतफहमी पाल बैठा है।  अपने स्वार्थ मे परिवार की जड़े हिला बैठा है,  धन और वैभव को ही विधाता मान बैठा है।  किस्मत ने भी यहाँ अजीब खेल खेल बैठा है,  पत्थरों को भी प्रेम ने यहाँ परिवार बना बैठा है। रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

कारवां बन जायेगा

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ठोकरे खाकर भी जो न सम्हले वो मुसाफिर कैसा?  मंजिले न हो हासिल तो फिर उसका जूनून कैसा?  दुनिया की तस्वीर न बदल सको तो कोई बात नही,  तुम अपनी तकदीर न बदल सको तो ये बात न सही।  मुमकिन है जो तुम्हे सही लगे वो रास्ता तो गलत हो सकता है, मजबूत इरादे हो पर मंजिल न मिले ये नामुमकिन सा लगता है। खुद पर है जो भरोसा तो अच्छा सा कारवां भी बन जायेगा,  चलते हुये सफ़र मे खुशियों का गुलिस्ता भी मिल जायेगा।

क्या कहता दोस्तो!

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मरहम का फितूर मत पालो,घाव तो यूं ही मिलते रहेगे,  मुशाफिर हो गिरोगे,उठोगे और सफ़र यूं ही कटते रहेगे।  जिसको बसाया है तुमने अपनी दिल की धड़कनो मे,  वो वक़्त बे वक़्त तुम्हे यूं ही जरा जरा सा दर्द देते रहेंगे।  जो कभी उनसे तनिक भूले से भी कोई शिकायत कर दी,  यकीन मानो वो कहेगे कि तुमने बड़ी बेवफाई कर दी।  दिल मे बसने वालो की भी फितरत अजीब होती है,  घाव नये देते है जहाँ वो सिर्फ उनकी ही जगह होती है।  समझाने को बहुत कुछ समझाया जा सकता था,दोस्तो!  सजाकर किसी और का नाम वो सामने से गुजरा था,दोस्तो!!  रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

इल्जाम न देना

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"जो मेरी हर बात मे वाह!वाह! किया करते थे, मेरे हर किस्से को अलग अंदाज कहा करते थे।  अब कहते है कि आपका लहजा ठीक नही है,  मेरे मन मे आपके लिए कुछ भी शेष नही है।  जिन्दगी कैसे जी जाती है ये मै जान गया हूं,  अपनो से मै दुनियादारी सब कुछ सीख गया हूं।  आप भी बदलते समय के साथ-साथ बदल जाओ,  जिन्दगी जीनी है तो अब धोखा देना सीख जाओ।  ये प्यार के पक्षी सिर्फ ख्वाबो मे ही उड़ा करते है,  एक दूजे को देखकर खुश रहकर जिया करते है।  बदलते परिवेश ने सारा चमन उजाड़ दिया,  जो सिर्फ मेरा था उसे अनजाना बना दिया।  वो कहता है कि तुम मुझे अब कभी आवाज न देना,  मै तेरे बुलाने पर भी न आऊँ तो कोई इल्जाम न देना।।"  रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'