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Showing posts from June, 2020

अब कहां हमसे दीवाने रह गये

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प्रेम की परिभाषा और मायने बदल गये,  तब न होती थी एक- दूजे से मुलाकाते,  सिर्फ इशारों मे होती थी दिल की बातें,  बड़े सलीके से भेजते थे संदेश अपने प्यार का।  पर अब कहाँ वो ड़ाकिये कबूतर रह गये,  पर अब कहाँ हमसे दीवाने रह गये।   जब वो सज- धजकर आती थी मुड़ेर पर,  हम भी पहुँचते थे सामने की रोड़ पर,  देखकर मुझे उनका हल्का- सा शर्माना,  बना देता था हमे और भी उनका दीवाना।  पर अब कहाँ हमसे परवाने रह गये,  पर अब कहाँ हमसे दीवाने रह गये।   दोस्तो संग जाकर कभी जो देखते थे फ़िल्मे,  पहनते थे वेल बॉटम और बड़े नये चश्में,  आकर सुनाते थे उन्हे हम गीत सब प्यारे,  तुम ही तुम रहते हो बस दिल मे हमारे,  पर अब कहाँ वो दिन प्यारे रह गये।  पर अब कहाँ हमसे दीवाने रह गये।।   जो मिलता था मौका तो खुलकर जी लेते थे,  कभी अपनी 'राजदूत' से टहल भी लेते थे,  खूब उड़ाते थे धूल हम भी अपनी जवानी में,  कभी हम भी 'धर्मेन्द्र- हेमा' बन जी लेते थे।  पर अब कहाँ वो सुनहरे मौके रह गये,  पर अब कहाँ हमसे परवाने रह गये।  पर अब कहाँ हमसे दीवाने रह गये।।  #80 दशक के युवा दिल की धड़कन प्रस्तुत करती पंक्तियाँ... 

बेटे भी रोते है

ये भाग- दौड़ के किस्से अजीब होते है,  सबके अपने उद्देश्य और औचित्य होते है।  कभी शिक्षा कभी जीवन की नव आशा मे,  सिर्फ बेटियाँ ही नही,बेटे भी घर छोड़ते है।  जीवन मे सबके अजीब उधेड़बुन होती है,  समस्याओं की फ़ौज सामने खड़ी होती है।  गुजरना पड़ता है जब विपरीत परिस्थितियों से,  सिर्फ बेटियाँ ही नही,बेटे भी प्रताड़ित होते है।   जब सफलता और रोजगार की बात होती है,  असफलता पर जब कुण्ठा व्याप्त होती है।  सारे प्रयास और प्रयत्न होते है जब निरर्थक,  सिर्फ बेटियाँ ही नही,बेटे भी खूब रोते है।  घर से दूर रहकर सब तकलीफें सहते है,  कभी खाते है कभी भूखे भी रह जाते है।  जी भरकर देखते है तस्वीर अपने माँ- बाप की,  सिर्फ बेटियाँ ही नही,बेटे भी कम सोते है।

कोरोना बेवफाई

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     बुरी नजर वाले चीन तेरा मुँह हो काला तूने निर्मोही ये कैसा वायरस बना डाला। तूने रिश्तों की कर डाली है ऐसी की तैसी, फिर मधुरता न होगी सम्बन्धों मे पहले जैसी। कोरोना ने आकर रिश्तों मे आग लगायी, जीवन है कीमती यह बात भी समझायी। कोरोना तो अब प्यार पर भी भारी हो गया, जो था सबसे प्यारा वह अब बेगाना हो गया। लाख मिन्नतों पर राँझे से हीर न मिलने आयी, सोशल डिस्टेंसिंग की हीर ने दी खूब दुहाई। बेताब! राँझे को एक बात भी समझ न आयी, उसने की वफ़ा पर बदले मे मिली बेवफाई। कोरोना के ड़र से तू आज न मिलने आयी, कसम तुझे अब तू झेलेगी बड़ी लम्बी जुदाई। कोरोना का इलाज तो किसी तरह हो जायेगा, पर बोल तेरा राँझा तुम बिन कैसे जी पायेगा। मुबारक हो तुझे ये कोरोना काल की चालाकियाँ, पर अब तुझे न मिलेगी दोबारा कोई माफियाँ। मै भी अब सेनेटाईजर से प्यार करूँगा, मास्क पर अपनी जान निसार करूँगा। सोशल डिस्टेंसिंग का खूब पालन करूँगा, बेवजह अब न घर से बाहर निकालूँगा। पर सुन लो हीर!तुम सा ना कभी निर्दयी बन पाऊँगा, जो मिलने को कहेगा उससे खूब मिलने भी जाऊँगा। सुनो!हीर तुम्हारी तरह मै न कोई झूठे बहाने बनाऊँगा, रिश्ते निभाऊँगा सारे

मन करता है

 मन करता है... कि जी लूं कभी अपने हिस्से का जीवन  कुछ न सोचूं न ही कुछ समझूँ।  बन यायावर ... देखूँ सब कुछ  चहुँ दिशाओं मे कुछ न माँगू न ही कुछ जानूं।  मन करता है... कि बन फक्कड आवारा घूमू  कुछ न खाऊँ न ही कुछ पीयूं।  मन करता है... बस...मन करता है।। 

अभिभावको से अपील

"दुनिया में कोरोना है भयंकर महामारी,  इससे बचने की रखो सब पूरी जानकारी।  घर के बाहर इसका संक्रमण है ज्यादा, इसलिये अभिभावकगण करो यह वादा।  बच्चों को गाँव के बाहर न पढ़ने भेजो,  इन्हें अभय जीवन का वरदान तुम दे दो।  गाँव के प्राथमिक विद्यालय मे नाम लिखाओ,  शिक्षा और सुरक्षा का यह दृढ़ संकल्प अपनाओ।" 

सच्चा प्रेम

सागर की गहराई बूँद से बढ़कर नही,  कोई भी सच्चाई मौत से बढ़कर नही।  चाहे लाख ढिंढोरे पीट ले यह सारा जमाना...  किसी का प्रेम...  माँ की ममता से बढ़कर नही।। 

हम शिक्षक है

राशन वितरण,सामुदायिक रसोईघर  और क्वारन्टीन सेंटर पर डटे है।  हम शिक्षक है... हम भी कोरोना के खिलाफ़ जंग के मैदान मे खड़े है।

बड़े सयाने लोग

तारीफ़ न सही तो आलोचना ही कर दिया करो,  गर हो गये हो गूंगे तो इशारा ही कर दिया करो।  सयाने बनकर देखते हो तुम  चलन सारे जमाने का ...  गर चुप ही रहना है तो निगाहें नीची कर लिया करो।