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Showing posts from June, 2019

मिशन शिक्षण संवाद

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'मिशन शिक्षण संवाद' ने किया है बेसिक शिक्षा का उत्थान,  कर्मठ शिक्षकों को इस मंच से मिला है उचित सम्मान।  नवाचारों का सब कर प्रयोग बढ़ाते है बच्चों का ज्ञान,  बेसिक शिक्षा को सबके प्रयास से मिली है नयी पहचान।  शिक्षक अपने नवाचारों को 'मिशन' से साझा करते है,  जिन्हे अन्य सभी शिक्षक अपने स्कूल मे लागू करते है। पाठ्यसहगामी क्रियाओं को भी 'मिशन' ने अपनाया है,  योग व खेल क्षेत्र मे बच्चों को निपुण बनाया है।  कुछ शिक्षक पाठ्यक्रम पर अधारित कविताये लिखते है,  जिन्हे मिशन के 'काव्यान्जलि' स्तम्भ को समर्पित करते है।  बच्चे लयबद्ध रचनाओ से विषयवस्तु का ज्ञान सब पाते है,  'मिशन शिक्षण संवाद' की सफलता 'अभिषेक' सभी को बताते है।

चाहे या न चाहे

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मत करो मिन्नते हजार बार  जाने दो उसे जो जाना चाहे,  अगर तुम बिन वह खुश रह लेगा  तो रहने दो जैसे वह रहना चाहे।  इंतजार कर लेना वापस आने का  आवाज न देना चाहे दिल चाहे,  उन्हे याद आयेगा प्यार जिस दिन  तडप कर आयेंगे चाहे या न चाहे।।

पता न था

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कुछ अरमान लेकर घर से निकल पड़े, पर कैसी है जिन्दगी कुछ यह पता न था।  सफ़र मे मिले वो और दिल मे बस गये,  वही हो जायेंगे जुदा मुझसे यह पता न था।  उन्होनें न ली खबर कि कैसा हूँ आजकल,  वो हो जायेंगे इतने बेखबर यह पता न था।  उनकी याद मे ही खोये रहते है हम हर पल,  वो इस कदर भूल जायेंगे मुझको यह पता न था।  दुआ है कि उनको मिले सारे जहां की खुशियाँ,  पर उन बिन हम रोयेंगे इतना यह पता न था।। *अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'*

अभागिन माँ की वेदना#justice 4 twinkle

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'सुन लो अभागिन माँ की वेदना!क्यों मर गयी सबकी संवेदना? जिस गुड़िया को कभी न डांटा,गलती से भी न मारा चाटा। उसे दरिन्दो ने नोच लिया,अंग भंग करके तेज़ाब से जला दिया,  इस पर भी जालिमो का मन ना भरा तो कुत्तों के आगे फेक दिया। ऐसे नर पिशाचों को बोलो क्या दंड दिया जाये?  क्या इस कुकृत्य के लिए उन्हे यूं ही छोड़ दिया जाये? समाज,सरकार और प्रशासन क्या अब भी यूं ही मौन रहेगा?  दुष्ट दुराचारियो को फिर बेटियों को नोचने का अवसर देगा?  समझ नही आता क्यो कुछ लोग इनके बचाव मे आगे आते है? फिर क्यो मिल सब 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' का नारा लगाते है? प्यारी ट्विंकल बिटिया रानी!अब तुम वापस जुल्मी संसार मे न आना।  सुन लो अभागिन माँ की वेदना!क्यो मर गयी सबकी संवेदना?'  Plz share it #justice 4 Twinkle  👉गुनहगारों को फाँसी दो,फाँसी दो।

रोटी के तमाशे

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ये उम्र,ये मजबूरियाँ और रोटी के तमाशे, फिर लेकर निकला हूँ पानी के बताशे।  बाज़ार के एक कोने मे दुकान सजा ली,  बिकेंगे खूब बताशे ये मैने आस लगा ली।  सबको अच्छे लगते है ये खट्टे और चटपटे बताशे,  इन्ही पर टिका है मेरा जीवन और उसकी आशायें।  बेचकर इन्हे दो जून की रोटी का जुगाड हो जाता है,  इसी कदर जिन्दगी का एक-एक दिन पार हो जाता है।  अपने लड़खड़ाते कदमों पर चलकर स्वाद बेचता हूँ,  इस तरह भूख और जिन्दगी का रोज खेल देखता हूँ।  रचनाकार:-  अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'