पता न था

कुछ अरमान लेकर घर से निकल पड़े,
पर कैसी है जिन्दगी कुछ यह पता न था। 
सफ़र मे मिले वो और दिल मे बस गये, 
वही हो जायेंगे जुदा मुझसे यह पता न था। 
उन्होनें न ली खबर कि कैसा हूँ आजकल, 
वो हो जायेंगे इतने बेखबर यह पता न था। 
उनकी याद मे ही खोये रहते है हम हर पल, 
वो इस कदर भूल जायेंगे मुझको यह पता न था। 
दुआ है कि उनको मिले सारे जहां की खुशियाँ, 
पर उन बिन हम रोयेंगे इतना यह पता न था।।
*अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'*

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