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नूतन वर्ष

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"नूतन वर्ष की मंगलमय बेला आई, पुराने वर्ष की हो रही है विदाई। प्रण ले अब तक जो हुई गलतियां,  अब न जायेगी हमसे दोहराई ।  मन जो दुख गया हो किसी का,  उन सबसे मिलकर मांग लो अब माफी। छोड़ दो अब आलस और यह उदासी,  नये गढो प्रतिमान और लो जिम्मेदारी। नव वर्ष मे भी साथ सबका बना रहे,  घर आँगन खुशियों से सबका भरा रहे।।" आपको नूतन वर्ष 2019 की हार्दिक शुभकामनाएं ...  *अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'* 

चादर क्यो चढाऊँ ?

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रूह भी कांपती है ठंडक मे कभी- कभी, याद आती है हर मजबूरियाँ सभी तभी।  इन्सान को ज़िन्दगी की कीमत समझनी चाहिये,  जो हो सके मुनासिब वह रहम करना चाहिये।  जीवन है बहुत कठिन कैसे यह सब बताऊँ?  मजारों पर शबाब के लिए चादर क्यों चढ़ाऊँ?  ठिठुरता हुआ मुफलिस दुआयें कम न देगा,  खुदा क्या इस बात पर मुझे रहमत न देगा।।

बेजुबान

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जुबानी इबादत ही काफी नही होती,  इन्सान मे ही केवल जान नही होती।  दिल की सदाये खुदा तो सुनता होगा?  उसे दुनिया का हर हाल पता चलता होगा।  कैसे बनाये इन्सान उसने इस जहान मे,  वह जन्नत से सब कुछ देखता होगा।  फायदे के लिए इन्सान ने यह क्या कर डाला,  सारी दुनिया को अपने हिसाब से रच डाला।  बेजुबानो की तो आजादी ही छीन ली,  बेरहम बन उनकी जीने की खुशी छीन ली।  अपना सारा बोझ उन पर डाल दिया,  उनकी जिन्दगी को खूटे से बाँध दिया।  कब तक जोर जुल्म यूं ही चलता रहेगा?  कब तक बेजुबान बोझ तले दबता रहेगा?

तू बस गया

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"मुझे भूल जाना अब मुमकिन तो नही, तेरे अपनो मे तो मै शामिल भी नही। इंतजार रहता है कि तू आवाज़ देगी, होगी फुर्सत तुझे तो जवाब भी देगी। पर यह वहम भी तो अब टूटने लगा है, तू अब गैरो की फिक्र ज्यादा करने लगा है। बसा रखा है तुझे मैने अपने हृदय में, वहाँ रहना भी अब तुझे खलने लगा  है। मेरी भावनाओं की तुझे फिक्र रह न गयी, तू तो अपनो संग नयी दुनिया मे बस गयी।," रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

सीतापुरिया पलटन बाजी

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कहाँ गयी वो पलटन बाजी? हुल्लड़ पन की वो आजादी? दोस्तों संग वो खीचा तानी, खुलकर जीने की मनमानी। सीतापुर की वो सुबह सुन्दर व न्यारी, जी.आई.सी मे एडमिशन की मारामारी। आर.आर.डी. मे प्रवेश की वो तैयारी, आर.एम.पी. स्कूल की फ़ील्ड के खिलाड़ी। उजागर लाल इंटर कालेज से लेकर, आई हॉस्पिटल रोड तक साइकिल की सवारी। कॉलेज स्ट्राइक का वो धूम धडाका, श्यामकिशोर का पानी का बताशा। सुबह श्यामनाथ मन्दिर मे शिव दर्शन, दिन भर पढ़ते सब कॉलेज और ट्यूशन। लालबाग की वो शाम सुन्दर सी, दीक्षित जी की लस्सी मीठी सी। चुंगी से बाईपास पर बाइक से रेस लगाना, दोस्तो संग कंपनी गार्डन वो घूमने जाना। हर संडे सब दोस्तों संग पार्टी मनाना, सज धजकर फिर बाहर घूमने जाना। रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

पसन्द है मुझे

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'तेरी मोहब्बत ने आवारा बना दिया, ढलते हुये सूरज का किनारा बना दिया। उम्र भर रखा था खुद को सम्भाल कर, तेरी जुल्फो के साये ने दीवाना बना दिया। पहचान थी मेरी शक्सियत की पूरे शहर मे, तेरी चाहत मे हमने खुद को भुला दिया। जब से तू मुझे भूलकर हँसने  लगा, संग दुनिया के महफिल मे रहने लगा। मै तो खुद और खुदा से खफा होकर, तेरी यादों के हर एक लम्हे मे खोने लगा। सुन ले आज भी तू बहुत याद आया है मुझे, संग आँखों के दिल ने रुलाया है मुझे। प्यार अगर दीवानगी है तो पसंद है मुझे। जानता हूँ कि अब कहा फुरसत है तुझे।' रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

तन्हाईयां

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तन्हाईयों ने भी क्या गजब का जिन्दगी पर असर छोड़ा है, जब से किसी अपने ने दुनिया की खातिर मुंह फेरा है। उसकी याद मे एक पल भी कही अब चैन सुकून मिलता नही, उसे संग बिताये लम्हों का अब एक दौर भी याद आता नही। सोचता हूँ क्या मेरे बिन उन्हे अपनो मे खुशी मिलती होगी, उनके चेहरे पर झिलमिल सी वो प्यारी मुस्कान सजती होगी। उनकी झूठी हँसी मे छिपा हुआ दर्द कौन अब समझता होगा, क्या मेरा महबूब मुझे आज भी अपने दिल से याद करता होगा। सूरज भी ढल गया है शाम भी तो है अब हो चली, मेरे प्रियतम को अब भी तनिक भी फुर्सत न मिली। परिंदे भी चल दिये है अम्बर छोड़ अपने आशियाने की ओर, पर अब मेरे बेचैन दिल तू बता तू जायेगा अब किस ओर ?

एम.आर.टीकाकरण अभियान

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'खसरा और रुबैला तो है खतरनाक संक्रामक और जानलेवा बीमारी। खसरे की पहचान है तेज बुखार,बहती नाक,लाल चकत्ते व खांसी। रुबैला रोग ग्लूकोमा,बहरापन,मस्तिष्क व दिल की बीमारियों को है बढाता। एम.आर. से बच्चा निमोनिया,दस्त,दिमागी बुखार से पीड़ित हो जाता। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय,भारत सरकार ने है ठाना। सबको जागरुक कर इन बीमारियो को है जड़ से मिटाना। इसलिये 9 माह से 15 साल के बीच बच्चों के है एम.आर.टीका लगवाना। इसलिये सबको मिलकर खसरा और रुबैला को है हराना। इस तरह एम.आर. टीकाकरण अभियान को है सफल बनाना।' रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

नेता जी तुम क्यो अकड रहे हो?

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नेता जी तुम क्यो अकड रहे हो ? बिन पेंदे के लौटे सा लुढ़क रहे हो तुम थाली के बैगन से दिख रहे हो हर चुनाव मे दल क्यो बदल रहे हो? नेता जी तुम क्यो अकड रहे हो? गिरगिट सा रंग रोज बदल रहे हो चुनाव मे किये सारे वादे भुलाकर तुम क्यो अपनी ढ़पली बजा रहे हो? नेता जी तुम क्यो अकड रहे हो? जनता को मूर्ख क्यो समझ रहे हो? जाति,धर्म और मानवता की बलिवेदी पर  तुम तो राजनीति की रोटी सेक रहे हो। नेता जी तुम क्यो अकड रहे हो? वोट के लिए धर्म भी बदल रहे हो एक दूजे पर तंज भी कस रहे हो वोट पाने का ताना बाना बुन रहे हो। नेता जी तुम क्यो अकड रहे हो? रोजगार,शिक्षा,स्वास्थ्य और विकास भूलकर तुम कैसी ये राजनीति अब कर रहे हो? बोलो सपनो का भारत तुम कैसा रच रहे हो?

रोटी और शिक्षा

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'कैसी यह विडम्बना और कैसा अत्याचार है? आज तो खुद ही पुरुषार्थ भी लाचार है। देख कर यह दृश्य आता मन मे हर बार है, आज जीवन की सत्यता आर्थिक आधार है। हर गरीब को चुनना तो बस यही हर बार है। रोटी और शिक्षा मे तो बस एक विकल्प तैयार है। पीठ पर बस्ता उस पर शिक्षा का अधिकार है, नंगे पांव गुब्बारे बेचता बचपन लाचार है।' रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर' नोट:-फोटो साभार#फेसबुक

नि:शब्द हूँ

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'कभी-कभी शब्द भी नही मिलते कि कुछ लिख सकूँ, जो भी दिख रहा उसका तनिक भी वर्णन कर सकूँ। पर कैसे मैं अपनी वाणी को विराम दे दूँ ? शब्द का मौन धारण कैसे स्वीकार कर लूँ? बोलो आँखों की नमी से ईश्वर को प्रणाम कर लूँ , या शब्दों के बाण से मानवता को शर्मसार कर दूँ ? इस मंजर का बोलो कैसे तिरस्कार कर दूँ ? नि:शब्द हूँ ,बोलो कैसे,क्या?मै बखान कर दूँ ?'

आँखो की गुस्ताखियाँ

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'प्रेम की कोई न सीमा न ही इसकी उम्र है, जिन्दगी के हर पड़ाव पर शेष इसके अंश है। क्या हुआ जो अब गाल पोपले हो गये, और सिर के बाल भी सारे सफेद हो गये। तन बूढ़ा हुआ तो झुर्रिया भी है पड़ गयी, कुछ प्रेम की निशानियाँ बाकी रह गयी। दिल लग जाना अब भी मुमकिन है साहब, इसकी कुछ अठखेलियां बाकी रह गयी। उम्र तो कर चुकी है अब सारे पड़ाव पार, बाकी आँखो की कुछ गुस्ताखियाँ रह गयी।'

बेबस बचपन

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'इस तस्वीर ने मुझे खामोश सा कर दिया, जिन्दगी ने जिन्दगी से सवाल कर लिया। बचपन मे न किसी खिलौने की चाह रह गयी। खुद की जिन्दगी ही दुख का खेल बन गयी। सुना है बहुत खुशियाँ है इस जहान मे मगर, पर ये सब सुनी सुनायी सी एक बात रह गयी। क्या मिला,क्या मिलेगा और क्या बाकी रह गया? पत्थरो का बिस्तर है और दर्द क्या बाकी रह गया? गरीब को जिन्दगी से अब क्या गिला शिकवा रह गया? जब मासूम ने पत्थरो को ही फूलों की सैज समझ लिया।'

कदर कर लो यारो

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"ईश्वर ने जो दिया है उसकी कदर कर लो यारो, सम्भाल लो जिन्दगी इसकी फिकर कर लो यारो। सबको सब कुछ नही मिलता पर कुछ तो सोचो, तुमको जो मिला वो बहुतों को नसीब नही होता। कभी खुशी कभी गम तो आते रहते है जिन्दगी मे, पर खुद को हर हालात मे सम्भाले रखना यारो। कभी भूल से भी मुकद्दर को कोई दोष मत देना, क्योंकि सभी खाली हाथ यहाँ आते है दोस्तों। मेहनत से भी किस्मत की लकीरें बदलती है यहाँ, इसलिये अपने हुनर को आजमाना तुम दोस्तो। बुराई का रास्ता गलती से भी न अपनाना यारो। क्योंकि सिकन्दर भी खाली हाथ जाते है दोस्तो।।" रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

दीवाली उसे भी मनानी है

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"दीवाली उसे भी मनानी है, दीपक भी उसे जलाने है। पिछ्ले साल न बिके थे दिये, इस साल भी दुकान सजा ली है। चका चौंध की इस दुनिया में, कौन पूछता है मिट्टी के दीपो को। सब मस्ती मे झूम रहे है, कौन पूछेंगा फिर इन गरीबो को। बीच बाज़ार मे है दुकान उसकी, वह तो अरमान सजाये बैठा है। आशा है बिकेंगे दीप भी उसके, वह तो टकटकी लगाये बैठा है। दीवाली उसे भी मनानी है। दीपक भी उसे जलाने है।।" रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

लघुकथा:-सच्चा स्वाभिमान

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गोला गोकर्णनाथ के एक फ़ास्ट फ़ूड वाले के यहाँ मैं वेज रोल आर्डर करके बैठा हुआ था। तभी एक लड़का आया और आकर ओनर से बोला कि अगर कोई काम हो तो करा लीजिये और मुझे कुछ रुपये दे दीजिए। तो रेस्टोरेंट के मालिक ने मना किया कि कोई भी काम नहीं है। मैं शुरुआत से ये सब देख रहा था। मैंने उसे अपने पास बुलाया। वो लड़का मुश्किल से 12 वर्ष का होगा,आंखों में गंभीरता,सरल स्वभाव पर ग़रीबी और जिम्मेदारी ने उसे बहुत ही परिपक्व बना दिया था। उस लड़के की एक बात मुझे पसंद आयी कि उसने काम मांगा और काम के बदले पैसे। ये बात मेरे दिल को छू गयी। वो औरों की तरह भीख भी मांग सकता था। मैंने उसे अपने पास बिठाया, वो थका हुआ और भूखा लगा। मैंने उसके लिए भी वेज रोल आर्डर किया। फिर पूछा कि क्या नाम है तुम्हारा तो बोला श्याम सुंदर! घर पर कौन कौन है। बोला पापा हैं जो हरिद्वार में काम करते हैं । घर पर मां और छोटा भाई। तब तक वेज रोल आ गए। हम दोनों आपस में बातें कर रहे थे। फिर पूछा कितने रुपये चाहिए तुम्हें। तो वो बोला, आज ननिहाल में मेरे मामा की शादी है, माँ और छोटा भाई वहां जा चुके हैं। मेरे कपड़े सिलने पड़े हैं वो लेने हैं

पहचान न मिलेगी

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शून्य से अनन्त तक जाओ मगर, सारी सफलताये तुम पाओ मगर। जब भी याद आयेगी तुम्हे घर की, तब कही मन को लगा कर देखो। घर छोड़ते वक्त यह ध्यान रखना, आँगन की धूप- छांव याद रखना। रिश्ते जरा सलीके से निभाते चलो, अपनो को खुशी से गले लगाते चलो। देर न करना कभी घर वापसी मे, कही गलियाँ भी सवाल न पूछने लगे। जंग लगे तालो मे फिर चाभी न लगेगी, अपनो मे खोई हुई वो पहचान न मिलेगी।

दिवाली मनाते है

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'हम शिक्षक नित ही अज्ञानता का अंधकार मिटाते है, ज्ञान दीप के प्रकाश से हम तो रोज दिवाली मनाते है। कब,कहाँ,क्यो,कैसे? यह सब बच्चों को समझाते है। क्या भला,क्या बुरा? यह सब भी हम सिखलाते है। सरस्वती के पावन मन्दिर मे नया सबक सिखाते है, नवाचार का कर प्रयोग छात्रों को निपुण बनाते है। कबड्डी,खो-खो और दौड़ प्रतियोगिता करवाते है, पाठ्यसहगामी क्रियाओं का भी हम महत्व बताते है। बच्चो का कर चहुँमुखी विकास हम फूले नही समाते है। हम शिक्षक शिक्षा की लौ से रोज दिवाली मनाते है।' रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

मेरी मेहनत

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'मेरी मेहनत का सबूत माँगते है जमाने वाले, उन्हे न पता कैसे रहते है हम मजदूरी वाले। अपनी कड़ी मेहनत से चार पैसे कमाकर, पेट भरते है हम टपकती झोपड़ी वाले। जब भी ना टपके पसीना हमारे माथे से, उस दिन भूखे रहते है हम दिहाडी वाले। छोटे से बड़ा बन जाना होता नही है आसान, नसीब के खेल जानते है हम बदकिस्मत वाले। छालों मे छिपी लकीरों को कोई नही पढ़ता, ये दर्द जानता है या उसे हम सहने वाले।।' रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

करवा चौथ #हास्य

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जिनको पड़े साल भर घूसे, उनकी भी अब पूजा होगी। हमेशा से तो है सुनते आये, कल जिल्लत थोड़ी कम होगी। अपनी उम्र बढवाने हेतु फिर अच्छे उपहार भी देना होगा। कुछ नए नवेले जोड़ो मे से, पत्नी करवा व्रत रखे इसलिये पति को भी भूखा रहना होगा। चांद निकलते ही उम्र बढ़ेगी, फिर जोरू कुछ भी ना सुनेगी। सब पतियो को ही सहना होगा, फिर साल भर चुप रहना होगा। #हास्य रस पर आधारित नोट:-दिल पर न ले।

प्राथमिक विद्यालय लदपुरा

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शीर्षक:-'प्राथमिक विद्यालय  लदपुरा' बेसिक शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश ने, आर.टी.ई. ऐक्ट(2009) को अपनाया है। 6 से 14 आयु वर्ग तक के बच्चो को, नि:शुल्क शिक्षा का अधिकार दिलाया है। पीलीभीत के अमरिया ब्लाक मे स्थित, प्राथमिक विद्यालय लदपुरा सबसे न्यारा है। इंचार्ज अध्यापक श्री अभिषेक कुमार शुक्ला जी ने, अपने कुशल नेतृत्व से विद्यालय परिवेश सुधारा है। टी.एल.एम,नवाचार का नित कर प्रयोग, नैतिक शिक्षा से बच्चों का भविष्य संवारा है। विद्यालय के सभी शिक्षको ने मिलकर, ग्रामीण क्षेत्र मे ज्ञान का दीप जलाया है। बच्चों को यह विद्यालय बहुत ही पसंद आया है। 'खूब पढ़े,आगे बढ़े' सबने यह मूलमंत्र अपनाया है।। #कुछ तारीफ़ अपनी भी😉

फैशन

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'बोलो अब यह कैसा जमाना आ गया है, पश्चिमी सभ्यता का पूरा नशा छा गया है। भूल बैठे है हम सब भारतीय परिधानों को, विदेशी कपडों का  इतना मज़ा आ गया है। दम्भ,ब्राण्ड और आधुनिकता के चक्कर मे, कैसा यह नग्नता का परिवेश आ गया है? फैशन करना बिल्कुल भी बुरी बात नही है, फिर भी दिखे अंग ये बात सही नही है। पहनने को चाहे पहन लो कुछ भी मगर, बचा रहे स्वाभिमान इतनी रखो फिकर। शालीनता से बढ़कर कोई गहना नही होता, उठे जो कोई सवाल यह सही नही होता।' नोट:-चित्र साभार फेसबुक

बोलती तस्वीर

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ऐसा नही है कि तस्वीर बोलती नही है, फर्क है इतना कि ये आवाज़ करती नही है। समझने वालो को तो हुजूर  इशारा काफी है, हर सवाल का जवाब तो यहाँ खुद ही हाजिर है। पसरा हुआ है सन्नाटा इन वादियों मे मगर, दो दिल मिल रहे है दुनिया से हो बेफिकर। रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

रावण सबसे पूछ रहा है

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बचपन से देखा है हर साल रावण को जलाते हुये, सभी को बुराई पर अच्छाई की जीत बताते हुये। उस लंकेश को तो मर्यादा पुरुषोत्तम ने मारा था, प्रभु श्रीराम ने उसकी अच्छाईयों को भी जाना था। सभी इकट्ठे होते है रावण को जलाने के लिए, दुनिया से पूरी तरह बुराईयो को मिटाने के लिए। आज रावण खुद पूरी भीड़ से यह कह रहा है, तुम मे से कौन श्रीराम जैसा है यह पूछ रहा है? क्या तुम अपने अन्दर की बुराइयो को मिटा पाये हो ? क्या तुम सब तनिक भी खुद को श्रीराम सा बना पाये हो? यदि उत्तर नही है तो क्यो मुझे बुरा मानकर आते हो? तुम खुद भी हो बुरे तो क्यो मुझे हर साल जलाते हो ?

लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल

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'सिंह सा गर्जन और हृदय मे कोमल भाव रखते थे, वल्लभभाई पटेल जी से तो सारे दुश्मन डरते थे। बारदौली सत्याग्रह का सफल नेतृत्व आपने किया, 'सरदार' की उपाधि वहाँ की जनता ने आपको दिया। एकता को वास्तविक स्वरूप भी आपने ही दे डाला, रियासतों का एकीकरण भी पल भर मे कर डाला। प्रयास से आपने सारी समस्याओं को हल कर दिया, सबने आपको भारत का 'लौह पुरुष' था मान लिया। देश का मानचित्र विश्व पटल पर बदल कर रख दिया, लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल ने कमाल कर दिया। 31अक्टूबर को हम सब भारतवासी 'राष्ट्रीय एकता दिवस' मनाते है, आपकी याद मे हम 'स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी' पर श्रद्धा सुमन चढ़ाते है।' रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर '

सच्चा इन्सान

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"इन्सान तो इन्सान है इन्सान तो इन्सान ठहरा, भाव है विचार है सुख-दुख से इसका नाता गहरा। कुछ ख्वाब है कुछ है आशायें सपनो का कुछ ताना बाना, दर-दर भटके जीवन खोजे नही कही है इसका ठिकाना। रिश्ते जोड़े उन्हे निभाये रूठो को वह खूब मनाये, तनिक खुशी मे जश्न मनाये घर सारे मेहमान बुलाये। जीवन की गाड़ी यह कभी रुके कभी चलती जाये, उलझन मे भी जो जीवन ढूढे वो सच्चा इन्सान कहाये।"

अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

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सीतापुर के लाल ने बढ़ाया पूरे विश्व मे जिले का मान .... पिट्सबर्ग अमेरिका से प्रकाशित विश्व प्रसिद्ध  द्विभाषिक मासिक पत्रिका 'सेतु ' मे अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर' की काव्य रचना "आजादी के मतवाले" अगस्त माह के अंक मे पेज संख्या 33 पर प्रकाशित हुई है जो कि अत्यन्त ही गौरव की बात है। अभिषेक शुक्ला जी की मातृभूमि ग्राम बंडिया पोस्ट सआदतनगर जिला सीतापुर है।आप नवोदित साहित्यकार है।आपकी रचनाये अमर उजाला,काव्य सागर व अन्य कई समाचार पत्र व पत्रिकाओं मे प्रकाशित हो चुकी है।आपकी रचनाये युवा पाठको को अत्यधिक पसंद आती है।आपने अपने सहित्यिक योगदान से अपने जिले का मान बढ़ाया है।

नन्ही मॉडल

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               'बेफिक्र बचपन और जिन्दगी है न्यारी, थोड़ी शरारत और सावली सूरत है प्यारी। मम्मी की गुड़िया और पापा की दुलारी, रहती उनके दिल मे बनकर राजकुमारी। ख्वाहिशे हुई है पूरी चाहे जितनी हो गरीबी, भूल से भी माँ बाप ने न जाहिर की मजबूरी। जिन्दगी के बंजर रैम्प पर वह कैटवॉक करती, यह नन्ही सी मॉडल सबको है नि:शब्द करती।' रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर' नोट:-फोटो साभार फेसबुक

प्राथमिक विद्यालय

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"प्राथमिक विद्यालय तो है ज्ञान का घर, हमारे सपनो व सच्चे भविष्य निर्माण का घर। हम कुशल नेतृत्व में है पढ़ते और खेलते, शिक्षक हमारा बहुमुखी विकास है करते। हम खेल के मैदान मे है खूब करतब दिखाते, योग और व्यायाम मे है खूब निपुणता पाते। हमे गुरूजन सिखाते है सत्य, कर्त्तव्य,व परोपकार, अच्छी बात सिखाने को करते है प्रतिदिन नवाचार। पुस्तक 'हमारा परिवेश' से स्वस्थ्य जीवन जीना हमे आया है, 'संस्कृत पीयूषम' के श्लोकों ने नैतिकता का पाठ सिखाया है। 'परख' ने हमे जीव-जन्तु,पौधो से परिचित करवाया है, 'कलरव' की कविताओ से सस्वर वाचन करना आया है। 'रैनबो' ने आंग्ल भाषा के रंगो से जिन्दगी को सजाया है, 'गिनतारा' से हम सबको जोड़ घटाना सब कुछ आया है। अपने गाँव का प्राथमिक विद्यालय  हमारे मन को खूब भाया है, सरस्वती के इस पावन मन्दिर ने ज्ञान का दीप जलाया है।" रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

मर्दानी

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शीर्षक:-'मर्दानी' "एक ही रानी लक्ष्मीबाई यहाँ नही दुश्मनों  संग लडती है, भूख,प्यास,बेरोजगारी संग तो रोज़ ही बलिवेदी सजती है। समर क्षेत्र मे तो रोज यहाँ हर मर्दानी लडती है। दो जून की रोटी खातिर वो तो सब कुछ करती है। बेटे को पीठ पर दे सहारा वह दुर्गा आगे चलती है, धर रूप काली का वह तो काल का खण्डन करती है। तलवार पुरानी हो गयी पर भुजाओं मे बल रखती है, काट शीश असंभावनाओ का वह तो आगे बढ़ती है। विपरीत है परिस्थितियां पर वह मर्यादा रखती है, इस तरह मर्दानी माँ का फर्ज भी पूरा करती है।" रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला "सीतापुर"

सच्ची निशानी

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"सिर पर मेरे ताज नही ये तसला है, दो वक़्त की रोटी का सब ये मसला है। शौहर मेरा शाहजहाँ जैसा धनी तो नही है, रूप मेरा मुमताज जैसा सुन्दर तो नही है। पर मुस्कान मेरी प्यार की सच्ची निशानी है, चेहरे पर सजा गुलाल वो देश की माटी है। हम गरीब प्रेम भावों को खूब समझते है, हमारे बन्धन तो सात जन्मो तक बंधते है। हम जीवन भर एक-दूजे का साथ निभाते है, हम जीते जी अपनो की कब्र नही खुदवाते है। हमारे यहाँ ऐसा उपहार नही दिया जाता है, जो है जीवित उसे मृत नही कहा जाता है। हम तो प्रेम मे संग जीते संग मर जाते है, हमे ताबूत-ए-संगमरमर नही दिये जाते है।" नोट:-फोटो साभार फेसबुक

क्रूरता

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Abhishekshuklasitapur मुझ पर यूं रौब तुम दिखाते हो, गरीब को तुम भी खूब सताते हो। किस्मत ने छीन लिया सब कुछ, तुम भी इस अनाथ को रुलाते हो। न भीख न दया मे कुछ माँगा मैने, न चोरी की न ही डाका डाला मैने। हर तकलीफ़ मुसीबत झेली मैने, पर मेहनत मजदूरी न छोड़ी मैने। पर यह सब भी तुमको क्यो खल गया? बोलो मानवता धर्म तुम्हारा कहाँ गया? नोट:-फोटो साभार फेसबुक

पापी पेट

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"पापी पेट की खातिर सब कुछ कर लिया, खुद से ज्यादा वजन कंधो पर सह लिया। जठराग्नि मिटती नही जतन सब कर लिया, दो जून की रोटी खातिर मै खूब भटक लिया। हाय इस गरीबी ने और भी है डस लिया, ऊपर से बुढ़ापे ने जी भर है रुला दिया। मैने किसी तरह अपने पेट को भर लिया, आज जीवन ने काल को फिर है हरा दिया। भूख मिटाई दोनो ने फर्क इतना हो गया, सबने खाकर फैका,मैने उठाकर खा लिया।" रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला"सीतापुर"

घुमक्कड़ हुनरबाज

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"रद्दी को भी लाइब्रेरी बना लेते है, मेहनत से किस्मत चमका लेते है। फैके हुये कागज़ के टुकड़ो पर, हम अपना हुनर आजमा लेते है। कोई नही सिखाता है सबक पर, जिन्दगी से ही हम सीख लेते है। किताबों मे है सब अच्छी बात पर, वजूद इसका जमाने मे देख लेते है। हमारी बस्तियों मे कोई नही आता पर, हम घुमक्कड़ सारा जमाना देख लेते है।" रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला "सीतापुर"

"हिन्दी"

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"हिन्दी तो है हिन्द की भाषा, अपनी तो है शान मातृभाषा। जो लिखो वही है पढ़ा जाता, सबके मन को यह खूब भाता। 'अ' से अज्ञानी है जाना जाता, 'ज्ञ' से ज्ञानी तो ये हमे बनाता। इसके महत्व को लो सब जान, इसका प्रयोग करना लो ठान। राजभाषा का हो सबको ज्ञान, "हिन्दी" का विश्व मे हो सम्मान।" हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.... रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला "सीतापुर"

सदा यूँ ही

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"धड़कन रुकने को थी नब्ज़ भी मेरी थमने को थी, प्रियतम को मेरे फिर भी पल भर की फुरसत न थी। रिश्ता हमारा अन्तिम आहों पर सिसक रहा था, उनका जश्न-ए-आजादी अपनो संग चल रहा था। खुश थे बहुत वो मुझ बिन ये मै देख रहा था, दुख दिये मैने ही सब क्या ये मै सोच रहा था। मै तन्हाईयो को समेटे उनका इंतजार कर रहा था, वो भूलकर मुझे अपनो संग महफिल सजा रहा था। उनके महफिलो के दौर अब सदा यूँ ही चलते रहे, वो मुझसे बेफिक्र होकर अब सदा यूँ ही हँसते रहे।"

ऐसा मत करना

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"सफलता के आयामों पर कभी फक्र मत करना, मिला मेहनत से उसका कभी जिक्र मत करना। किस्मत की लकीरें भी बदल जाती है मगर, हुनर से अपने कभी कोई समझौता मत करना। जुनून रखना जीतने का पर इतना खयाल रखना, अपनो का दिल दुखे कभी कुछ ऐसा मत करना। आजमाना अपनी बुलंदियो को तुम शिखर तक, इंसानियत पीछे छूट जाये कभी ऐसा मत करना।" रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला "सीतापुर"

माँ को नमन

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'घर को मंदिर बनाती है माँ, आँगन की रौनक बढाती है माँ। लाख दुख दर्द हँसकर है सहती, भूले से भी वो किसी से न कहती। बीमारी मे भी दायित्व है निभाती, परिवार के लिए सब सह जाती। अपनी कभी भी फिक्र न करती, सदा खुश निज बच्चों संग रहती। अपनी हिम्मत से घर है सम्हाले, माँ को नमन करो ये दुनियावाले।' रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

आरक्षण

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"आरक्षण है बड़ी महामारी इसे बढ़ने नही दो, प्रतिभाओं को जाति बलिवेदी पर चढ़ने नही दो। वरना बेमौत ही मर जायेंगे कुशाग्र  बुद्धि वाले, नौकरी के मजे लेते रहेंगे ये आरक्षण वाले। आरक्षण की अब नयी यह परिभाषा लिख दो, जो हो गरीब उसे तुम सब आरक्षण लाभ दे दो। गरीबी जाति और धर्म देखकर आती नही है, अमीरो को मिले आरक्षण ये बात भाती नही है। सभी को बुद्धि विवेक ईश्वर ने दिया है, पर आरक्षण ने प्रतिभाओ को मार दिया है। आरक्षण का अब और अधिक यह खेल न चलेगा, आरक्षण हो खत्म आज का हर जागरुक युवा कहेगा। जय हिन्द,जय भारत Note:- अगर आप जातिगत आरक्षण के खिलाफ है और मेरी बात से सहमत है,तो इसे युवाओ व मेधावियो के हित के लिए शेयर अवश्य करे।