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Showing posts from December, 2020

हम भी है राहों में

लेख:- हम भी है राहों में  हमें अक्सर कुछ ऐसे लोग दिख जाते है जो बहुत ही दयनीय अवस्था मे होते है। ऐसे लोग सड़क के किनारे, डिवाइडर पर बैठे हुये और इधर-उधर घूमते हुये दिखाई पड़ते है। ये फटे-पुराने कपड़े व चिथड़े लपेटे हुये होते है। कभी ये अर्ध या कभी पूर्णरूप से नग्नावस्था मे भी घूमते-फिरते दिखायी मिल जाते है। कौन है ये लोग? क्या इनका भी कोई अपना है इस दुनिया मे? क्या ये लोग हमेशा से ही ऐसे थे? क्या ऐसे प्रश्न आपके जहन मे आये कभी? क्या इन्हे देखकर इनके लिये हमें कुछ करना चाहिए? वास्तव मे, ऐसे लोग मानसिक रूप से विक्षिप्त होता है। इन्हे न तो अपना होश होता है और न ही इस दुनिया का। यहां तक ये अपना नाम और पहचान भी भूल चुके होते है। न ही इनका कोई घर होता है और न ही ठिकाना। ये अवारा यायावर बनकर अनन्त अंधकार की ओर बस चला करते है। इन्हे जाड़ा,गर्मी,बरसात से कोई फ़र्क नही पड़ता। चाहे पतझड़ हो या बसंत बहार किन्तु इनके जीवन मे सिर्फ होता है असीम अन्धकार। आखिर इनकी हालत ऐसी कैसे हो गयी? इनके घरवालों इन्हे घर ले जाकर इनकी देखभाल क्यो नही करते? इन बातों पर विचार अति आवश्यक हो जाता है। कुछ लोगों को छोड़कर बाकी सभ

ब्राण्डेड बुखार

लेख:- 'ब्राण्डेड बुखार' आजकल हर व्यक्ति अपने निजी काम को बहुत ही अच्छे ढंग से करने मे विश्वास रखता है। सबसे ज्यादा ध्यान तो इस बात पर रहता है कि हम अच्छा खाये,पिये और पहने। अब व्यक्ति अपने व्यक्तित्व को निखारने और प्रभावशाली बनाने के लिये प्रयासरत रहता है। वह सोचता है कि वह सबसे अच्छा दिखे। इसलिये वह अनेक प्रयास और उपायों को अपनाता है। अपनी सुन्दरता,आकर्षण और व्यक्तित्व विकास हेतु वह महँगी वस्तुओं, कपडों और विभिन्न दैनिक उपयोग की चीज़ो को प्रयोग करता है। व्यक्तित्व विकास के लिये अच्छे और महँगे कपड़े,जूते पहनना धीरे-धीरे जरुरत से ज्यादा आदत बन जाती है। इस आदत पर काफ़ी खर्चा भी होता है। व्यक्ति दैनिक जीवन मे उपयोग होने वाली सभी चीजें ब्राण्डेड ही उपयोग करना पसंद करता है। ब्राण्ड का बुखार यानी ब्राण्डेड प्रोडक्ट्स खरीदने की आदत बच्चे,बूढ़े और जवान सभी के सिर चढ़कर बोल रही है। सभी अपने पसंदीदा कपड़े,जूते और दैनिक उपयोग की वस्तुयें ब्राण्ड स्टोर से ही खरीद रहे है। दूसरों को प्रभावित करने के लिये और दिखावे की खातिर लोग ब्राण्डेड बुखार की जकड़ मे आ चुके है। इससे बचने के लिये समझ रूपी पैरासी

मातृभाषा एकमात्र विकल्प

लेख:- 'मातृभाषा एकमात्र विकल्प'   मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जो अपनी बात दूसरों तक पहुँचाने के लिये भाषा का प्रयोग करता है। वह अपनी बात लिखित,मौखिक व सांकेतिक रूप मे दूसरे तक प्रेषित करता है। भाषा संप्रेषण का कार्य करती है। यह आवश्यक वार्तालाप,भावनाओं,सुख- दुख और विषाद को प्रकट करने मे सहयोग देती है। भारत देश मे लगभग तीन हजार से ज्यादा क्षेत्रीय व स्थानीय भाषाओं का प्रयोग लोगो द्वारा किया जाता है। भारतीय सविंधान मे इक्कीस भाषाओ को मानक स्थान प्रदान किया गया है। शिक्षा के क्षेत्र मे भाषा का अतिमहत्वपूर्ण योगदान है। भाषा के बिना किसी पाठ्यक्रम व विषय ज्ञान की कल्पना भी नही की जा सकती है। भारत के इतिहास का अध्ययन करने पर हम संस्कृत,पालि,अरबी,फ़ारसी आदि अनेकानेक भाषाओं के बारे मे पढ़ते है। संस्कृत भाषा की महत्ता हमे उसके उन्नत,समृद्ध साहित्य और व्याकरण से ज्ञात होता है। भारत विविधताओ का देश है। ऐसे मे बहुभाषिता का होना कोई बड़ी बात नही है। बच्चे अपने आस-पास के परिवेश मे प्रचलित भाषा को आसानी से सीख लेते है। जिस भाषा को उनकी मातृभाषा कहा जाता है। इस भाषा को सीखने के लिये बच्चों को

दर्द

जो है अपने खुद ही दर्द को पहचान लेंगे, मुनासिब नही है जाहिर वो हर बात करे। आपके दर्द से वाकिफ़ पूरी तरह से है,  नासूर न बने दर्द इसलिये चुप रहते है।  दुआ है कि हालात कुछ ठीक हो जाये,  खुशियों के बीच आप दर्द को भूल जाये।

मुश्किल

नामुमकिन होगा किसी और को ये दिल सौप पाना,  पर मुश्किल- सा लगता है तेरा लौटकर फिर आना।

सत्ता

वक्त रहते सही कर लो इन बिखरे मुद्दों को,  कही किसान बन्दूकें न बो दे अपने खेतों मे।  जब भी सत्ता का सिंघासन नशे मे चूर होता है,  उसे जगाने फिर से कोई भगत सिंह आता है।