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Showing posts from August, 2018

आरक्षण

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"आरक्षण है बड़ी महामारी इसे बढ़ने नही दो, प्रतिभाओं को जाति बलिवेदी पर चढ़ने नही दो। वरना बेमौत ही मर जायेंगे कुशाग्र  बुद्धि वाले, नौकरी के मजे लेते रहेंगे ये आरक्षण वाले। आरक्षण की अब नयी यह परिभाषा लिख दो, जो हो गरीब उसे तुम सब आरक्षण लाभ दे दो। गरीबी जाति और धर्म देखकर आती नही है, अमीरो को मिले आरक्षण ये बात भाती नही है। सभी को बुद्धि विवेक ईश्वर ने दिया है, पर आरक्षण ने प्रतिभाओ को मार दिया है। आरक्षण का अब और अधिक यह खेल न चलेगा, आरक्षण हो खत्म आज का हर जागरुक युवा कहेगा। जय हिन्द,जय भारत Note:- अगर आप जातिगत आरक्षण के खिलाफ है और मेरी बात से सहमत है,तो इसे युवाओ व मेधावियो के हित के लिए शेयर अवश्य करे।

आगोश मे

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"उन्हे तो मालूम था कि मै तन्हाई से ताल्लुक रखता हूँ , इन दिनो उन बिन मै तो अपनी अँधेरी दुनिया मे रहता हूँ । मुझसे जुदा हो जाने का उन्हे कोई अफसोस न होगा, बना दिया मुझे गैर पर खुद पर कोई इल्जाम न होगा। उनके प्यार मे सारी दुनिया को भुला बैठे हम, उन्होंने गलती से भी न पूछा अब कैसे हो तुम। उनको मै और मेरा प्यार बोझ लगने लगा, मै तो उनकी याद मे और ज्यादा तडपने लगा। वो खुश है अपनो की महफिल मे मुझे बुरा मानकर, मै भटक रहा हूँ दुनिया मे उन्हे अपना खुदा मानकर। मुमकिन है किसी पल में उन्हे भी मेरी याद आयेगी, तब मेरा प्यार और अच्छाईया उन्हे बेताब कर जायेगी। शायद वो ढूँढेगे मुझे बेकरार होकर दुनिया की भीड़ मे, बेखबर तब तक मै जा बसा हूंगा मौत के आगोश मे।" रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला "सीतापुर"

रक्षा बंधन

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" रक्षा बन्धन रक्षा वचन का त्यौहार है, प्रेम,सम्मान,विश्वास का यह पर्व महान है। प्रेम सूत्र मे पिरोये कच्चे धागो का मान है, बहन -भाई के अटूट बंधन का ये त्यौहार है। रक्षा करेगा भाई ये देता वचन बारम्बार है, सावन मे हर वर्ष ये पर्व आता हर बार है। कलाई पर बंधा रक्षा सूत्र भाई यह शपथ लेता है, आजीवन बुराईयो से बचाने का वह प्रण लेता है।"

तुम न समझे

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मेरी वकत इस दुनिया मे किसी ने न समझी, बुरा तो तब लगा जब आपने भी न समझी। उम्मीद न की कभी किसी से कोई तारीफें करे, पर इल्तजा रही सबसे कि कोई दुखी भी न करे। फिर भी मान लिया कि बिल्कुल अच्छे नही है हम, पर दिन रात ख्वाबों मे आपके खोये रहे है हम। गम ये नही कि तुम मुझसे बेफिक्र अपनो मे रहते हो, दर्द होता है बहुत जब सबके आगे मुझे न समझते हो। सब सह लेता हूँ हँसकर क्योंकि तुमसे प्यार करता हूँ, तुम आओ या न आओ पर हर पल इन्तजार करता हूँ।

भारत

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"हर दिल मे "भारत" बसता है, यह प्राणो से भी प्रिय लगता है। हर वासी इसकी पूजा करता है, शान मे इसकी जीता-मरता है। गाँवो की अजब निराली शान है, भारत की इनमे रहती जान है। माँ बच्चे को देश प्रेम सिखाती है, उसे वीर सजग प्रहरी बनाती है। देश की माटी मे बसती सब की जान है, इसीलिए देश "मेरा भारत महान" है।"

मुस्कान बाकी है

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शीर्षक:-"मुस्कान बाकी है" बाढ़ आयी है तो आ जाने दो, अभी भी कुछ उम्मीदे बाकी है। घर डूब गया सब कुछ बह गया, अभी भी कुछ अरमान बाकी है। मुश्किलो के दौर आगे भी है बहुत, अभी भी कुछ जिन्दगी बाकी है। हौसलो से ही नसीब बदलता है यहाँ, अभी भी कुछ मुझमे साहस बाकी है। माना जिन्दगी उलझ गयी है बहुत, अभी भी कुछ करने की चाहत बाकी है। पिरो लूँगा हिम्मत का धागा फिर से, अभी भी कुछ जीत की मुस्कान बाकी है। रचनाकार:- "अभिषेक शुक्ला सीतापुर" >नोट:-केरल बाढ़ से

नया रिश्ता

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"मौत आती है तो आ जाने दो उसे, जी भर जी लिया मर जाने दो मुझे। कोई गिला शिकवा जिन्दगी से न रहा मुझे, जो कुछ चाहा सब मेहनत से मिला मुझे। सारी रौनकें,महफ़िलें देखी इस दुनिया की मैने, फिर भी जिन्दगी मे बहुत धोखे खाये है मैने। बहुत से  सुनहरे सपने भी सजाये थे मैने, अपनो की खुशियो के आगे सब रौद डाले मैने। अब तो अन्तिम और निर्णायक फैसला होगा, अब तेरी धड़कन को हर हाल मे थमना होगा। अब तो जिन्दगी तेरा भी किस्सा खत्म होगा, तू छूटेगी और मौत से मेरा नया रिश्ता होगा।"

एक दूजे का साथ

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"दो अजनबी मिले प्रेम बन्धन मे बँधे, साथ रहकर सदा सारे दुख-सुख सहे। गृहस्थी आगे चली जिम्मेदारियां बढ़ी, किये सब कर्त्तव्य और उम्र भी ढली। आया जब दौर बुढापे का तो कोई सहारा न मिला, बच्चो के घर मे भी कोई कोना-किनारा न मिला। बोलो कैसे छोड देते वो इस मंजर पर एक दूजे का साथ , उम्र के इस पड़ाव पर भी वो चल पड़ें है ले हाथो मे हाथ।।" रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला "सीतापुर" अपील:-सभी से निवेदन है कि अपने घर के बुजुर्ग माता पिता व प्रियजनो का पूरा ध्यान रखे।याद रहे कि सारी उम्र खुद चाहे वे तकलीफ मे रहे पर आपकी सभी जरूरतो और ख्वाबो को उन्होने पूरा किया।

आते तो सही

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"नफरतो के दौर है बहुत पर तुम आते तो सही, करके कुछ ऐसा मेरे मन को लुभाते तो सही। सिलसिले है यहाँ बर्बादी के भी मंजर देखे बहुत है हमने, पर डूबती हुई कश्ती को भी तो सहारे कहाँ दिये है तुमने। है मलाल बहुत पर सब संयम मौन से सहता रहा, जानकर सब छल प्रपंच भी मै अनजान बनता रहा। है तसल्ली या बेफिक्र सा यह अंदाज फैसलों का मेरा, तू सोच और समझ क्या होगा कयामत के दिन तेरा। अपनी तो कटी है कट जायेगी यायावर बनकर , तू सोच तेरा क्या होगा खुदा का फैसला सुनकर।।"

अटल "अटल जी"

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अटल मार्ग पर चलने वाले "अटल जी" तुम चल दिये, भारत रत्न इस धरा को तुम सूना करके चल दिये। ज्ञानदीप को निज रचनाओं से प्रज्ज्वलित कर तुम चल दिये, राजनीति के मर्मज्ञ नये आयाम गढ़ तुम चल दिये। ऊर्जावान,प्रभावशाली तुम स्वाभिमान की ज्वलंत चिन्गारी, मृत्यु अटल सत्य है इस लोक मे आज तेरी कल उसकी बारी । हार नहीं मानूगाँ रार नयी ठानूगाँ कहते थे तुम ये व्रतधारी, सरल मुस्कान बिखेरी तुमने चाहे संकट हुआ कितना भारी। आपके अटल इरादों को "अटल जी" काल भी न डिगा सका, अटल मृत्यु का शाश्वत सत्य भी न आपके नाम को मिटा सका। आपको इस पावन धरा "भारत" का जन जन वन्दन करता है। स्तब्ध  नि:शब्द "अभिषेक"आपको शत शत प्रणाम करता है। अटल जी को समर्पित....

क्यो चल दिये

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क्यों चल दिये "मुझे न होश था अपना न ही थी कोई फिकर, जिंदगी थी बेरंग सी चल रहा था बेख़बर। तुमने आकर इसे नए आयाम दे दिए, बोलो फिर दामन छुड़ाकर क्यों चल दिए। तुमने जीने का मुझे हर सलीका सिखाया, दुनिया में रह सकूँ वो हुनर बताया। मेरी अच्छाईयों से मुझे रूबरू कर गये, बोलो फिर दामन छुड़ा कर क्यों चल दिये। तुझमें ही सारी दुनिया देखने लगा, तुझसे मिलने को तुझसे ही लड़ने लगा। प्रेम के ढ़ाई आखर भी तुझसे मैंने बोल दिये, बोलो फिर क्यों दामन छुड़ा कर चल दिये। कैसे रहेगा तुम्हारे बिन ये मचलता मन, कैसे थमेंगे ये आंसू बोलो तुम्हारे बिन। कैसे रहूं उस दुनिया में जहाँ तुम बस गये, बोलो फिर दामन छुड़ा कर क्यों चल दिये। सुबह सवेरे अब कैसे तुम्हारे लब्ज सुनूंगा, तुम बिन ये जिंदगी अब मैं कैसे रहूंगा। मेरे उद्गारों को तुम क़लम दे गये, बोलो फिर दामन छुड़ाकर क्यों चल दिये?"

पिता है सहारा

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पिता है सहारा पिता का प्रेम अतुल्य,अनन्त होता है, उनका हृदय वात्सल्य से परिपूर्ण होता है। तात वट वृक्ष समान होते है, जिनकी छत्र छाया में सब अभिमान से जीते है। परम् अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की नींव रखता है, इसलिए वह स्वयं कठिन परिस्थितियों से गुजरता है। जनक को अपने बच्चों को दिए गए संस्कारों पर नाज़ होता है, इसलिए बेटी पापा की परी और बेटा राजदुलारा होता है। पिता को अपनी संतानों पर हर पल अभिमान रहता है, जग में उसका नाम करेंगे ये सबसे वह कहता है। पिता के आशीर्वाद से ही सबको सुखमय जीवन मिलता है, अभिषेक निज तात के चरणों में कोटिशः नमन करता है।

बेटियां

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बेटियों ने आज अपनी पहचान बना ली है, दुनिया मे अपनी सफलता से शान बना ली हैं। पढ़ लिखकर बेटियों ने सबका मान बढ़ाया है, शिक्षक ,डॉक्टर बनकर माँ बाप का गौरव बढ़ाया है। पहन वर्दी सीमा पर दुश्मन को मजा चखाया है, बेटियों ने तो अंतरिक्ष में भी अपना परचम लहराया है। बेटियों ने हर पल हर रिश्ते को खूब निभाया है, उसकी ममता और दुलार की गहराई कोई समझ नहीं पाया है। सभी क्षेत्रों में उनकी पहचान निराली है। बेटियाँ अब नहीं केवल अबला नारी है।।

खूब पढ़े खूब बढ़े

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शिक्षा ही जीवन का आधार है, इसके बिना जीवन निराधार है। शिक्षा ही जिन्दगी का सच्चा अर्थ बताती हैं, सत्य और अनंत उन्नति का मार्ग बताती है। शिक्षक नित नवीन सबक सिखाते है, सब को स्वाभिमान से जीना सिखाते है। बिन पढ़े लिखे लोग पशु समान होते है, जो न पढ़ाये अपने बच्चे वो मातु पिता दुश्मन समान होते हैं। जिंदगी में शिक्षा के महत्व को समझना चाहिए। 'खूब पढ़े खूब बढ़े" ये जीवन का मूलमंत्र होना चाहिए।। अभिषेक शुक्ला सीतापुर

सावन आया

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"वर्षा ऋतु है अब आयी, चहुं और है बदली छायी। मौसम सुहाना हो गया, हर पेड़ पौधा हरा हो गया। सावन की बदली है सुहानी, हर चेहरा अब तो है नूरानी। हाथों में मेहंदी रच गयी, हर बाला अब तो सज गयी। पेड़ो पर पड़ गए है झूले, सब हंस कर ले रहे हिलोरे। राधा तुम भी आ जाओ, तुम बिन ये सावन न भाये। कृष्ण की मुरली अधरों पर सज गयी। सारी दुनिया उसकी दीवानी हो गयी।।" -अभिषेक शुक्ला सीतापुर

तेरी नजर

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“तेरी क्या मैं बात करूं, तुझसे ख्वाबों में मुलाकात करूँ। तेरी पहली नजर की मदहोशी में, मैं तो अब दिन रात रहूँ। आंखें हैं तेरी बहुत कुछ कहती, मैं उन्हें समझने का प्रयास करूँ। छिपाना चाहते हो मुझसे तुम कई बातें, पर इज़हार कर जाती है तुम्हारी आँखे। आँख हो भरी तो कैसे मुस्कुरा लेते हो, दर्द में हँसने का हुनर कहाँ से लाते हो। जब भी नम होते है तुम्हारे नैन, तो मन हो उठता है मेरा बेचैन। तुम्हारे नैनो के हर मंजर को समझने लगा हूँ। लब्ज है चुप पर तेरी आंखों की भाषा समझने लगा हूँ।।”

तेज धूप

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गर्मी में तेज धूप से सब बेहाल हो रहे है, जरूरी काम को सुबह-शाम का इंतजार कर रहे है। गर्मी से बचने के सब उपाय ढूंढ रहे हैं, सब इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का प्रयोग कर रहे है। ए. सी,फ्रिज और ऑटोमोबाइल का खूब प्रयोग हो रहा है, “ग्लोबल वार्मिंग” इनका बड़ा योगदान हो रहा है। मई- जून में तापमान 40 के पार हो रहा है, सभी का गर्मी में बुरा हाल हो रहा है। हमें न पर अपनी गलतियों का एहसास हो रहा है, हमारे कारण ही हमारा जीना दुश्वार हो रहा है। हम कब सुधरेंगे अब किस बात का इंतजार हो रहा है, लगाओगे पेड़ पौधे जब इस धरा पर। तब देखना हरियाली और छाँव से मन हर्षित बारम्बार हो रहा है।।

बचपन

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” वो झिलमिल बचपन की यादें, अपनों से अपनो की बातें। प्यार भरा अपना संसार, सुख से भरा अपना घर द्वार। सब कुछ जानने की चाहत, दोस्तो संग रहने की आदत। सबके संग हँसी ठिठोली, दोस्तो संग रंग बिरंगी होली। अपनो का असीम प्यार, वो मास्टर जी की फटकार। छुट्टियों का हर पल इन्तेज़ार, घर आये बड़ों को नमस्कार। वो झिलमिल बचपन की यादें। अपनों से अपनों की बातें।।’ अभिषेक शुक्ला

चाँद तू बता

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ऐ चाँद तू बता इतनी दूर क्यों बसता है, तू तो सबके दिलों की धड़कनों में रहता है। कोई तुझे देखे बिना ईद न मना पाये, कोई तेरे दीदार बिना व्रत न पूर्ण कर पाये। सब तुझसे अमन शांति की कामना करते हैं, सब तुझ सा प्यारा साथी पाने को आह भरते हैं। प्रेमी अपनी प्रेयसी में तेरा दीदार करते हैं, कवि तुझ पर अपना काव्य रचते हैं। तू तो सितारों बीच आसमान में बसता है, तुझको धरती से ये "अभिषेक" नमन करता है। तुझको पाने को कन्हैया का भी मन मचलता है। ये चाँद तू बता तू इतनी दूर क्यों बसता है।

युग निर्माता शिक्षक

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शिक्षक युग निर्माता कहलाते है, वे सच्चे पथ प्रदर्शक कहलाते है शिक्षक शिक्षा की अलख जगाते है , संसार से अज्ञानता को दूर भगाते है, वह ज्ञान दीप को प्रज्जवलित कर, निज शिष्यो को महान बनाते है। सत्य व नैतिकता का सबक सिखाकर, वह सबके जीवन को उन्नत बनाते है। क्या उचित-अनुचित यह शिक्षक हमे बताते है, शिक्षक इसीलिये ईश्वर से बढकर माने जाते है । अभिषेक शुक्ला सीतापुर

मोबाइल

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"आजकल 'मोबाइल' का बड़ा नाम हो रहा हैं, इससे बहुत किसा काम हो रहा है। कैसे कह दूं कि इसने अपनो को दूर या पास कर दिया, इसने 'सोशल मीडिया' पर अपनेपन का एहसास दे दिया। 'फ़ेसबुक' और 'व्हाट्सएप्प' ने भी कमाल कर दिया, अपनो से अपनो का पल भर में पैगाम दे दिया। अब तो इसी से समस्याओ का समाधान हो रहा हैं, 'ट्विटर'और 'जनसुनवाई एप्प' पर सब सम्भव हो रहा है। आज का युवा ड्यूल सिम 'स्मार्ट फ़ोन' रख रहा है, 'गूगल' से सभी जानकारियां 'सर्च' कर रहा है। अपनो को सुनना,देखना और संदेश पहुंचाना आसान हो रहा है, 'आई.एम.ओ' और 'गूगल डुओ' पर दीदार हो रहा है। आजकल 'मोबाइल' का बड़ा नाम हो रहा है। इससे बहुत सा काम हो रहा है।। " अभिषेक शुक्ला सीतापुर

याराना

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प्रेम से भी बड़ा बन्धन, सुकून आये दोस्ती में। कभी कृष्णा कभी अर्जुन याद आये दोस्ती में। अपनी जिंदगी से हार थक करके हर इन्सान, सभी परेशानियां और गम भूल जाये दोस्ती में। बना दे जिंदगी सुंदर निभाओ साथ जब दिल से यकीन करना बड़ा मुश्किल दग़ा गर कोई दे फिर से। दोस्ती है बड़े विश्वास और एहसास का बन्धन, निभाओ इसको तुम निःस्वार्थ हो विश्वास जब दिल से। मेरे मन के मंदिर में दोस्ती राज करती है, मेरे यार की मूरत ही मन मे वास करती है। मेरे दोस्त और मुझसे है कुछ ज्यादा ही मीठापन साथ बस कुछ ही पल का है ये दुनिया बात करती है। कर्ण ने दुर्योधन से निभाया खूब याराना। रक्त के रिश्तों को तोड़ा निभाया खूब याराना। कन्हैया ने तो अर्जुन को गीता उपदेश दे डाला, उठा हथियार वचन तोड़ा निभाया खूब याराना।। अभिषेक शुक्ला

तुम्हारी आँखें

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"तेरी क्या मैं बात करूं, तुझसे ख्वाबों में मुलाकात करूँ। तेरी पहली नजर की मदहोशी में, मैं तो अब दिन रात रहूँ। आंखें हैं तेरी बहुत कुछ कहती, मैं उन्हें समझने का प्रयास करूँ। छिपाना चाहते हो मुझसे तुम कई बातें, पर इज़हार कर जाती है तुम्हारी आँखे। आँख हो भरी तो कैसे मुस्कुरा लेते हो, दर्द में हँसने का हुनर कहाँ से लाते हो। जब भी नम होते है तुम्हारे नैन, तो मन हो उठता है मेरा बेचैन। तुम्हारे नैनो के हर मंजर को समझने लगा हूँ। लब्ज है चुप पर तेरी आंखों की भाषा समझने लगा हूँ।।" -अभिषेक शुक्ला

नेताजी

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मेरे देश के नेता का अजीब हाल हो गया, गरीबों के लिए लड़ते लड़ते वो मालामाल हो गया। चुनाव में हाथ जोड़कर घर घर जाता है, हर किया वादा निभाने की कसम खाता है। चुनाव जीतने पर वो खुशियां मनाता है, फिर सबको जाति धर्म के नाम पर लड़ाता है। किये गए सारे वादे वो पल में भूल जाता है, फिर नेताजी का दर्शन भी दुर्लभ हो जाता है। हमारे देश मे पचपन का भी युवा नेता कहलाता है, देश का युवा पढ़ लिखकर भी बेरोजगार रह जाता है। अनपढ़ बन नेता अपना काम चलाता है, अधिकारियों पर अपना खूब रौब जामाता है। दिन रात वो दौलत शोहरत कमाता है, पांच साल बाद उसे जनता का ध्यान आता है। अभिषेक शुक्ला सीतापुर

तू हीर है मेरी

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मैंने ख़ुदा से की थी मिन्नते हजार, तू आये मेरी जिंदगी में हर बार। तुम आये मेरी जिंदगी में और दस्तक भी न दी, तुम हुए न रूबरू और निशानी भी न दी। बहुत हुई रहमत ख़ुदा की, पर तुम मुझे दिखाई न दी। अचानक मेरी इबादत मंजूर हो गयी, आया वो मंजर तुम मिलने को मजबूर हो गयी। जब सुनी आपकी खनकती सौम्य सी मधुर आवाज़, खो गया प्रेम सागर में मुझे याद भी है आज। मिलना भी हमारा हुआ दुनिया की भीड़ में, हम तुम थे पूरी तरह प्रेम के आग़ोश में। तुम्हे देखते ही मैं खुद और ख़ुदा को भूल सा गया, तुम्हारी पहली नज़र ने मेरा दिल चुरा सा लिया। तुम्हारे नैन नक्श ने चैन छीन लिया मेरा, तुम्हारी सादगी व भोलेपन ने दिल लूट लिया मेरा। करना चाहता था तुम्हे अपने प्रेम का इज़हार, कह न सका मैं हिम्मत की कई बार। तुम्हारे नैनो से मेरी आँखों से मुलाक़ात हो गयी, न बोले तुम और न मैं,पर सारी बात हो गयी। बन बैठा तेरा दीवाना परवाने की तरह। तू हीर है मेरी,मैं तेरे रांझे की तरह।। अभिषेक शुक्ला सीतापुर

कोरा कागज़

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मैं तो हूँ एक कोरा कागज जो चाहे सो लिख लो हार लिख लो चाहे विजय का परचम लिख लो, लिख लो तुम परतन्त्रता या आजादी लिख लो। शामिल हूँ मैं सुख दुख में, तेरे जीवन के प्रति पल में। वन्दन लिख लो चाहे या विषाद का वर्णन लिख लो, लिख लो तुम प्रणय निवेदन या अभिवादन लिख लो। मिलूँगा तुम्हे मैं प्रत्येक छोर पर, तेरे जीवन के हर एक मोड़ पर। बिछोह लिख लो चाहे या मिलन की यादें लिख लो, लिख लो तुम प्रियतम की यादें या अफ़साने लिख लो। तेरा जीवन है मेरा रंग रूप , मेरे तो हैं कई प्रतिरूप । मैं तो हूँ एक कोरा कागज, जो चाहे सो लिख लो ।। अभिषेक शुक्ला सीतापुर