तुम मुझसे कहते थे

तुमने मुझ संग प्रीत लगायी थी
मुझे प्रेम की भाषा सिखलायी थी
हम एक -दूजे संग जीते थे
संग हँसते,जीते,रोते थे
तुम हर पल मुझसे कहते थे
प्रणय को परिणय तक पहुँचाऊँगा,
सात जन्मों तक यह रिश्ता निभाउंगा
निज स्वजनों का ले आशीष
तुम्हे घर की वधू बनाऊंगा
अकस्मात! मैं दुर्घटना का शिकार हुई,
मुझ पर यह कैसी दुर्भाग्य की मार हुई
मेरे रंग रूप के बदलते ही,
प्रियतम तुम भी बदल गये
जीवन भर साथ निभाने की,
सारी कसमे तुम छोड़ चले
चेहरे के इस परिवर्तन को देख,
तुम मेरा प्रेम व सद्गुण भूल चले
जी लेती तुम संग भूल,यह एसिड अटैक की घटना
पर तेरे धोखे के शूल,वह जीवन की बड़ी दुर्घटना

अभिषेक शुक्ला
सीतापुर

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