क्यो चल दिये

क्यों चल दिये

"मुझे न होश था अपना न ही थी कोई फिकर,
जिंदगी थी बेरंग सी चल रहा था बेख़बर।
तुमने आकर इसे नए आयाम दे दिए,
बोलो फिर दामन छुड़ाकर क्यों चल दिए।
तुमने जीने का मुझे हर सलीका सिखाया,
दुनिया में रह सकूँ वो हुनर बताया।
मेरी अच्छाईयों से मुझे रूबरू कर गये,
बोलो फिर दामन छुड़ा कर क्यों चल दिये।
तुझमें ही सारी दुनिया देखने लगा,
तुझसे मिलने को तुझसे ही लड़ने लगा।
प्रेम के ढ़ाई आखर भी तुझसे मैंने बोल दिये,
बोलो फिर क्यों दामन छुड़ा कर चल दिये।
कैसे रहेगा तुम्हारे बिन ये मचलता मन,
कैसे थमेंगे ये आंसू बोलो तुम्हारे बिन।
कैसे रहूं उस दुनिया में जहाँ तुम बस गये,
बोलो फिर दामन छुड़ा कर क्यों चल दिये।
सुबह सवेरे अब कैसे तुम्हारे लब्ज सुनूंगा,
तुम बिन ये जिंदगी अब मैं कैसे रहूंगा।
मेरे उद्गारों को तुम क़लम दे गये,
बोलो फिर दामन छुड़ाकर क्यों चल दिये?"

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