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Showing posts from December, 2018

नूतन वर्ष

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"नूतन वर्ष की मंगलमय बेला आई, पुराने वर्ष की हो रही है विदाई। प्रण ले अब तक जो हुई गलतियां,  अब न जायेगी हमसे दोहराई ।  मन जो दुख गया हो किसी का,  उन सबसे मिलकर मांग लो अब माफी। छोड़ दो अब आलस और यह उदासी,  नये गढो प्रतिमान और लो जिम्मेदारी। नव वर्ष मे भी साथ सबका बना रहे,  घर आँगन खुशियों से सबका भरा रहे।।" आपको नूतन वर्ष 2019 की हार्दिक शुभकामनाएं ...  *अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'* 

चादर क्यो चढाऊँ ?

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रूह भी कांपती है ठंडक मे कभी- कभी, याद आती है हर मजबूरियाँ सभी तभी।  इन्सान को ज़िन्दगी की कीमत समझनी चाहिये,  जो हो सके मुनासिब वह रहम करना चाहिये।  जीवन है बहुत कठिन कैसे यह सब बताऊँ?  मजारों पर शबाब के लिए चादर क्यों चढ़ाऊँ?  ठिठुरता हुआ मुफलिस दुआयें कम न देगा,  खुदा क्या इस बात पर मुझे रहमत न देगा।।

बेजुबान

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जुबानी इबादत ही काफी नही होती,  इन्सान मे ही केवल जान नही होती।  दिल की सदाये खुदा तो सुनता होगा?  उसे दुनिया का हर हाल पता चलता होगा।  कैसे बनाये इन्सान उसने इस जहान मे,  वह जन्नत से सब कुछ देखता होगा।  फायदे के लिए इन्सान ने यह क्या कर डाला,  सारी दुनिया को अपने हिसाब से रच डाला।  बेजुबानो की तो आजादी ही छीन ली,  बेरहम बन उनकी जीने की खुशी छीन ली।  अपना सारा बोझ उन पर डाल दिया,  उनकी जिन्दगी को खूटे से बाँध दिया।  कब तक जोर जुल्म यूं ही चलता रहेगा?  कब तक बेजुबान बोझ तले दबता रहेगा?

तू बस गया

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"मुझे भूल जाना अब मुमकिन तो नही, तेरे अपनो मे तो मै शामिल भी नही। इंतजार रहता है कि तू आवाज़ देगी, होगी फुर्सत तुझे तो जवाब भी देगी। पर यह वहम भी तो अब टूटने लगा है, तू अब गैरो की फिक्र ज्यादा करने लगा है। बसा रखा है तुझे मैने अपने हृदय में, वहाँ रहना भी अब तुझे खलने लगा  है। मेरी भावनाओं की तुझे फिक्र रह न गयी, तू तो अपनो संग नयी दुनिया मे बस गयी।," रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

सीतापुरिया पलटन बाजी

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कहाँ गयी वो पलटन बाजी? हुल्लड़ पन की वो आजादी? दोस्तों संग वो खीचा तानी, खुलकर जीने की मनमानी। सीतापुर की वो सुबह सुन्दर व न्यारी, जी.आई.सी मे एडमिशन की मारामारी। आर.आर.डी. मे प्रवेश की वो तैयारी, आर.एम.पी. स्कूल की फ़ील्ड के खिलाड़ी। उजागर लाल इंटर कालेज से लेकर, आई हॉस्पिटल रोड तक साइकिल की सवारी। कॉलेज स्ट्राइक का वो धूम धडाका, श्यामकिशोर का पानी का बताशा। सुबह श्यामनाथ मन्दिर मे शिव दर्शन, दिन भर पढ़ते सब कॉलेज और ट्यूशन। लालबाग की वो शाम सुन्दर सी, दीक्षित जी की लस्सी मीठी सी। चुंगी से बाईपास पर बाइक से रेस लगाना, दोस्तो संग कंपनी गार्डन वो घूमने जाना। हर संडे सब दोस्तों संग पार्टी मनाना, सज धजकर फिर बाहर घूमने जाना। रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

पसन्द है मुझे

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'तेरी मोहब्बत ने आवारा बना दिया, ढलते हुये सूरज का किनारा बना दिया। उम्र भर रखा था खुद को सम्भाल कर, तेरी जुल्फो के साये ने दीवाना बना दिया। पहचान थी मेरी शक्सियत की पूरे शहर मे, तेरी चाहत मे हमने खुद को भुला दिया। जब से तू मुझे भूलकर हँसने  लगा, संग दुनिया के महफिल मे रहने लगा। मै तो खुद और खुदा से खफा होकर, तेरी यादों के हर एक लम्हे मे खोने लगा। सुन ले आज भी तू बहुत याद आया है मुझे, संग आँखों के दिल ने रुलाया है मुझे। प्यार अगर दीवानगी है तो पसंद है मुझे। जानता हूँ कि अब कहा फुरसत है तुझे।' रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

तन्हाईयां

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तन्हाईयों ने भी क्या गजब का जिन्दगी पर असर छोड़ा है, जब से किसी अपने ने दुनिया की खातिर मुंह फेरा है। उसकी याद मे एक पल भी कही अब चैन सुकून मिलता नही, उसे संग बिताये लम्हों का अब एक दौर भी याद आता नही। सोचता हूँ क्या मेरे बिन उन्हे अपनो मे खुशी मिलती होगी, उनके चेहरे पर झिलमिल सी वो प्यारी मुस्कान सजती होगी। उनकी झूठी हँसी मे छिपा हुआ दर्द कौन अब समझता होगा, क्या मेरा महबूब मुझे आज भी अपने दिल से याद करता होगा। सूरज भी ढल गया है शाम भी तो है अब हो चली, मेरे प्रियतम को अब भी तनिक भी फुर्सत न मिली। परिंदे भी चल दिये है अम्बर छोड़ अपने आशियाने की ओर, पर अब मेरे बेचैन दिल तू बता तू जायेगा अब किस ओर ?

एम.आर.टीकाकरण अभियान

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'खसरा और रुबैला तो है खतरनाक संक्रामक और जानलेवा बीमारी। खसरे की पहचान है तेज बुखार,बहती नाक,लाल चकत्ते व खांसी। रुबैला रोग ग्लूकोमा,बहरापन,मस्तिष्क व दिल की बीमारियों को है बढाता। एम.आर. से बच्चा निमोनिया,दस्त,दिमागी बुखार से पीड़ित हो जाता। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय,भारत सरकार ने है ठाना। सबको जागरुक कर इन बीमारियो को है जड़ से मिटाना। इसलिये 9 माह से 15 साल के बीच बच्चों के है एम.आर.टीका लगवाना। इसलिये सबको मिलकर खसरा और रुबैला को है हराना। इस तरह एम.आर. टीकाकरण अभियान को है सफल बनाना।' रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'