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कलयुग

शीर्षक:- कलयुग भावना शून्य हो गई,शीर्ष पर अभिमान है, कलयुग की कली पुष्पित होने को तैयार है। रिश्तों की मर्यादा शून्य, आत्म केंद्रित विचार है, बूढ़े मातु-पिता हेतु अब तो वृद्धाश्रम तैयार है। समाज गूँगा हुआ और बहरी हुई  दीवार है, झूठ,छल,प्रपंच की माया अब तो अपरम्पार है। हर शक्स आभासी दुनिया मे जोड़े मित्र हज़ार है, पर मुसीबत मे अकेले ही कूटता छाती बारम्बार है। पुरुष घर- बाहर पुरुष उत्पीडन है झेल रहा, मर्द को दर्द नही इस दम्भ मे मुंह न खोल रहा। झूठी शान- शौकत की खातिर मर्यादा तार-तार हुई, देखो! कलयुग की माया किस तरह विस्तार हुई।   कलयुग मे कलि रूप मे आकर,अब प्रभु अवतार धरो, जनमानस के अभिषेक की खातिर यह प्रार्थना स्वीकार करो। रचनाकार- अभिषेक शुक्ला सीतापुर,उत्तर प्रदेश