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Showing posts from 2021

प्रकृति

टूटकर शाख से फिर भी फूल देती है... यह प्रकृति ही तो परिवर्तन को जन्म देती है।

वज़ूद

अपना वज़ूद तलाशने वाले बराबरी की बात करते है,  जिन्हें ओस न हुई बर्दाश्त वो तूफान की बात करते है।

नया विद्यालय

मेरे प्रयास और परिश्रम से घर- घर शिक्षा दीप जले।  मेरे विद्यालय के हर बच्चें को अब नई पहचान मिले।

बाल पहेली

बाल पहेली- बूझों तो जाने   1. मोटर,साइकिल या हो कार, मेरे बिना सभी बेकार। गोल-गोल मेरा आकार, गली ,सड़क करुँ मै पार।   2. फूल - फूल मंडराती हूँ , तनिक बात उड़ जाती हूँ । रंग- बिरंगी पंखों वाली, मैं तो रानी बड़ी सयानी।   3. उछल- कूद मैं करता हूँ, कुतर- कुतर सब खाता हूँ । बिल्ली मौसी से डरता हूँ, मैं बिल के अंदर रहता हूँ।   4. धूल- धूप से आँखों को बचाता, सतरंगी यह दुनिया दिखलाता। बुढ़ापे मे जो कभी धुधला दिखता, रोशनी बढ़ाने मे यह काम आता।   रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला शिक्षक,सीतापुर   उत्तर- 1.पहिया 2.तितली 3.चूहा 4.चश्मा

Article- corruption

Article:- To what extent is corruption justified? Nowadays everyone is looking for his comfort. Everyone's aim is to get their work done easily. People are also ready to pay the price for their comfort and ease of work and this is the reason for the birth of corruption. Corruption has become a part of everyone's life nowadays. Everyone has accepted it easily. Many efforts are also being made by the government to stop corruption. Many strict rules have also been made by the government to prevent corruption. The Anti Corruption team is also catching the corrupt employees and officials on receiving complaints. They are also being put in jail with punishment.  We need to think that why is corruption still not stopping? Unless the public is aware of it, it is not possible to stop corruption. People easily give big money to the officers to do their work. They not only give money to do their work but also provide valuable things.In return, they get their work done by the officers.

One liner

जनाब! मेरे शहर का बड़ा अजीब हाल है। यहाँ मरीज मस्त और तीमारदार बेहाल है।

One liner

साहब! वज़ूद की लड़ाई मे निमन्त्रण नही भेजे जाते।  जिनका जमीर हो जिन्दा वो खुद ही समर्थन मे आ जाते।। 

सत्य व शाश्वत त्रिभुवन सरकार

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शीर्षक: त्रिभुवन सरकार  शीर्षक: सत्य व शाश्वत त्रिभुवन सरकार  हमने अपने प्रजातांत्रिक भारत देश मे अनेक बार सरकार बनती और बिगड़ती देखी है। देश, प्रदेश और पूरी दुनिया मे सुव्यवस्थित रूप से जन कल्याण,विकास,सुरक्षा, स्वास्थ्य सुविधा और शिक्षा को प्राथमिकता देते हुये विकास पथ पर सुचारू रूप से बढ़ने के लिये सरकार का गठन किया जाता है।बहुमत प्राप्त दल को संवैधानिक आधार पर सरकार बनाने का अवसर दिया जाता है। सरकार लगभग पाँच वर्ष के बाद चुनाव उपरांत पुन: परिवर्तित होने की संभावना होती है। सरकार का चुनाव जनता द्वारा मतदान के आधार पर किया जाता है। मतदाता ही अगली सरकार का निर्धारण करने वाले भाग्य विधाता होते है। इस लोक मे सरकार तो आती जाती रहेगी किन्तु तीनो लोको की सरकार स्थायी और कल्याणकारी है। जो सरकार प्रभु श्रीराम की अनुकम्पा पर चलती है।  "दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा॥ सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥"  वेद,पुराण,उपनिषद और साधु-संतों के माध्यम से उस अलौकिक शक्ति का गुणगान हम बचपन से सुनते आये है। प्रभु की लीला अपरंपार है। उसकी व्याख्या कर

जनसेवा को आतुर

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आलेख :- ' जनसेवा को आतुर '  आजकल समाचार पत्रों, सोशल मीडिया व विभिन्न संचार माध्यमों से हमें देश व प्रदेश की सरकार व अन्य पल- पल की खबरे अद्यतन प्राप्त होती रहती है। इन दिनो नेताओं के दल -बदलने की खबरें बहुत ही प्राप्त हो रही है। भारत प्रजातांत्रिक देश है,जहाँ लगभग प्रत्येक पाँच साल मे विभिन्न पदों यथा सांसद व विधायक के चुनाव होते रहते है। इन चुनावों मे राजनैतिक दल मत प्राप्त करके जीत हासिल करने के लिये जनता से बहुत वादे भी करते है। सभी अपनी पार्टी को जिताने के लिये लोकलुभावन वादों का सहारा लेते है। सभी यह वादा करते है कि वह अपनी जनता के लिये रोजगार, रोटी,कपड़ा और मकान के साथ -साथ बच्चों को अच्छी शिक्षा उपलब्ध करायेंगे। वह गरीबों की आवाज सदन तक ले जायेंगे और उनकी हर तकलीफ और दर्द को दूर करेंगे। आपको हास्यास्पद प्रतीत होगा किन्तु आज तक मेरी समझ मे यह नही आया कि ये नेता गरीबों की लड़ाई लड़ते-लड़ते खुद कैसे अमीर बन जाते है।  इनकी जनसेवा की आतुरता की तो बात ही न करिये साहब! जब इन नेताओं को लगता है कि इनकी पार्टी इस बार के चुनाव मे जीत हासिल नही कर पायेगी तो ये जयचन्दवादी दल- बदलकर अपन

राम भरोसे

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आलेख:- 'राम भरोसे' हम बचपन से ही कई बातें,मुहावरे और शब्द सुनते और बोलते हुये बड़े होते है। कुछ समय बाद कोई ऐसी बात हमारे सामने आ जाती है जिसे कालांतर मे हम भूल चुके होते है। ऐसा अभी मेरे साथ भी हुआ, जब एक दिन मैने समाचार पत्र मे हैडलाईन पढ़ी कि ' सरकार की स्वास्थ्य सेवायें राम भरोसे।' तब मुझे अचानक से अपने बचपन के दिन याद आये। जब मै जूनियर कक्षाओं मे अध्ययनरत था, तब परीक्षाओं के उपरांत जब हम सब साथी किसी विषय के प्रश्न पत्र की परीक्षा के बारे मे बात करते थे तो आपस मे एक- दूसरे से कहते थे कि पेपर तो कर आये अब अच्छे अंक मिलना और पास होना 'राम भरोसे' ही है। आज समाचार पत्र मे पढ़ने के बाद यह 'राम भरोसे' की बात पुन: मानस पटल पर जीवन्त हो गयी। 'राम भरोसे' का शायद यह अर्थ है कि आपके पास जो भी है आप उससे ही संतुष्ट रहो। जब आप उससे ज्यादा किसी चीज़,मेहनत या प्रयास की आवश्कता ही नही समझते। जब यह भावना आ जाये जो होगा ठीक होगा या जो भी होगा देखा जायेगा। रामभरोसे को परिणामों के प्रति निडर, लापरवाह या अटूट विश्वास के रूप मे भी परिभाषित किया जा सकता है। यदि राम भर

राजा टोडरमल

लेख:- ' राजस्व विभाग के जनक राजा टोडरमल '   इतिहास की पुस्तक अपने आप मे बहुत कुछ समेटे हुये है। इसमे ज्ञान और तिथियों पर अंकित पराक्रम,शौर्यगाथा के अतिरिक्त कुछ ऐसे बुद्धिजीवी,मनीषी और नवोन्मेशी पुरोधा भी है, जिनके प्रयास,प्रयोगों और खोज ने हमारे वर्तमान को उनके अतीत से जोड़ते हुये, मानव जीवन को एक नयी दिशा दी। भारत मे कई ऐतिहासिक स्थल है जो अतुलनीय है।  उत्तर प्रदेश का जनपद सीतापुर भी उस क्रम मे अपना शीर्ष स्थान स्थापित किये हुये है। यहाँ पर जन्में लोगों ने अपने कर्म और शौर्य से अपने साथ अपनी जन्मभूमि सीतापुर का नाम भी पूरे विश्व पटल पर स्वर्ण अक्षरों मे अंकित कर दिया। राजा टोडरमल इस कड़ी मे अपना शीर्ष स्थान रखते है।   राजा टोडरमल एक योद्धा, एक योग्य प्रशासक और एक अनुकरणीय वित्त मंत्री थे। राजा टोडरमल को भू राजस्व (राजस्व विभाग) का जनक माना है। इन्हे टकसाल प्रबंधन मे महारथ हासिल थी। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के जनपद सीतापुर की तहसील लहरपुर स्थित तारापुर नामक ग्राम मे सन 1500 मे हुआ था।टोडरमल खत्री जाति के थे और उनका वास्तविक नाम 'अल्ल टण्डन' था।  ये अकबर के नवरत्नों मे से

महाकवि नरोत्तमदास

लेख:- महाकवि नरोत्तमदास  हिन्दी साहित्य इतना विस्तृत और अनन्त है कि इसमे ज्ञान की पराकाष्ठा और अनन्त गूढ़ता का पार पाना सम्भव ही नही लगता है किन्तु हिन्दी साहित्य में ऐसे लोग विरले ही हैं जिन्होंने मात्र एक या दो रचनाओं के आधार पर हिन्दी साहित्य में अपना स्थान सुनिश्चित किया है। एक ऐसे ही कवि हैं, जिनका एकमात्र खण्ड-काव्य ‘सुदामा चरित’ (ब्रजभाषा में) मिलता है जो हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर मानी जाती है। हम सुदामा चरित के रचयिता, ब्रजभाषा के महाकवि नरोत्तमदास जी की बात कर रहे है। नरोत्तमदास जी जन्म कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार मे उत्तर प्रदेश के जिला सीतापुर में तहसील सिधौली के ग्राम बाड़ी में हुआ था। इनकी जन्म और मृत्यु तिथि विवादास्पद है, इसके सम्बन्ध मे कोई भी प्रमाणित स्त्रोत उपलब्ध नही है।  साहित्य और अन्य कुछ प्रमाणों के आधार पर अलग- अलग तिथियों के बारे मे लोग दावा करते है। विद्वानों के गहन अध्ययन और प्रमाणों के आधार पर इनका जन्म 1550 ई. और मृत्यु 1605 ई. के लगभग माना जाता है।  'सुदामा चरित्र' के अतिरिक्त इनकी अन्य रचनाओं ‘विचार माला’ तथा ‘ध्रुव-चरित’ और ‘नाम-संकीर्तन’ क

आचार्य नरेंद्र देव

लेख:- 'सीतापुर के आचार्य नरेंद्र देव'   आचार्य नरेंद्र देव भारत के प्रमुख स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, पत्रकार, साहित्यकार एवं शिक्षाविद थे। वे कांग्रेस समाजवादी दल के प्रमुख सिद्धान्तकार थे। देश को स्वतंत्र कराने का जुनून उन्हें स्वतंत्रता आन्दोलन में खींच लाया और भारत की आर्थिक दशा व गरीबों की दुर्दशा ने उन्हें समाजवादी बना दिया। समाजवाद के पितामह आचार्य नरेंद्र देव का जन्म 31अक्टूबर, 1889 ई. को सीतापुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनके पिता का नाम बलदेव प्रसाद था, जो एक प्रसिद्ध वकील थे। नरेन्द्र जी के बचपन का नाम अविनाशी लाल था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा पैतृक जनपद फैज़ाबाद मे हुयी। इन्हें संस्कृत, हिन्दी के आलावा  कई भाषाओँ का ज्ञान था। जिसमे अंग्रेज़ी, उर्दू, फ़ारसी, पाली, बंगला, फ़्रेंच और अन्य भाषाएँ भी शामिल हैं। इन्होने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. की डिग्री प्राप्त की और पुरातत्व के अध्ययन के लिए काशी के क्वींस कालेज चले गए और सन 1913 में  एम.ए. संस्कृत से किया। अपने पिताजी की इच्छा पर इन्होने वकालत की पढ़ायी की। इसके बाद सन 1915 से लेकर 1920 तक फैजाबाद में रहकर वकालत की।

शचीन्द्रनाथ सान्याल

लेख:- ' शचीन्द्रनाथ सान्याल '   सैकड़ों ऐसे क्रांतिकारी हैं, जिनको इतिहास से निकाल दिया जाए तो जिन बड़े चेहरों को आप जानते हैं, पूजते हैं उनका भी अस्तित्व शायद ही होता। देश में आज से 92 साल पहले राइट टू रिकॉल का आइडिया कानपुर शहर में बैठकर कई क्रांतिकारियों के बीच बनाया था। जी हाँ, आज हम बात कर रहे है आजादी के मतवाले महान क्रांतिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल की। शचीन्द्रनाथ सान्याल भारत की आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाले प्रसिद्ध क्रांतिकारियों में से एक थे। वे राष्ट्रीय व क्रांतिकारी आंदोलनों में सक्रिय भागीदार होने के साथ ही क्रान्तिकारियों की नई पीढ़ी के प्रतिनिधि भी थे। उनका जन्म 1893 में वाराणसी में हुआ था।शचीन्द्रनाथ सान्याल के पिता का नाम हरिनाथ सान्याल और माता का नाम वासिनी देवी था। शचीन्द्रनाथ के अन्य भाइयों के नाम रविन्द्रनाथ, जितेन्द्रनाथ और भूपेन्द्रनाथ थे। शचीन्द्रनाथ का शुरुआती जीवन देश की राष्ट्रवादी आंदोलनों की परिस्थितियों में बीता। 1905 में "बंगाल विभाजन" के बाद खड़ी हुई ब्रिटिश साम्राज्यवाद विरोधी लहर ने उस समय के बच्चों और नवयुवकों को राष्ट्रवाद की शिक्ष

बैशाख पूर्णिमा

शीर्षक:- वैशाख पूर्णिमा  वैशाख पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। इस दिन किसी भी पवित्र नदी में स्नान किया जाता है। इसके बाद श्री हरि विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन धर्मराज की पूजा करने की भी मान्यता है। यह मान्यता हैं कि सत्यविनायक व्रत से धर्मराज खुश होते हैं। धर्मराज मृत्यु के देवता हैं, इसलिए उनके प्रसन्‍न होने से अकाल मौत का डर कम हो जाता है। यह भी मान्यता है कि पूर्णिमा के दिन तिल और चीनी का दान शुभ होता है। इस दिन चीनी और तिल दान करने से अनजान में हुए पापों से भी मुक्ति मिलती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, पूर्णिमा तिथि का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से मनुष्य के मन और शरीर पर पड़ता है। ज्योतिष में चंद्रमा को मन और द्रव्य पदार्थों का कारक माना जाता है। क्योंकि इस दिन चंद्रमा अपने पूर्ण रूप में होता है। इसलिए आज के दिन व्यक्ति के मन पर पूर्णिमा का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। वहीं मनुष्य के शरीर में लगभग 80 फीसदी द्रव्य पदार्थ है।  अतः पूर्णिमा को चंद्र ग्रह की पूजा का विधान है, ताकि मन और शरीर पर चंद्रमा का शुभ प्रभाव पड़े। इसे बुद्ध पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। बुद

दहलीज़

कहानी:- 'दहलीज़'  घूंघट के अंदर से सिसकियों की आवाज आ रही थी। सभी की आँखें नम थी, जब प्रिया ने कहा कि, 'मै आज अकेले उस दहलीज़ पर कैसे कदम रख पाऊँगी।'  अभी दो साल पहले की ही बात है। प्रिया अपनी बुआ के घर गयी। उसी दिन उसकी बुआ के जेठानी के मायके से कुछ लोग आये हुये थे। उनके साथ प्रिया की हम उम्र एक लड़का आया हुआ था। प्रिया उसे देखकर आकर्षित हो गयी। उसे पहली ही निगाह मे उससे प्यार हो गया। सब मेहमान चले गये लेकिन वह लड़का वहाँ रुका रहा। प्रिया ने अपनी बुआ से पूछा तो पता चला कि वह लड़का उनकी जेठानी का भतीजा कीर्तन है। जो किसी काम के सिलसिले से यहाँ आया है।  अगली सुबह प्रिया नाश्ता लेकर कीर्तन के कमरे मे गयी। कीर्तन लैपटॉप पर कुछ काम कर रहा था। प्रिया उसे देखती ही रह गयी, लड़खड़ाती आवाज मे बोली कि आप नाश्ता कर लीजिये। कीर्तन ने जब प्रिया को देखा तो वह उसे देखता ही रह गया जैसे उसे प्रिया से पहली ही नजर मे प्यार हो गया। दोनो ने साथ मे बैठकर बातें की। दोपहर मे कीर्तन अपने काम से बाहर चला गया और जब देर रात तक नही आया तो प्रिया ने बुआ से नम्बर लेकर उसे कॉल की। प्रिया- आप कहाँ हो, कब तक आ

अनदेखा न करे

लेख:- अनदेखा न करे  आजकल सोशल नेटवर्किंग के जमाने मे अचानक से हमारे मोबाइल स्क्रीन पर मैसेज डिस्प्ले होता है। जिसमे लिखा होता है यह ग्यारह लोगो को फॉरवर्ड करे तो आपके बिगड़े काम बन जायेगे, दुवाएं कबूल होगी, मन्नत पूरी हो जायेगी। इनमे इसके अतिरिक्त बाकायदा ये धमकी और डर भी दिखाया जाता है कि यदि आप यह वीडियो या संदेश अग्रसारित नही करते है तो आपका अहित हो जायेगा। हम लोग भी बड़े सयाने है, हम भी बिना देखे और सोचे समझे इसे अग्रसारित कर देते है। ऐसा करते वक्त अधिकतर लोग उन ग्यारह लोगो को चुनते है जिनसे कम बात होती है या दूर की जान पहचान होती है। हम यह सब डर की वजह से करते है कि वास्तव मे हम यह सोचते है कि ऐसा न करने से हमारी मनोकामना पूर्ण नही होगी अथवा हमारा अहित हो जायेगा? यह एक ज्वल्लंत प्रश्न है। इतना ही नही इन संदेशों और वीडियो मे आपको कसम भी खिलायी जाती है कि यदि आप अपनी माँ या परिवार से प्रेम करते है तो जल्द ही संदेश फॉरवर्ड करे। हम इतने मूर्ख है या बुद्धिजीवी है जो हम ऐसा करते है और दूसरो के पास ऐसे संदेश भेजकर उन्हे भी ऐसा करने को मजबूर या प्रेरित करते है। ऐसा नही है कि यह सब सोशल मीडि

कोई कह दो

शीर्षक:- 'कोई कह दो'  कोई कह दो उनसे कि ख्याल रखे अपना,  अकेले मे यूं ही मायूस नही हुआ करते।  जप कर अतीत की माला क्या मिलेगा बोलो,  खुद को हर पल यूं परेशान नही करते।  दूरी बढ़ी है पर खुद पर तो यह एतबार रखो,  जो है तुम्हारा उस पर यूं शक नही करते।  मिलना- मिलाना कम हो गया तो क्या हुआ,  अब तुम अपनी धड़कन पर विश्वास नही करते।  दौड़कर आ जायेंगे हम तुम्हारी बाँहों मे,  अब क्या अपनी आवाज पर भरोसा नही करते।  खुश रहो तुम हर पल जीवन को जी भर जियो,  अतीत था,वर्तमान है तो भविष्य का क्यों वरण नही करते।  कोई कह दो उनसे कि ख्याल रखे अपना।  अकेले मे यूं ही मायूस नही हुआ करते।।  रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

लिख दूँ हकीकत

शीर्षक:- 'लिख दूँ हकीकत'  'लिख दूँ हकीकत तो सारे अर्थ और आयाम बदल जायेगे,  गूढ़ शब्दों की अविरलता से भी सारे पट खुल जायेगे।  खुद को खुदा समझते है जो इस दौर मे सारे जमाने का,  हम महफ़िल मे आ गये तो शोहरत के पैमाने झलक जायेगे।  कह दो उनसे कि वो अब अपने किरदार मे ही रहे,  बिगड़ गये जो तेवर तो वो इतिहास मे बदल जायेगे।  स्याही की कालिमा भी सब कुछ उजागर करती है,  हुयी जो चूक तो कारनामें अखबार मे छप जायेगे।  मैं न मंजिल हूँ और न ही अनन्त और असीम रास्ता,  किन्तु जो साथ चले तो खुद के कदम भी भूल जाओगे।  सब्र से खुद की हकीकत को समझने का प्रयास करो,  खुद ही खुद से खुद के कामों पर अनन्त विश्वास रखो।  मंजिल मिलेगी किन्तु छद्मवेश का तुम तिरस्कार कर दो,  अन्यथा तुम्हारे जीवन के सारे उद्देश्य निरर्थक हो जायेगे।  लिख दूँ हकीकत तो सारे अर्थ और आयाम बदल जायेगे।।' रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

समर्पित अभिषेक

क्या खोया क्या पाया इस बात पर हर रोज क्या विचार करे, विरह वेदना झेल रहा जो वो मिलन की कैसे बात करे।  नित नूतन कलियाँ जब पुष्प बने तो पौधें क्यूँ अभिमान करे, माली के हाथों पुष्पित हो अजनबियों का क्यूँ मान करे।  काँटो का झेले दंश फिर भी खिलकर सुमन क्यों मुस्कराये,  जग हँसे या रोये पर हर दशा मे क्यों कुसुम आगे आये।  अरमानों की बलिवेदी पर कब तब अभिषेक समर्पित होगा, हृदय में सबके क्या फ़िर मानवता का बीज अंकुरित होगा।