दहलीज़
कहानी:- 'दहलीज़'
घूंघट के अंदर से सिसकियों की आवाज आ रही थी। सभी की आँखें नम थी, जब प्रिया ने कहा कि, 'मै आज अकेले उस दहलीज़ पर कैसे कदम रख पाऊँगी।'
अभी दो साल पहले की ही बात है। प्रिया अपनी बुआ के घर गयी। उसी दिन उसकी बुआ के जेठानी के मायके से कुछ लोग आये हुये थे। उनके साथ प्रिया की हम उम्र एक लड़का आया हुआ था। प्रिया उसे देखकर आकर्षित हो गयी। उसे पहली ही निगाह मे उससे प्यार हो गया। सब मेहमान चले गये लेकिन वह लड़का वहाँ रुका रहा। प्रिया ने अपनी बुआ से पूछा तो पता चला कि वह लड़का उनकी जेठानी का भतीजा कीर्तन है। जो किसी काम के सिलसिले से यहाँ आया है।
अगली सुबह प्रिया नाश्ता लेकर कीर्तन के कमरे मे गयी। कीर्तन लैपटॉप पर कुछ काम कर रहा था। प्रिया उसे देखती ही रह गयी, लड़खड़ाती आवाज मे बोली कि आप नाश्ता कर लीजिये। कीर्तन ने जब प्रिया को देखा तो वह उसे देखता ही रह गया जैसे उसे प्रिया से पहली ही नजर मे प्यार हो गया। दोनो ने साथ मे बैठकर बातें की।
दोपहर मे कीर्तन अपने काम से बाहर चला गया और जब देर रात तक नही आया तो प्रिया ने बुआ से नम्बर लेकर उसे कॉल की। प्रिया- आप कहाँ हो, कब तक आओगे?
कीर्तन- मैं आज यही शहर के होटल मे रुकूँगा। कल सुबह आऊँगा।
प्रिया को तो वह रात काटनी मुश्किल सी हो गयी।
जब कीर्तन अगली सुबह घर आया तो प्रिया सबसे पहले आकर मिली। उसने कीर्तन पर गुस्सा भी किया कि आप बिना बताये वहाँ क्यों रुक गये?
कीर्तन को प्रिया की यह बात थोड़ी अजीब लगी कि वह ऐसा क्यों कर रही। लेकिन कीर्तन भी समझ गया कि शायद प्रिया को उससे प्यार हो गया।
इससे पहले प्यार का इज़हार होता कीर्तन वहाँ से अपने घर लखनऊ चला गया। कीर्तन के जाने के बाद प्रिया का मन नही लग रहा था। वह बहुत बैचेन महसूस कर रही थी। तभी उसके फोन की घंटी बजी। उधर से आ रही आवाज कीर्तन की थी, उसकी आवाज़ सुनकर प्रिया खुश हो गयी। दोनो की रोज बाते होने लगी। बातें हुआ,इज़हार हुआ और दोनो ने एक- दूसरे को जीवनसाथी बनाने का फ़ैसला कर लिया।
हर प्रेम कहानी के परवान चढ़ने मे जो परेशानी और मुसीबते होती है वह सब इसमें भी अछूती नही थी। कीर्तन अपने अमीर माँ-बाप का इकलौता बेटा था और उसकी एक छोटी बहन अपर्णा थी। दूसरी तरफ प्रिया गरीब किसान की बेटी थी। बुआ की तरफ के रिश्ते भी दोनो के प्यार के बीच बड़ी दीवार थे। कीर्तन के कहने पर प्रिया ने जब अपने घर पर शादी की बात की तो उसके घरवालों ने उसका घर से निकालना बन्द कर दिया और खूब खरी- खोटी सुनाई। ऐसा ही कीर्तन के साथ भी हुआ।
प्रिया और कीर्तन अगले छ: माह तक सिर्फ फ़ोन पर ही बात करते रहे।
इधर कीर्तन के बहुत से शादी वाले आते रहे और वह सबको मना करता रहा। इसी बीच कीर्तन का चयन बैंक अधिकारी के रूप मे प्रिया के शहर लखीमपुर मे हो गया। अब दोनो का मिलना- जुलना फिर से शुरु हो गया और नजदीकियां बढ़ती चली गयी।
कीर्तन पर कही और से शादी करने का दबाव उसके घरवाले बढ़ाते गये। एक दिन कीर्तन ने अपने घर पर अपनी बुआ को बुलाया और सभी घरवालों से कह दिया कि वह शादी करेगा तो प्रिया से ही करेगा।
कई दिनो तक घर मे कलह मची रही किन्तु अन्त मे इकलौते बेटे के आगे माँ- बाप लाचार हो गये। उन्होने कीर्तन से कहा कि तुम्हारी शादी तो प्रिया से करा देंगे लेकिन वह बहू बनकर इस घर मे नही आयेगी। तुम दोनो इस घर से कही बाहर ही रहोगे। कीर्तन इस बात पर सहमत हो गया और मन ही मन निश्चय किया कि वह लखीमपुर मे फ्लैट लेकर प्रिया के साथ रहेगा।
दोनो की शादी पिछ्ली मई मे हो गयी। दोनो खुशी से लखीमपुर मे रहने लगे। कीर्तन अपनी बैंक की नौकरी करता। प्रिया घर का ध्यान रखती और दोनो शाम को साथ बाजार टहलने जाते। दोनो बहुत खुश थे। सब कुछ सही चल रहा था। लेकिन न ही कीर्तन और न ही प्रिया के घर से कोई उनका हालचाल पूछने आया। बस कीर्तन की छोटी बहन का कभी - कभी फ़ोन आ जाता था।
समय बीतता गया और जब शादी का लगभग एक वर्ष पूरा होने को आया तब कीर्तन ने प्रिया से कहा कि हम दोनो चलकर मम्मी और पापा से क्षमा माँग लेंगे और उनसे कहेंगे कि हमे स्वीकार लो। आप लोगो के बिन जिन्दगी अधूरी -सी है। प्रिया की आँखें भर आयी और उसने भी अपने ससुराल के घर और दहलीज़ को देखने की इच्छा जाहिर की।
अगले शनिवार को दोनो की वैवाहिक जीवन की प्रथम वर्षगांठ थी। दोनो उसकी तैयारी मे जुटे थे। तभी बैंक के काम के सिलसिले मे गुरुवार को कीर्तन को कानपुर जाना हुआ। प्रिया अकेले घर पर थी। वह अपने साजन और ससुराल के सपने बुन रही थी। उसे अपने पति कीर्तन के साथ अपनी ससुराल को जो जाना था।
रात मे प्रिया ने कॉल की तो कीर्तन ने बताया कि वह कानपुर से वापस आ रहा है और कल सुबह उसके पास होगा।
किन्तु ईश्वर को कुछ शायद और ही मंजूर था। कीर्तन की गाड़ी का ऐक्सीडेंट रास्ते मे हो गया। उसकी गाड़ी मे ट्रक ने टक्कर मार दी और वह गहरी खाई मे जा गिरी।
कीर्तन के बहुत चोट आयी है, ज्यादा खून बहने के कारण वह कोमा मे जा चुके है। उन्हे लखनऊ के ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया गया है।
पुलिस ने जब यह सूचना प्रिया को दी तो उसके पैरों के नीचे से जैसे जमीन खिसक गयी हो।
प्रिया अकेली थी उसके पास कीर्तन के अलावा कोई नही था। अभी शादी का एक साल भी पूरा नही हुआ। उस पर दुखों का इतना बड़ा संकट टूट पड़ा। वह किससे,कैसे और क्या बताये? हजारों बाते उसके जहन मे पल भर मे कौंध गयी।
उसने बड़ी हिम्मत करते हुये अपनी ननद अपर्णा से कीर्तन के ऐक्सीडेंट के बारे मे बताया।
यह सुनते ही उसके ससुराल मे हडकंप मच गया। सब कीर्तन के इलाज के लिये अस्पताल पहुँचे। रात मे ही अकेली प्रिया बस से लखनऊ के लिये निकली। रास्ता कट नही रहा था और आँसू थम नही रहे थे।
अपर्णा ने बताया कि इलाज़ चल रहा है और भईया की स्थिति मे सुधार है। इस बात ने प्रिया के रास्ते को थोड़ा आसान सा कर दिया।
वह मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि हे प्रभु! आप मेरे कीर्तन को जल्दी ठीक कर दो। उनके बिना मेरा है ही कौन?
जब प्रिया अस्पताल पहुँची तो उसे देखते ही उसकी सास और ननद ने गले से लगा लिया।
प्रिया ने मन मजबूत करते हुये आईसीयू मे लेटे हुये अपने कीर्तन को देखा और जोर - जोर से रोने लगी। कीर्तन कोमा मे था और उसके शरीर पर लगे हुये घाव उसे अपनी आत्मा पर लगी हुयी असहनीय पीड़ा से प्रतीत हुये और वह गस खाकर जमीन पर गिर पड़ी।
जब प्रिया को होश आया तब अपर्णा उससे कह रही थी कि भाभी घर चलो।
प्रिया की सास ने जब यह बात कही तो घूंघट की आड़ से सिसकियों के बीच लड़खड़ाती आवाज मे प्रिया ने कहा, " मै इनके बिना ससुराल की दहलीज़ पर कैसे अपना पहला कदम रख पाऊँगी ?"
बहुत ही खूबसूरत और भावुक कथानक
ReplyDeleteधन्यवाद
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