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Showing posts from June, 2018

सब कहते है

"सत्तर प्रतिशत जनसंख्या है कृषि पर आधारित, फिर भी किसान हित के सब मुद्दे है विवादित। हर दल फ़सल कर्ज माफी का वादा कर रहा हैं, पर वास्तविकता के धरातल पर कुछ भी न दिख रहा है। फिर भी सब कहते है कि मेरा देश बदल रहा है।। किसान खाद,पानी और बीज की समस्या झेल रहा है, महंगे डीज़ल और मौसम की मार झेल रहा है। अपनी फ़सल का न उसे उचित दाम मिल रहा है, कर्ज में डूबा किसान निरन्तर फांसी लगा रहा है। फिर भी सब कहते है कि मेरा देश बदल रहा है।। देश मे गैर मुल्क के नारे लग रहे है, अब्दुल हमीद,चंद्रशेखर आजाद की धरा पर देशद्रोही पल रहे है। कश्मीर में जवानों पर पत्थर फैके जा रहे है, जो फैक रहे है वो माननीयों द्वारा बच्चे समझे जा रहे हैं। फिर भी सब कहते हैं कि मेरा देश बदल रहा है।। महिला सुरक्षा पर कई सवाल उठ रहे हैं, दहेज के लिए उनके जनाजे उठ रहे है। अब तो छोटी बच्चियो की भी अस्मत लूट रही है, अब तो कोई भी महिला न अपने को सुरक्षित समझ रही है। फिर भी सब कहते है कि मेरा देश बदल रहा है।।" अभिषेक शुक्ला सीतापुर मो.न.7007987300

चच्चा की फटफटिया

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"नई सौखिनी महिया चच्चा लाये हमार फटफटिया, बेचि डारिन घर की सबइ लौटिया थरिया। कबहु हिया कबहु हुआ वहिका चलावति हई, चाची कहिया बैठारि केरे खूब घुमावति हई। टॉप गियर महिया वहिका खूब चलावति हई, भीड़ देखी केरे हारन जोर बजावति हई। हमहू चच्चा तेने करेन एक दिन विनतिया, कि हमहूं कहिया चलावईक दई देउ अपनि फटफटिया। लइकई चलि दिहेन हम वहिका रोड़ पर, हम हूँ रहन  वहि दिन पूरे जोश पर। तबहे समहे तेने आई गवा एक लरिका, हम मारेंन बिरिक वहू तऊ बचिगा। हम खाले पर हमरे ऊपर रहई फटफटिया। हम तऊ बचिगेंन पर चकनाचूर हुई गई चच्चा केरि फटफटिया।।" अभिषेक शुक्ला सीतापुर मो.न. (सीतापुर की ग्रामीण अर्थात आंचलिक भाषा मे लिखी गयी रचना) अच्छी लगे तो शेयर भी करे।

जान भी लिया

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"दस्तूर दुनिया का निराला है यहाँ, कौन किसका प्यारा है यहाँ। सबने देखा और आपने जान भी लिया , अपनो की नफरतों को पहचान भी लिया। प्रेम , रिश्ते व नाते सब केवल ढाढ़स बंधाते है, अवसर पड़ने पर सब वादे से मुकर जाते है। आपकी अच्छाईयो को कोई समझे कैसे, सब आपकी एक गलती के इंतजार में बैठे हैं। मुँह मोड़ लेंगे अपने ही पल भर में, ये तो पहले से ही मंसूबे बनाये बैठे है। चले जिनकी खुशी की खातिर आप पत्थरों पर, वो तो आपके लिए शोले जलाये बैठे है। कोई देता नही यहाँ गलतियों की माफ़ी, सब दिल मे नफ़रत की शमा जलाये बैठे हैं। पल भर में बदल जाते है अपने यहाँ, सबने देखा और आपने जान भी लिया।" -अभिषेक शुक्ला सीतापुर शिक्षक व साहित्य साधक

माँ

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शीर्षक:- माँ का दुलार "जो नज़रों से परख ले वो माँ होती है। दर्द को दिल मे जो रख ले वो माँ होती है। कर कोई काम तू बुरा  खुदा से चाहे हो छुपा, जो तेरा चेहरा भांप ले, वो माँ होती है।                          जो कष्ट तेरे छीन ले चुभते कांटे बीन ले तुझपे प्यार वार दे, वो माँ होती है।।                      जब भी तू उदास हो भले कोई ना पास हो जो सदैव साथ दे , वो माँ होती है।                          जो तुझको जन्म दे तेरे मुख को चूम ले हो तू कष्ट में तो रोती है, वो माँ होती है।। अभिषेक शुक्ला " सीतापुर "