जान भी लिया

"दस्तूर दुनिया का निराला है यहाँ,
कौन किसका प्यारा है यहाँ।
सबने देखा और आपने जान भी लिया ,
अपनो की नफरतों को पहचान भी लिया।
प्रेम , रिश्ते व नाते सब केवल ढाढ़स बंधाते है,
अवसर पड़ने पर सब वादे से मुकर जाते है।
आपकी अच्छाईयो को कोई समझे कैसे,
सब आपकी एक गलती के इंतजार में बैठे हैं।
मुँह मोड़ लेंगे अपने ही पल भर में,
ये तो पहले से ही मंसूबे बनाये बैठे है।
चले जिनकी खुशी की खातिर आप पत्थरों पर,
वो तो आपके लिए शोले जलाये बैठे है।
कोई देता नही यहाँ गलतियों की माफ़ी,
सब दिल मे नफ़रत की शमा जलाये बैठे हैं।
पल भर में बदल जाते है अपने यहाँ,
सबने देखा और आपने जान भी लिया।"

-अभिषेक शुक्ला सीतापुर
शिक्षक व साहित्य साधक

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