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Showing posts from July, 2018

सुमिरन तेरा करुँ

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सभी हनुमान भक्तो को अभिषेक शुक्ला द्वारा रचित व अमर उजाला में प्रकाशित काव्य रचना "सुमिरन तेरा करूं" समर्पित है। इसे आप प्रतिदिन प्रभु आरती के रूप  में भी गा सकते है। श्री बजरंगबली के चरणों मे अर्पित है....ये पंक्तियां... 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 "कर दो प्रभु कृपा मैं सुमिरन तेरा करूँ, दे दो मुझे वरदान मैं हनुमान सा बनूँ। आदेश पर तेरे दुष्टों का संहार मैं करूँ, माता सीता की खातिर लंका दहन करूँ। हो कृपा तेरी तो मैं भी हनुमान सा बनूँ, कर दो प्रभू कृपा मैं सुमिरन तेरा करूँ।। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 दे दो मुझे वरदान मैं प्रह्लाद सा बनूँ, प्रभु कथा का वर्णन संसार मे करू। मुझ पर कर कृपा तू धरा पर अवतार धर ले, इस भक्त के तू पल में सारे कष्ट हर ले। हो कृपा तेरी तो प्रहलाद सा बनू, कर दो प्रभू कृपा मैं सुमिरन तेरा करूँ।। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 दे दो मुझे वरदान मैं बालि सा बनूँ, निज हित भूलकर मैं दान कर सकूं। जो दीन है,दुखी है,संग उनके परोपकार कर सकूं, संसार मे रहकर मैं भी कुछ उपकार कर सकूं। दे दो मुझे वरदान मैं बालि सा बनूँ, कर दो प्रभू कृपा मैं सुमिरन तेरा करूँ।। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

प्राइमरी का मास्टर

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"हर एक काम निपुणता से करता हूँ, फिर क्यूं सबकी आँखो को खलता हूँ, गाँव -गाँव शिक्षा की अलख जगाता हूँ , नित प्रति बच्चो को सबक सिखाता हूँ । गर्व मुझे कि मै प्राइमरी का मास्टर कहलाता हूँ।। सबको स्वाभिमान से रहना सिखलाता हूँ, सबको हर एक अच्छी बात बताता हूँ । प्रतिदिन मेन्यू से एम.डी.एम बनवाता हूँ, खुद चखकर तब बच्चो की थाल लगवाता हूँ । गर्व मुझे कि मैं प्राइमरी का मास्टर  कहलाता हूँ ।। सोमवार को ले थैला मै बाज़ार जाता हूँ, और मौसमी फल खरीद बच्चो को खिलवाता हूँ । बुधवार को शुद्ध दूध बच्चो हेतु मंगवाता हूँ, फिर उन्हे दे गिलास पूरी मात्रा पिलवाता हूँ । गर्व मुझे कि मैं प्राइमरी का मास्टर कहलाता  हूं ।। बच्चो की ड्रेस की माप भी खुद करता हूँ, जल्दी टेलर से सिलाकर फिर उनका वितरण करता हूँ । प्राप्त पुस्तके ,जूते,मौजे एन.पी.आर.सी से खुद ढोकर लाते है, कर वितरण उनका हम फूले नहीं समाते है। गर्व मुझे कि मै प्राइमरी का मास्टर कहलाता हूँ ।। सरकार हो निष्फल जिसमे वो काम भी हम करते है, जाड़ों मे हम बजट मे स्वेटर वितरित करते है। चुनाव,जनगणना हम ही सब  करते है, आपदा बचाव हेतु

सिखा जाओ

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"अब कौन बंधा है यहाँ प्रेम के धागों से , सब जुड़े है यहाँ निज स्वार्थ के भावो से। अब तो किसी राधा के होठों पर गीत कहा सजते, इस कलयुग मे श्रीकृष्ण अब कहा मिलते। मीराबाई के भजन भी अब कहानी हो गयी, अब कौन यहाँ प्रभू दर्शन की दीवानी हो गयी। संसार अब तो छल प्रपंच से भर गया, प्रेम,परोपकार,आदर्श यह जनमानस भूल गया। हे प्रभु!धरती पर अवतार धर आ जाओ। सम्पूर्ण विश्व को प्रेम व मर्यादा सिखा जाओ।।" अभिषेक शुक्ला "सीतापुर "

पढ़े चलो,बढ़े चलो

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शीर्षक:-"पढ़े चलो,बढ़े चलो "कर्त्तव्य पथ पर बढ़े चलो, मन लगाकर पढ़े चलो। स्कूल समय से जाना  है, न करना कोई बहाना है। हम नित नवीन सबक अब सीखेगे, हम आपस मे प्रेम से रहना सीखेगे। सत्य व सद्गुण हमे अपनाना है, बुराईयो को खुद से दूर भगाना है। बड़ों का आदर हमे खूब अब करना है, पढ़ लिखकर आगे हमे अब बढ़ना है।।" रचनाकार- *अभिषेक शुक्ला "सीतापुर"

अजनबी

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"हम न उनके अपने हुये न अजनबी रहे, इस जिन्दगी के खेल भी निराले रहे। हम अपनो की तरह उन पर हक जताते रहे, वो गैर मानकर मेरी हरकत पर मुस्कुराते रहे। वो खुश थे हमसे जब तक हम बेगाने रहे, हुआ सितम मुझ पर जब हम उनके दीवाने हुये। अपनो की महफिल मै मुझे गैर बना डाला, नजरो से दूर जाने का भी इशारा कर डाला। उन्हे अपनी गलतियो का एहसास भी न हुआ, और मुझ पर बेवफा होंने का भी इल्जाम लगा डाला।।" *अभिषेक शुक्ला "सीतापुर"*

भूल जाओ मुझे

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"प्यार करके कहते हो कि भूल जाओ मुझे, कैसे चला जाऊँ मै छोड़कर तुझे। क्या तुम मुझे दूर करके खुश रह लोगो, क्या तुम मेरे बिना अपनो संग रह लोगे। बस गया हूँ मै तेरी रूह मे इस कदर, फिर भी क्या मेरा प्यार रह जायेगा बेअसर। तडप उठोगे तुम जब भी मेरा नाम आयेगा, उस पल प्यार का हर लम्हा तुम्हे याद आयेगा। भूल जाने की नसीहत हो सके तो मुझे न दो। दर्द बेशुमार दिया दुनिया ने हो सके तो तुम न दो।।" *अभिषेक शुक्ला "सीतापुर"*

हिन्दूस्तान

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शीर्षक:-"हिंदुस्तान" "हम हिन्दू है हिन्दूस्तान की तस्वीर बदल देंगे, उठी जो नजर बुरी उसकी तकदीर बदल देंगे। हम माँ भारती के सपूत मानवता हमारा धर्म है, देश और समाज सेवा ही सबसे पावन कर्म है। क्या मजाल है दुश्मन की जो बुरी नजर हम पर डाले, माँ भारती की रक्षा हेतु हर पल लिये खड़े है हम भाले। पावन धरा पर पले बड़े कितने है वीर यहाँ, है मजाल किसकी जो डाले बुरी नजर यहाँ वहाँ । भारत मे कई भरत यहाँ शावकों संग खेलते है, वीर भूमि मे रण बान्कुरो के निश दिन लगते मेले है। शत शत नमन वन्दन हृदय से "अभिषेक" वीरो को करता है। गर्व उसे कि वो भी महान "हिंदुस्तान" मे रहता है।।" *अभिषेक शुक्ला "सीतापुर"*

वक्त-ए-तन्हाई

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"आज तो अपनो ने ही दर्द की दुआ की है, तडपे तू बहुत ये खुदा से मिन्नते की है। समझता था मरहम जिसे उसी ने जख्म दे दिये, आज वो भी मुझसे नजरे चुरा कर चल दिये। जिन्दगी है जी लूँगा मगर सोचो कैसे, जब अपने ही तोहमत लगाकर चल दिये। ना थी ख्वाहिश मुझे की शाबाशियां मिले, पर न अपनो की नजरो मे गुस्ताखियां मिले। सिला तो गलत मिला मुझे मेरी वफाई  का। बोलो कैसे कटेगा अब वक्त-ए- तन्हाई का।।"

सोचता रह गया

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"सुकून की तलाश में हम दर बदर हो गये, जुल्म हुआ ऐसा की घर से भी दूर हो गये। पल भर न थमी जिंदगी राहत  के लिए, मिला न कोई हमदम आफत से बचाने के लिए। अपनो की क्या हम तो गैरों की भी फिक्र करते रहे, पर मुझे जिंदगी के हर मोड़ पर धोखे मिलते रहे। कोई समझेगा मुझे देगा सुकून, यही सोचकर हम आगे बढ़ते गये। पर टूटा भ्रम मेरा निश्चित ये हो गया, कौन है किसका यहाँ ये परिलक्षित हो गया। मैं विचित्र या ये है मायावी दुनिया, मैं तो दिन रात यही सोचता रह गया।।" अभिषेक शुक्ला "सीतापुर"

मैं भी सीख लूँगी

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"कौन है दोषी कौन है शापित मेरी इस दुर्दशा का, मेरे साथ हो रहा ऐसा क्या कोई पाप पूर्वजन्म का। मैंने तो आँख थी खोली दुनिया मे सबकी तरह, तो ये हाल क्यो मेरा खुदा भी क्यो बेपरवाह। जन्म पर मेरे माँ ने खुशी से मुझे चूमा था, फिर मुकद्दर का पहिया ये कैसा घूमा है। जो जाते है स्कूल वो करते है क्या ऐसा, मैं रोटी के लिए भटक रही मैंने किया क्या ऐसा। मुझे आता है अपने हुनर को आजमाना, मुझे दे दो मौका मैं भी पढ़ना सीख लूंगी। मुझे आता है अपने पंखों को फड़फड़ाना, तुम दाना तो दो मैं भी उड़ना सीख लूँगी।।" *अभिषेक शुक्ला "सीतापुर"* शिक्षक,विचारक,सहित्यसाधक

सफ़र-ए-जिंदगी

सफ़र पर निकला है मुसाफ़िर मुट्ठियां खोलकर, हो गया वो सबका जो मिला मीठे लब्ज बोलकर। सफ़र नही है आसान उलझने बहुत है, हर कदम पर मुसीबतों के दौर बहुत है। मुसाफ़िर निकल पड़ा है अनजानी राह पर, वो मंजिल भी नही बदल सकता सब कुछ चाहकर। गम -ए-मुश्किलों में खुद को आजमाना ही पड़ेगा, दृढ़ निश्चय से कदम बढ़ाना ही पड़ेगा। सफ़र -ए-जिंदगी तय करना नही है आसान, दर्द हँसकर सह लो न लो कोई एहसान। अपने सफर को खुशमिजाजी से बेहतर बना लीजिए, भूल कर गिले शिकवे अपनो को अपना लीजिये। सफ़र-ए-जिंदगी को जिंदादिली से तय कीजिये। हमसफ़र हो गर रूठा तो हँसकर मना लीजिये।। *अभिषेक शुक्ला "सीतापुर"* शिक्षक,विचारक व साहित्य साधक

किसको क्या

चिंता,वेदना और पीड़ाओ ने मुझे घेर लिया है, आज तो अपनो ने ही मुँह फेर लिया है। जीने की अब तो कोई हसरत न बची, बेशुमार वफ़ा के बदले नफरत मिली। प्रेम के अनन्त पलो का न कोई महत्व यहाँ, न कोई अपना न ही वफ़ा यहाँ। मुसाफिर अब अंधेरी दुनिया की ओर रवाना हुआ, उसकी वफ़ा का यहाँ न कोई दीवाना हुआ। नफरतों का सिलसिला उसे उसी से हो गया। नब्ज थमे या चले यहाँ किसको क्या हो गया।। *अभिषेक शुक्ला "सीतापुर"