वक्त-ए-तन्हाई
"आज तो अपनो ने ही दर्द की दुआ की है,
तडपे तू बहुत ये खुदा से मिन्नते की है।
समझता था मरहम जिसे उसी ने जख्म दे दिये,
आज वो भी मुझसे नजरे चुरा कर चल दिये।
जिन्दगी है जी लूँगा मगर सोचो कैसे,
जब अपने ही तोहमत लगाकर चल दिये।
ना थी ख्वाहिश मुझे की शाबाशियां मिले,
पर न अपनो की नजरो मे गुस्ताखियां मिले।
सिला तो गलत मिला मुझे मेरी वफाई का।
बोलो कैसे कटेगा अब वक्त-ए- तन्हाई का।।"
तडपे तू बहुत ये खुदा से मिन्नते की है।
समझता था मरहम जिसे उसी ने जख्म दे दिये,
आज वो भी मुझसे नजरे चुरा कर चल दिये।
जिन्दगी है जी लूँगा मगर सोचो कैसे,
जब अपने ही तोहमत लगाकर चल दिये।
ना थी ख्वाहिश मुझे की शाबाशियां मिले,
पर न अपनो की नजरो मे गुस्ताखियां मिले।
सिला तो गलत मिला मुझे मेरी वफाई का।
बोलो कैसे कटेगा अब वक्त-ए- तन्हाई का।।"
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