सफ़र-ए-जिंदगी

सफ़र पर निकला है मुसाफ़िर मुट्ठियां खोलकर,
हो गया वो सबका जो मिला मीठे लब्ज बोलकर।
सफ़र नही है आसान उलझने बहुत है,
हर कदम पर मुसीबतों के दौर बहुत है।
मुसाफ़िर निकल पड़ा है अनजानी राह पर,
वो मंजिल भी नही बदल सकता सब कुछ चाहकर।
गम -ए-मुश्किलों में खुद को आजमाना ही पड़ेगा,
दृढ़ निश्चय से कदम बढ़ाना ही पड़ेगा।
सफ़र -ए-जिंदगी तय करना नही है आसान,
दर्द हँसकर सह लो न लो कोई एहसान।
अपने सफर को खुशमिजाजी से बेहतर बना लीजिए,
भूल कर गिले शिकवे अपनो को अपना लीजिये।
सफ़र-ए-जिंदगी को जिंदादिली से तय कीजिये।
हमसफ़र हो गर रूठा तो हँसकर मना लीजिये।।

*अभिषेक शुक्ला "सीतापुर"*
शिक्षक,विचारक व साहित्य साधक

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