सिखा जाओ

"अब कौन बंधा है यहाँ प्रेम के धागों से ,
सब जुड़े है यहाँ निज स्वार्थ के भावो से।
अब तो किसी राधा के होठों पर गीत कहा सजते,
इस कलयुग मे श्रीकृष्ण अब कहा मिलते।
मीराबाई के भजन भी अब कहानी हो गयी,
अब कौन यहाँ प्रभू दर्शन की दीवानी हो गयी।
संसार अब तो छल प्रपंच से भर गया,
प्रेम,परोपकार,आदर्श यह जनमानस भूल गया।
हे प्रभु!धरती पर अवतार धर आ जाओ।
सम्पूर्ण विश्व को प्रेम व मर्यादा सिखा जाओ।।"

अभिषेक शुक्ला "सीतापुर "

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