किसको क्या

चिंता,वेदना और पीड़ाओ ने मुझे घेर लिया है,
आज तो अपनो ने ही मुँह फेर लिया है।
जीने की अब तो कोई हसरत न बची,
बेशुमार वफ़ा के बदले नफरत मिली।
प्रेम के अनन्त पलो का न कोई महत्व यहाँ,
न कोई अपना न ही वफ़ा यहाँ।
मुसाफिर अब अंधेरी दुनिया की ओर रवाना हुआ,
उसकी वफ़ा का यहाँ न कोई दीवाना हुआ।
नफरतों का सिलसिला उसे उसी से हो गया।
नब्ज थमे या चले यहाँ किसको क्या हो गया।।

*अभिषेक शुक्ला "सीतापुर"

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