विश्वासघाती

तुम धन,वैभव,संस्कार व ऐश्वर्य की झूठी प्रतिमा बने बैठे हो,
चेहरे पर दम्भ,छल,प्रपंच की विजय मुस्कान लिए बैठे हो। 
सोचते होंगे कि तुम नील सिंघासन पर मनमोहन बने बैठे हो, 
किन्तु साक्षी है दुनिया कि तुम रजनी मे चोर बने बैठे हो, 
हरी-भरी बगिया मे तुम बेर के लालच मे बबूल लगा बैठे हो, 
अब तो तुम अपने साथ हर माली पर भी प्रश्न चिन्ह लगा बैठे हो।
जिस दरख्त को मिलकर खून पसीने से सींचा था सबने, विश्वासघाती!आज तुम स्वार्थ मे उसकी जड़े हिला बैठे हो।

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