राम भरोसे
हम बचपन से ही कई बातें,मुहावरे और शब्द सुनते और बोलते हुये बड़े होते है। कुछ समय बाद कोई ऐसी बात हमारे सामने आ जाती है जिसे कालांतर मे हम भूल चुके होते है।
ऐसा अभी मेरे साथ भी हुआ, जब एक दिन मैने समाचार पत्र मे हैडलाईन पढ़ी कि ' सरकार की स्वास्थ्य सेवायें राम भरोसे।'
तब मुझे अचानक से अपने बचपन के दिन याद आये। जब मै जूनियर कक्षाओं मे अध्ययनरत था, तब परीक्षाओं के उपरांत जब हम सब साथी किसी विषय के प्रश्न पत्र की परीक्षा के बारे मे बात करते थे तो आपस मे एक- दूसरे से कहते थे कि पेपर तो कर आये अब अच्छे अंक मिलना और पास होना 'राम भरोसे' ही है।
आज समाचार पत्र मे पढ़ने के बाद यह 'राम भरोसे' की बात पुन: मानस पटल पर जीवन्त हो गयी।
'राम भरोसे' का शायद यह अर्थ है कि आपके पास जो भी है आप उससे ही संतुष्ट रहो। जब आप उससे ज्यादा किसी चीज़,मेहनत या प्रयास की आवश्कता ही नही समझते। जब यह भावना आ जाये जो होगा ठीक होगा या जो भी होगा देखा जायेगा। रामभरोसे को परिणामों के प्रति निडर, लापरवाह या अटूट विश्वास के रूप मे भी परिभाषित किया जा सकता है।
यदि राम भरोसे के साथ विश्वास जुड़ जाता है तो यह बात साधारण न होकर अपितु अध्यात्मिक रूप ग्रहण कर लेती है। तब राम भरोसे का तात्पर्य प्रभू रामजी के भरोसे हो जाता है। जिस कार्य मे श्रीराम जी का सहारा हो तो वह कार्य निश्चित ही सफल होता है। लेकिन ऐसा नही है कि आप हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाये और कहे कि अब प्रभु ही जाने। यह संसार कर्म प्रधान है। इसलिये हर व्यक्ति को अपने कर्त्तव्य का पालन पूर्ण मनोयोग से करना चाहिये।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी लिखा है," कर्म प्रधान विश्व रचि राखा। जो जस करहि सो तस फल चाखा।। "
इसलिये चाहे कोई व्यक्ति,संस्था या सरकार हो सबको यह बात समझ लेनी चाहिये कि अपने दायित्व का निर्वहन पूर्ण निष्ठा से करे और भविष्य और आपातकाल हेतु उचित प्रबंध भी करे।अपनी कमियों और बुराईयों को छिपाने के लिये राम भरोसे की चादर ओढ़ लेना पूर्णरूपेण अनुचित है।
जीवन की प्रारम्भिक शिक्षा का शुभारंभ प्रभु श्रीराम की बाल लीलाओं को सुनकर और देखकर होता है। विचित्र है किन्तु सत्य है कि एक साधारण व्यक्ति का पूरा जीवन राम भरोसे ही व्यतीत होता है और अन्त मे ' राम नाम सत्य है ' के साथ जीवन लीला समाप्त होती है। इसी नाम के साथ वैतरणी को पार कर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इसलिये यह बात समझ लेनी चाहिये कि राम भरोसे शब्द अपने आप मे पूर्ण और सार्थक है, इसका अनुचित प्रयोग सिर्फ़ लोगो की संकीर्ण मानसिकता व अज्ञानता को दर्शाता है। पत्रकारिता और लेखन क्षेत्र मे शब्दों के चयन और उनके उचित प्रयोग पर विशेष ध्यान देना चाहिये अन्यथा की स्थिति में सारी व्यवस्था राम भरोसे ही हो जाती है।
लेखक:-
अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'
उत्तर प्रदेश
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