बैशाख पूर्णिमा
शीर्षक:- वैशाख पूर्णिमा
वैशाख पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। इस दिन किसी भी पवित्र नदी में स्नान किया जाता है। इसके बाद श्री हरि विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन धर्मराज की पूजा करने की भी मान्यता है। यह मान्यता हैं कि सत्यविनायक व्रत से धर्मराज खुश होते हैं। धर्मराज मृत्यु के देवता हैं, इसलिए उनके प्रसन्न होने से अकाल मौत का डर कम हो जाता है। यह भी मान्यता है कि पूर्णिमा के दिन तिल और चीनी का दान शुभ होता है। इस दिन चीनी और तिल दान करने से अनजान में हुए पापों से भी मुक्ति मिलती है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, पूर्णिमा तिथि का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से मनुष्य के मन और शरीर पर पड़ता है। ज्योतिष में चंद्रमा को मन और द्रव्य पदार्थों का कारक माना जाता है। क्योंकि इस दिन चंद्रमा अपने पूर्ण रूप में होता है। इसलिए आज के दिन व्यक्ति के मन पर पूर्णिमा का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। वहीं मनुष्य के शरीर में लगभग 80 फीसदी द्रव्य पदार्थ है।
अतः पूर्णिमा को चंद्र ग्रह की पूजा का विधान है, ताकि मन और शरीर पर चंद्रमा का शुभ प्रभाव पड़े।
इसे बुद्ध पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। बुद्ध पूर्णिमा को स्नान-दान करने का विशेष महत्व है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन किया गया दान बहुत लाभकारी होता है। वैशाख महीने की पूर्णिमा के दिन ही भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। यह मान्यता है कि महात्मा बुद्ध श्री हरि विष्णु का नौवां अवतार हैं।
बुद्ध पूर्णिमा को हिंदुओं के अलावा बौद्ध धर्म के लोग बौद्ध जयंती के रूप में मनाते हैं।
बुद्ध पूर्णिमा (वेसक या हनमतसूरी) बौद्ध धर्म में आस्था रखने वालों का एक प्रमुख त्यौहार है। यह बैसाख माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था, इसी दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और इसी दिन उनका महानिर्वाण भी हुआ था।
श्रीलंका व अन्य दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में इस दिन को 'वेसाक' उत्सव के रूप में मनाते हैं जो 'वैशाख' शब्द का अपभ्रंश है।
बुद्ध का जन्म 563 ई.पू. बैसाख मास की पूर्णिमा को लुंबिनी, शाक्य राज्य (आज का नेपाल) में हुआ था। इस पूर्णिमा के दिन ही 483 ई. पू. में 80 वर्ष की आयु में 'कुशनारा' में में उनका महापरिनिर्वाण हुआ था। वर्तमान समय का कुशीनगर ही उस समय 'कुशनारा' था।
गृहत्याग के पश्चात सिद्धार्थ सत्य की खोज के लिए सात वर्षों तक वन में भटकते रहे। यहाँ उन्होंने कठोर तप किया और अंततः वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे उन्हें बुद्धत्व ज्ञान की प्राप्ति हुई। तभी से यह दिन बुद्ध पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है।
महापरिनिर्वाणस्थली कुशीनगर में स्थित महापरिनिर्वाण विहार पर एक माह का मेला लगता है।
इस विहार में भगवान बुद्ध की लेटी हुई (भू-स्पर्श मुद्रा) 6.1 मीटर लंबी मूर्ति है। जो लाल बलुई मिट्टी की बनी है।
विहार के पूर्व हिस्से में एक स्तूप है। यहाँ पर भगवान बुद्ध का अंतिम संस्कार किया गया था। यह मूर्ति भी अजंता में बनी भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण मूर्ति की प्रतिकृति है।
विश्व भर से बौद्ध धर्म के अनुयायी बोधगया आते हैं और प्रार्थनाएँ करते हैं। इस दिन बौद्ध धर्म ग्रंथों का पाठ किया जाता है। विहारों व घरों में बुद्ध की मूर्ति पर फल-फूल चढ़ाते हैं और दीपक जलाकर पूजा करते हैं।इस दिन बोधिवृक्ष की भी पूजा की जाती है।
दुनिया के दो सौ से अधिक देशों में बौद्ध अनुयायी हैं। किन्तु चीन, जापान, वियतनाम, थाईलैण्ड, म्यान्मार, भूटान, श्रीलंका, कम्बोडिया, मंगोलिया, लाओस, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया एवं उत्तर कोरिया समेत कुल तेरह देशों में बौद्ध धर्म 'प्रमुख धर्म' है।भारत, नेपाल, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, रूस, ब्रुनेई, मलेशिया आदि देशों में भी करोडों बौद्ध अनुयायी हैं।
भगवान बुद्ध ने कहा था कि भविष्य के सपनों में मत खोओ और भूतकाल में मत उलझो सिर्फ वर्तमान पर ध्यान दो। जीवन में खुश रहने का यही एक सही रास्ता है।
लेखक:-
अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'
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