आचार्य नरेंद्र देव
लेख:- 'सीतापुर के आचार्य नरेंद्र देव'
आचार्य नरेंद्र देव भारत के प्रमुख स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, पत्रकार, साहित्यकार एवं शिक्षाविद थे। वे कांग्रेस समाजवादी दल के प्रमुख सिद्धान्तकार थे। देश को स्वतंत्र कराने का जुनून उन्हें स्वतंत्रता आन्दोलन में खींच लाया और भारत की आर्थिक दशा व गरीबों की दुर्दशा ने उन्हें समाजवादी बना दिया। समाजवाद के पितामह आचार्य नरेंद्र देव का जन्म 31अक्टूबर, 1889 ई. को सीतापुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनके पिता का नाम बलदेव प्रसाद था, जो एक प्रसिद्ध वकील थे। नरेन्द्र जी के बचपन का नाम अविनाशी लाल था।
इनकी प्रारम्भिक शिक्षा पैतृक जनपद फैज़ाबाद मे हुयी। इन्हें संस्कृत, हिन्दी के आलावा कई भाषाओँ का ज्ञान था। जिसमे अंग्रेज़ी, उर्दू, फ़ारसी, पाली, बंगला, फ़्रेंच और अन्य भाषाएँ भी शामिल हैं।
इन्होने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. की डिग्री प्राप्त की और पुरातत्व के अध्ययन के लिए काशी के क्वींस कालेज चले गए और सन 1913 में एम.ए. संस्कृत से किया। अपने पिताजी की इच्छा पर इन्होने वकालत की पढ़ायी की। इसके बाद सन 1915 से लेकर 1920 तक फैजाबाद में रहकर वकालत की। इन्हे सन 1926 में काशी विद्यापीठ के कुलपति बना दिया गया और इसी के बाद आप आचार्य नरेन्द्र देव के नाम से प्रसिद्द हुए।
आचार्य नरेंद्रदेव जी ने "विद्यापीठ" त्रैमासिक पत्रिका, "समाज" त्रैमासिक, "जनवाणी" मासिक, "संघर्ष" और "समाज" साप्ताहिक पत्रों का संपादन किया।
सन 1934 में जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया तथा अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी’ की स्थापना की। जब इस पार्टी का प्रथम अधिवेशन हुआ जिसमे वो अध्यक्ष के रूप में रहे।
ये "ऑल इंड़िया कांग्रेस कमेटी" में सन 1916 से लेकर सन 1948 तक सदस्य रहे। वो नेहरू जी के साथ "कांग्रेस वर्किंग कमेटी" में भी सक्रिय सदस्य के रूप में भी अपनी भूमिका निभाई। देश के दो प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री और चंद्रशेखर-एक समय उनके शिष्य हुआ करते थे।
यह बात कम ही लोग जानते हैं कि 20 अगस्त, 1944 को श्रीमती इंदिरा गांधी जब पहली बार माँ बनीं, तो समाजवादी आचार्य ने पं.नेहरू के अनुरोध पर उनके शिशु का नाम राजीव गांधी रखा। वे दूसरी बार माँ बनीं तो उनके दूसरे बेटे संजय का नामकरण भी आचार्य जी ने ही किया।
आचार्य जी देश की आज़ादी के लिए कई बार जेल की यातनाएँ भी सहीं। अपने ख़राब चल रहे स्वास्थ्य के बावजूद नमक सत्याग्रह के दौरान 1930 में जेल गये। उसके बाद सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान 1932 में जेल हुयी और व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन के दौरान 1941 में जेल भेजे गये।
आचार्य नरेंद्र देव की फैज़ाबाद स्थित कोठी आज भी चर्चा का विषय बनी हुयी है। बत्तीस कमरों और एक सौ एक दरवाजों और खिड़कियों वाली यह कोठी वर्ष 1934 से 1937 तक समाजवादी राजनीति का बड़ा केंद्र रही। एक समय समाजवादी राजनीति में उसकी वही जगह थी, जो कांग्रेस की राजनीति में कभी इलाहाबाद के आनंद भवन की हुआ करती थी।
भारत छोड़ो आन्दोलन मे सक्रिय होने पर सन 1942 से 1945 तक नेहरू जी और अन्य प्रसिद्द नेताओ के साथ अग्रेजो द्वारा अहमदनगर क़िले में नज़रबंद कर दिया गया।
मार्च 1948 में लखनऊ रेडियो पर नरेंद्र देव का एक भाषण प्रसारित हुआ था जिसमें उन्होंने शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा दिए जाने पर सवाल उठाया था। उनका मानना था कि सांप्रदायिक मेल उत्पन्न करने की सदिच्छा से स्कूलों के पाठ्यक्रमों में धार्मिक शिक्षा के समावेश की बात ग़लत है। नरेंद्र देव के मुताबिक इससे फ़ायदे कम, नुकसान ज़्यादा हैं। उनका यह भी मानना था कि समाजवाद की विचारधारा में ईश्वर की जगह नहीं है। इसके बावजूद उन्होंने यह भी कहा था कि मनुष्य केवल तर्क के आधार पर जीवन नहीं जी सकता, उसे विश्वास की भी ज़रूरत होती है पर यह विश्वास धर्मनिरपेक्ष होना चाहिए और इसीलिए धर्म को शिक्षण संस्थाओं से दूर रखे जाने की जरूरत है। नरेंद्र देव की नजर में यही धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत था।
आचार्य जी जीवन पर्यन्त राष्ट्र, शिक्षा,समाज और साहित्य के लिये समर्पित रहे। जीवन भर दमे के मरीज होने के कारण 19 फ़रवरी, 1956 ई. इसी रोग के करण मद्रास (वर्तमान चेन्नई) के एडोर में उनका निधन हो गया।
आचार्य नरेंद्र देव का जीवन भारत की समृद्ध और बहुविध सांस्कृतिक विरासत का अनुपम समन्वय था। इन्होंने जीवनपर्यन्त देश में सच्ची समतावादी सामाजिक ,आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था कायम करने का प्रयास किया।
लेखक:-
अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'
उत्तर प्रदेश
Comments
Post a Comment