लिख दूँ हकीकत

शीर्षक:- 'लिख दूँ हकीकत' 

'लिख दूँ हकीकत तो सारे अर्थ और आयाम बदल जायेगे, 
गूढ़ शब्दों की अविरलता से भी सारे पट खुल जायेगे। 
खुद को खुदा समझते है जो इस दौर मे सारे जमाने का, 
हम महफ़िल मे आ गये तो शोहरत के पैमाने झलक जायेगे। 
कह दो उनसे कि वो अब अपने किरदार मे ही रहे, 
बिगड़ गये जो तेवर तो वो इतिहास मे बदल जायेगे। 
स्याही की कालिमा भी सब कुछ उजागर करती है, 
हुयी जो चूक तो कारनामें अखबार मे छप जायेगे। 
मैं न मंजिल हूँ और न ही अनन्त और असीम रास्ता, 
किन्तु जो साथ चले तो खुद के कदम भी भूल जाओगे। 
सब्र से खुद की हकीकत को समझने का प्रयास करो, 
खुद ही खुद से खुद के कामों पर अनन्त विश्वास रखो। 
मंजिल मिलेगी किन्तु छद्मवेश का तुम तिरस्कार कर दो, 
अन्यथा तुम्हारे जीवन के सारे उद्देश्य निरर्थक हो जायेगे। 
लिख दूँ हकीकत तो सारे अर्थ और आयाम बदल जायेगे।।' रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

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