चादर क्यो चढाऊँ ?

रूह भी कांपती है ठंडक मे कभी- कभी,
याद आती है हर मजबूरियाँ सभी तभी। 
इन्सान को ज़िन्दगी की कीमत समझनी चाहिये, 
जो हो सके मुनासिब वह रहम करना चाहिये। 
जीवन है बहुत कठिन कैसे यह सब बताऊँ? 
मजारों पर शबाब के लिए चादर क्यों चढ़ाऊँ? 
ठिठुरता हुआ मुफलिस दुआयें कम न देगा, 
खुदा क्या इस बात पर मुझे रहमत न देगा।।

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