तू हीर है मेरी
मैंने ख़ुदा से की थी मिन्नते हजार,
तू आये मेरी जिंदगी में हर बार।
तुम आये मेरी जिंदगी में और दस्तक भी न दी,
तुम हुए न रूबरू और निशानी भी न दी।
बहुत हुई रहमत ख़ुदा की,
पर तुम मुझे दिखाई न दी।
अचानक मेरी इबादत मंजूर हो गयी,
आया वो मंजर तुम मिलने को मजबूर हो गयी।
जब सुनी आपकी खनकती सौम्य सी मधुर आवाज़,
खो गया प्रेम सागर में मुझे याद भी है आज।
मिलना भी हमारा हुआ दुनिया की भीड़ में,
हम तुम थे पूरी तरह प्रेम के आग़ोश में।
तुम्हे देखते ही मैं खुद और ख़ुदा को भूल सा गया,
तुम्हारी पहली नज़र ने मेरा दिल चुरा सा लिया।
तुम्हारे नैन नक्श ने चैन छीन लिया मेरा,
तुम्हारी सादगी व भोलेपन ने दिल लूट लिया मेरा।
करना चाहता था तुम्हे अपने प्रेम का इज़हार,
कह न सका मैं हिम्मत की कई बार।
तुम्हारे नैनो से मेरी आँखों से मुलाक़ात हो गयी,
न बोले तुम और न मैं,पर सारी बात हो गयी।
बन बैठा तेरा दीवाना परवाने की तरह।
तू हीर है मेरी,मैं तेरे रांझे की तरह।।
अभिषेक शुक्ला सीतापुर
तू आये मेरी जिंदगी में हर बार।
तुम आये मेरी जिंदगी में और दस्तक भी न दी,
तुम हुए न रूबरू और निशानी भी न दी।
बहुत हुई रहमत ख़ुदा की,
पर तुम मुझे दिखाई न दी।
अचानक मेरी इबादत मंजूर हो गयी,
आया वो मंजर तुम मिलने को मजबूर हो गयी।
जब सुनी आपकी खनकती सौम्य सी मधुर आवाज़,
खो गया प्रेम सागर में मुझे याद भी है आज।
मिलना भी हमारा हुआ दुनिया की भीड़ में,
हम तुम थे पूरी तरह प्रेम के आग़ोश में।
तुम्हे देखते ही मैं खुद और ख़ुदा को भूल सा गया,
तुम्हारी पहली नज़र ने मेरा दिल चुरा सा लिया।
तुम्हारे नैन नक्श ने चैन छीन लिया मेरा,
तुम्हारी सादगी व भोलेपन ने दिल लूट लिया मेरा।
करना चाहता था तुम्हे अपने प्रेम का इज़हार,
कह न सका मैं हिम्मत की कई बार।
तुम्हारे नैनो से मेरी आँखों से मुलाक़ात हो गयी,
न बोले तुम और न मैं,पर सारी बात हो गयी।
बन बैठा तेरा दीवाना परवाने की तरह।
तू हीर है मेरी,मैं तेरे रांझे की तरह।।
अभिषेक शुक्ला सीतापुर
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