पिता है सहारा


पिता है सहारा
पिता का प्रेम अतुल्य,अनन्त होता है,
उनका हृदय वात्सल्य से परिपूर्ण होता है।
तात वट वृक्ष समान होते है,
जिनकी छत्र छाया में सब अभिमान से जीते है।
परम् अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की नींव रखता है,
इसलिए वह स्वयं कठिन परिस्थितियों से गुजरता है।
जनक को अपने बच्चों को दिए गए संस्कारों पर नाज़ होता है,
इसलिए बेटी पापा की परी और बेटा राजदुलारा होता है।
पिता को अपनी संतानों पर हर पल अभिमान रहता है,
जग में उसका नाम करेंगे ये सबसे वह कहता है।
पिता के आशीर्वाद से ही सबको सुखमय जीवन मिलता है,
अभिषेक निज तात के चरणों में कोटिशः नमन करता है।

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