एक दूजे का साथ

"दो अजनबी मिले प्रेम बन्धन मे बँधे,
साथ रहकर सदा सारे दुख-सुख सहे।
गृहस्थी आगे चली जिम्मेदारियां बढ़ी,
किये सब कर्त्तव्य और उम्र भी ढली।
आया जब दौर बुढापे का तो कोई सहारा न मिला,
बच्चो के घर मे भी कोई कोना-किनारा न मिला।
बोलो कैसे छोड देते वो इस मंजर पर एक दूजे का साथ ,
उम्र के इस पड़ाव पर भी वो चल पड़ें है ले हाथो मे हाथ।।"

रचनाकार:-
अभिषेक शुक्ला "सीतापुर"

अपील:-सभी से निवेदन है कि अपने घर के बुजुर्ग माता पिता व प्रियजनो का पूरा ध्यान रखे।याद रहे कि सारी उम्र खुद चाहे वे तकलीफ मे रहे पर आपकी सभी जरूरतो और ख्वाबो को उन्होने पूरा किया।

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