नेताजी
मेरे देश के नेता का अजीब हाल हो गया,
गरीबों के लिए लड़ते लड़ते वो मालामाल हो गया।
चुनाव में हाथ जोड़कर घर घर जाता है,
हर किया वादा निभाने की कसम खाता है।
चुनाव जीतने पर वो खुशियां मनाता है,
फिर सबको जाति धर्म के नाम पर लड़ाता है।
किये गए सारे वादे वो पल में भूल जाता है,
फिर नेताजी का दर्शन भी दुर्लभ हो जाता है।
हमारे देश मे पचपन का भी युवा नेता कहलाता है,
देश का युवा पढ़ लिखकर भी
बेरोजगार रह जाता है।
अनपढ़ बन नेता अपना काम चलाता है,
अधिकारियों पर अपना खूब रौब जामाता है।
दिन रात वो दौलत शोहरत कमाता है,
पांच साल बाद उसे जनता का ध्यान आता है।
अभिषेक शुक्ला सीतापुर
गरीबों के लिए लड़ते लड़ते वो मालामाल हो गया।
चुनाव में हाथ जोड़कर घर घर जाता है,
हर किया वादा निभाने की कसम खाता है।
चुनाव जीतने पर वो खुशियां मनाता है,
फिर सबको जाति धर्म के नाम पर लड़ाता है।
किये गए सारे वादे वो पल में भूल जाता है,
फिर नेताजी का दर्शन भी दुर्लभ हो जाता है।
हमारे देश मे पचपन का भी युवा नेता कहलाता है,
देश का युवा पढ़ लिखकर भी
बेरोजगार रह जाता है।
अनपढ़ बन नेता अपना काम चलाता है,
अधिकारियों पर अपना खूब रौब जामाता है।
दिन रात वो दौलत शोहरत कमाता है,
पांच साल बाद उसे जनता का ध्यान आता है।
अभिषेक शुक्ला सीतापुर
Comments
Post a Comment