नि:शब्द हूँ
'कभी-कभी शब्द भी नही मिलते कि कुछ लिख सकूँ,
जो भी दिख रहा उसका तनिक भी वर्णन कर सकूँ।
पर कैसे मैं अपनी वाणी को विराम दे दूँ ?
शब्द का मौन धारण कैसे स्वीकार कर लूँ?
बोलो आँखों की नमी से ईश्वर को प्रणाम कर लूँ ,
या शब्दों के बाण से मानवता को शर्मसार कर दूँ ?
इस मंजर का बोलो कैसे तिरस्कार कर दूँ ?
नि:शब्द हूँ ,बोलो कैसे,क्या?मै बखान कर दूँ ?'
Comments
Post a Comment