बेबस बचपन

'इस तस्वीर ने मुझे खामोश सा कर दिया,
जिन्दगी ने जिन्दगी से सवाल कर लिया।
बचपन मे न किसी खिलौने की चाह रह गयी।
खुद की जिन्दगी ही दुख का खेल बन गयी।
सुना है बहुत खुशियाँ है इस जहान मे मगर,
पर ये सब सुनी सुनायी सी एक बात रह गयी।
क्या मिला,क्या मिलेगा और क्या बाकी रह गया?
पत्थरो का बिस्तर है और दर्द क्या बाकी रह गया?
गरीब को जिन्दगी से अब क्या गिला शिकवा रह गया?
जब मासूम ने पत्थरो को ही फूलों की सैज समझ लिया।'

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