लघुकथा:-सच्चा स्वाभिमान

गोला गोकर्णनाथ के एक फ़ास्ट फ़ूड वाले के यहाँ मैं वेज रोल आर्डर करके बैठा हुआ था। तभी एक लड़का आया और आकर ओनर से बोला कि अगर कोई काम हो तो करा लीजिये और मुझे कुछ रुपये दे दीजिए। तो रेस्टोरेंट के मालिक ने मना किया कि कोई भी काम नहीं है। मैं शुरुआत से ये सब देख रहा था। मैंने उसे अपने पास बुलाया। वो लड़का मुश्किल से 12 वर्ष का होगा,आंखों में गंभीरता,सरल स्वभाव पर ग़रीबी और जिम्मेदारी ने उसे बहुत ही परिपक्व बना दिया था।
उस लड़के की एक बात मुझे पसंद आयी कि उसने काम मांगा और काम के बदले पैसे। ये बात मेरे दिल को छू गयी। वो औरों की तरह भीख भी मांग सकता था।
मैंने उसे अपने पास बिठाया, वो थका हुआ और भूखा लगा। मैंने उसके लिए भी वेज रोल आर्डर किया। फिर पूछा कि क्या नाम है तुम्हारा तो बोला श्याम सुंदर! घर पर कौन कौन है। बोला पापा हैं जो हरिद्वार में काम करते हैं । घर पर मां और छोटा भाई।
तब तक वेज रोल आ गए। हम दोनों आपस में बातें कर रहे थे।
फिर पूछा कितने रुपये चाहिए तुम्हें। तो वो बोला, आज ननिहाल में मेरे मामा की शादी है, माँ और छोटा भाई वहां जा चुके हैं।
मेरे कपड़े सिलने पड़े हैं वो लेने हैं। मैंने आज सरदार जी के वहां दिनभर घास उनके लॉन में नोची तो उन्होंने 200 रुपये दिए, 30 रुपये मेरे पास है। 250 रुपये सिलाई है, सोचा की कुछ काम मिल जाये तो 20 रुपये मिल जायेंगे। उसकी आंखें नम हो गयी।
हम वेज रोल खा चूके थे। श्याम सुंदर से पूछा और कुछ खाओगे तो बोला, नहीं।
मैंने कहा पानी पियो। मैं उठकर रेस्तरां मालिक के पास गया। वेज रोल का पेमेन्ट करने के बाद,श्याम सुंदर को पास में बुलाया। और रेस्तरां मालिक से कहा कि अगर कोई काम हो तो इस लड़के को रख लो। जानता हूं बाल श्रम अपराध है, पर भूख और गरीबी सबसे बुरी होती है।
रेस्तरां मालिक भी श्याम सुंदर से बोला कि सोमवार से काम पर आ जाना, तुम छोटे हो बस आर्डर लेने का काम करना बाकी काम वेटर करेंगे। फिर हम दोनों बाहर निकले फिर श्याम सुंदर को मैंने 100 रुपये दिए। पर उसने न लिए। मैंने जिद की। तो बोला आप 50 दे दो। जरूरत तो सिर्फ 20 की ही है।
हम चौराहे पर आए,मेरी बस आ गयी ,श्याम सुंदर भीगी आंखों से मुझसे लिपट गया और बोला दादा फिर कब मिलोगे ?
मैंने उससे कहा हम मिले या न मिले जिंदगी में कोई भी काम करना ईमानदारी से करना। तुम अपना स्वाभिमान मत खोना।
श्याम सुंदर ,उस पल मुझे श्याम भगवान की तरह सुंदर सा लगा। मेरी बस चल दी,मैं और श्याम सुंदर एक दूसरे को तब तक देखते रहे जब तक देख सके....।।

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