रोटी और शिक्षा
'कैसी यह विडम्बना और कैसा अत्याचार है?
आज तो खुद ही पुरुषार्थ भी लाचार है।
देख कर यह दृश्य आता मन मे हर बार है,
आज जीवन की सत्यता आर्थिक आधार है।
हर गरीब को चुनना तो बस यही हर बार है।
रोटी और शिक्षा मे तो बस एक विकल्प तैयार है।
पीठ पर बस्ता उस पर शिक्षा का अधिकार है,
नंगे पांव गुब्बारे बेचता बचपन लाचार है।'
रचनाकार:-
अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'
नोट:-फोटो साभार#फेसबुक
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