आँखो की गुस्ताखियाँ


'प्रेम की कोई न सीमा न ही इसकी उम्र है,
जिन्दगी के हर पड़ाव पर शेष इसके अंश है।
क्या हुआ जो अब गाल पोपले हो गये,
और सिर के बाल भी सारे सफेद हो गये।
तन बूढ़ा हुआ तो झुर्रिया भी है पड़ गयी,
कुछ प्रेम की निशानियाँ बाकी रह गयी।
दिल लग जाना अब भी मुमकिन है साहब,
इसकी कुछ अठखेलियां बाकी रह गयी।
उम्र तो कर चुकी है अब सारे पड़ाव पार,
बाकी आँखो की कुछ गुस्ताखियाँ रह गयी।'

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