पहचान न मिलेगी

शून्य से अनन्त तक जाओ मगर,
सारी सफलताये तुम पाओ मगर।
जब भी याद आयेगी तुम्हे घर की,
तब कही मन को लगा कर देखो।
घर छोड़ते वक्त यह ध्यान रखना,
आँगन की धूप- छांव याद रखना।
रिश्ते जरा सलीके से निभाते चलो,
अपनो को खुशी से गले लगाते चलो।
देर न करना कभी घर वापसी मे,
कही गलियाँ भी सवाल न पूछने लगे।
जंग लगे तालो मे फिर चाभी न लगेगी,
अपनो मे खोई हुई वो पहचान न मिलेगी।

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