सदा यूँ ही

"धड़कन रुकने को थी नब्ज़ भी मेरी थमने को थी,
प्रियतम को मेरे फिर भी पल भर की फुरसत न थी।
रिश्ता हमारा अन्तिम आहों पर सिसक रहा था,
उनका जश्न-ए-आजादी अपनो संग चल रहा था।
खुश थे बहुत वो मुझ बिन ये मै देख रहा था,
दुख दिये मैने ही सब क्या ये मै सोच रहा था।
मै तन्हाईयो को समेटे उनका इंतजार कर रहा था,
वो भूलकर मुझे अपनो संग महफिल सजा रहा था।
उनके महफिलो के दौर अब सदा यूँ ही चलते रहे,
वो मुझसे बेफिक्र होकर अब सदा यूँ ही हँसते रहे।"

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